तीर्थों की पवित्रता के साथ-साथ सुरक्षा अति आवश्यक: आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरी

'तीर्थस्थल पूजा उपासना के धाम हैं, न कि घूमने-फिरने के पर्यटन स्थल'

तीर्थों की पवित्रता के साथ-साथ सुरक्षा अति आवश्यक: आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरी

आचार्यश्री ने अष्टापद तीर्थ के विशाल चित्रपट के समक्ष भावयात्रा करवाई

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के वीवी पुरम स्थित संभवनाथ जैन भवन में अपने प्रवचन के दाैरान आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि श्रावक के लिए प्रति वर्ष कम से कम एक बार तीर्थयात्रा करने की बात शास्त्राें में बताई गई है जाे आत्मिक विकास की साधना में पूरक और सहायक साबित हाेती है।

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किसी भी क्रिया का प्राण भाव हाेता है और भावाें काे जागृत करने में अनुकूल द्रव्य, क्षेत्र और काल का सीधा संबंध है जाे साधक के भावाें काे प्रभावित करते हैं। इनमें तीर्थकराें की साधना से पवित्र बने तीर्थ क्षेत्र यानी कल्याणक भूमि भी शामिल है। तीर्थाें के पवित्र वातावरण की सुरक्षा हेतु दर्शाई गई आचार संहिता का पालन प्रत्येक यात्री का कर्तव्य है क्याेंकि तीर्थस्थल पूजा
उपासना के धाम हैं, न कि घूमने-फिरने के पर्यटन स्थल। 

प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव की निर्वाण भूमि यानी अष्टापद तीर्थ की सुरक्षा हेतु उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने वहा यंत्रमानवाें की स्थापना की थी। रावण की प्रभुभक्ति, गाैतमस्वामी की यात्रा, भरत महाराजा द्वारा जिनालय निर्माण आदि अनेक घटनाओं से अष्टापद तीर्थ जुड़ा हुआ है।

इससे पूर्व अष्टापद तीर्थ से जुड़ी घटनाओं के विवेचन के माध्यम से आचार्यश्री ने अष्टापद तीर्थ के विशाल चित्रपट के समक्ष भावयात्रा करवाई। मंजूदेवी सुभाष पगारिया के वर्षीतप के उपलक्ष्य में पांचीबाई जबरचंद पगारिया परिवार द्वारा आयाेजित इस कार्यक्रम का संचालन निष्क्रित कंकुलाेल और अमन साेमावत ने किया। कल्याण मित्र परिवार ने व्यवस्था संभाली। प्रसन्न पगारिया ने आभार व्यक्त किया।

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