शील और सदाचार जीवन के सारभूत तत्त्व हैं: आचार्य विमलसागरसूरी

शील और सदाचार का खंडन रिश्तों में अविश्वास ला रहा है

शील और सदाचार जीवन के सारभूत तत्त्व हैं: आचार्य विमलसागरसूरी

शील और सदाचार की रक्षा के बिना आध्यात्मिक विकास कभी नहीं होता

गदग/दक्षिण भारत। राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में गुरुवार को पार्श्व बुद्धि वीर वाटिका में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि शील और सदाचार जीवन के सारभूत तत्व हैं। हर मनुष्य को इनकी सुरक्षा के लिए सदैव जागृत रहना चाहिए। ये न सिर्फ स्वयं के लिए बल्कि हमारी पवित्र पारिवारिक परंपरा और स्वस्थ समाज के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं। 

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शील और सदाचार का खंडन रिश्तों में अविश्वास, विवाद, विवाह विच्छेद, दुःख और अराजकता ला रहा है। इससे जीवन का संतुलन नष्ट हो रहा है। यह किसी के लिए भी शुभ नहीं है। इनके कारण कन्याओं को सुयोग्य युवक नहीं मिल रहे हैं और युवकों को सुयोग्य कन्याएं नहीं मिल रही हैं। इस प्रकार लाखों परिवार परेशान हैं। 

शील और सदाचार की रक्षा के बिना आध्यात्मिक विकास कभी नहीं होता। ब्रह्मचर्य महत्तम साधना है। जो भोग से मुक्त होकर योग के मार्ग पर रमणता करते हैं, वे साधक सचमुच पूजनीय हैं। ब्रह्मचर्य से बढ़कर कोई साधना नहीं है। काम वासनाएं तो दुःखदायी हैं। उनका कोई अंत नहीं है। भारतीय संस्कृति भोग प्रधान नहीं, योग प्रधान है। यहां संसार के हर प्रसंग को योग से रंगने का पवित्र पुरुषार्थ हुआ है। 

बहू, बहन, बेटियों के साथ हो रहे अपराधों के विषय में भोग और योग पर जैनाचार्य ने कहा कि पश्चिम की आंधी से बचना होगा। ये हमारी गौरवशाली भारतीय संस्कृति को नष्ट कर देगी। हमारी युवा पीढ़ी को योग भुलाकर भोग के मार्ग पर ले जाने का भयंकर षडयंत्र चल रहा है। नारी जाति के साथ हो रहे अपराधों की यही मूल वजह है। वरना भारतीय संस्कृति तो नारियों की पूजा का संदेश देती है और कहती है कि जहां नारी जाति का सम्मान होता है, वहां देवता भी नृत्य करते हैं। 

श्रमण वृंदों के सान्निध्य में जैन संघों की ओर से उनका अभिनंदन किया जाएगा। गदग की साध्वी लोकेश्वरी यशाजी के सान्निध्य में वह दीक्षा अंगीकार करेंगी। मनोज बाफना ने आगामी कार्यक्रम की जानकारी दी।

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