गति में संतुलन नहीं, तो प्रगति संभव नहीं: सुधांशु महाराज

सत संगति से सुमति की प्राप्ति होती है

गति में संतुलन नहीं, तो प्रगति संभव नहीं: सुधांशु महाराज

अपने गुरु के प्रति  अटूट विश्वास और श्रद्धा होनी चाहिए

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। यहां विश्व जागृति मिशन के तत्वावधान में जयनगर के पूर्णिमा कन्वेंशन सेन्टर में अमृत ज्ञान वर्षा के तीसरे दिन शनिवार को अपने भक्तों को संबोधित करते हुए  श्रद्धेयश्री सुधांशुजी महाराज ने कहा कि व्यक्ति की यात्रा विकसित होने के साथ परम लक्ष्य तक पहुंचने की यात्रा है। 

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सत संगति से सुमति की प्राप्ति होती है और इसी के अनुसार व्यक्ति सफल होने लगता है। अपने सद्गुरु के मार्गदर्शन में भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति करें। जब तक व्यक्ति के जीवन में गति संतुलन नहीं है तब तक वह प्रगति करना सम्भव नहीं है। व्यक्ति संसार में रहते हुए भी उसकी प्रेरणा की ज्योति बुझ जाने पर उस भावना को छोड़ देता है जिससे उसकी प्रगति रुक जाती है। 

महाराजश्री ने कहा कि श्रद्धा में जब कमी होती है तब गुरु कृपा प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक भक्त को हमेशा अपने गुरु के प्रति  अटूट विश्वास और श्रद्धा होनी चाहिए। सुधांशुजी ने कहा कि अपने माता पिता को भगवान के रूप में देखें और उनका सम्मान करें। घर परिवार में जब व्यक्ति सम्मान पाता है तब जाकर बाहरी दुनिया में भी सम्मान मिलता है।

उन्होंने समय के बारे में बोलते हुए कहा कि वक्त के पास इतना वक्त नहीं है कि वह आपको दुबारा वक्त दे सके। जो समय मिला है उसका ठीक से उपयोग करने से किस्मत बदलती है।

इस अवसर पर विश्व जागृति मिशन बेंगलूरु मण्डल के प्रधान आदित्य टांटिया को सनातन संस्कृति जागरण के कार्यों को देखकर परम पूज्य महाराजश्री ने 'धर्म गौरव अलंकरण’ से सम्मानित किया। सुबह के सत्र में आचार्यश्री के सान्निध्य में ध्यान साधना सत्र का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में साधकों ने भाग लिया। 

आचार्यश्री ने कहा कि स्वस्थ शरीर में मन व आत्मा बसती है। यह देश ऋषिमुनियों का देश है। परमात्मा के निकट जाने की विधि ध्यान द्वारा ही संभव है। ध्यान में बैठकर आप अनेक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। जरूरत है ध्यान को साधने की। शांत मस्तिष्क वाला व्यक्ति संतुष्ट रहता है।

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