अपना हाथ जगन्नाथ
भारत में बेरोजगारी क्यों है?

भारत अन्य देशों से पीछे क्यों रह गया?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'दुनिया के कारखाने के तौर पर भारत के उभरने' के संबंध में जो बयान दिया है, वह भविष्य के लिए बेहतर संभावनाओं का संकेत है। निस्संदेह भविष्य में भारतीय युवाओं के लिए बहुत अवसर होंगे, लेकिन बड़ा सवाल है- क्या वे उनके लिए तैयार हैं? हमारा देश 'कारखाने के तौर पर' आज उभर रहा है। अगर सरकारों ने चार दशक पहले इसके लिए दृढ़ता से प्रयास किए होते तो अब हमारी अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी होती। समस्या कहां है? क्या हमने एक सुनहरा मौका गंवा दिया? भारत के पास बहुत बड़ा जनबल है, बहुत बड़ा बाजार है। दुनियाभर की कंपनियां यहां आकर व्यापार करना चाहती हैं। इसके बावजूद यहां का नौजवान बेरोजगारी का सामना कर रहा है। जो भी विपक्ष में होता है, वह बेरोजगारी का मुद्दा उठाता है, लेकिन जब खुद सत्ता में आता है तो इसका कोई ठोस समाधान पेश नहीं कर पाता। इतना बड़ा जनबल, इतना बड़ा बाजार, फिर भी बेरोजगारी? ऐसा क्यों? भारत में रोजगार को सरकारी नौकरी के साथ इतना मजबूती से जोड़ दिया गया है कि निजी क्षेत्रों में कामकाज को रोजगार ही नहीं समझा जाता! अमेरिका की एक दिग्गज टेक कंपनी में जब भारतीय मूल के शख्स को सीईओ बनाया गया तो सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आ गई थी। उनमें एक तस्वीर बहुत साझा की गई, जिसमें एक पत्रकार पूछता है, 'आपका बेटा अमेरिका में सीईओ बन गया। क्या कहना चाहेंगे?' तो जवाब मिलता है, 'अगर थोड़ी-सी मेहनत और कर लेता तो उसकी सरकारी नौकरी लग जाती!' यह तो एक व्यंग्य हुआ। असल स्थिति इससे ज्यादा अलग नहीं है। जब भारतीय किशोर अपने चारों ओर सिर्फ सरकारी नौकरी का इतना ज्यादा महिमा-मंडन होते देखता है तो वह उसे ही अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य क्यों नहीं समझेगा?
देश में सरकारी नौकरियां हैं कितनी? क्या वे सभी युवाओं को दी जा सकती हैं? गणित का एक सामान्य विद्यार्थी भी समझ सकता है कि देश की जितनी जनसंख्या है, सरकारी नौकरियां उसके अनुपात में बहुत कम हैं। ये सभी युवाओं की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर सकतीं। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, यह बात खुलकर कोई नहीं कहता। अगर देश को सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है, दुनिया के कारखाने के तौर पर स्थापित करना है, तो निजी क्षेत्र का उत्थान करना अनिवार्य है। साठ के दशक में एक फिल्म आई थी- 'अपना हाथ जगन्नाथ'। हर युवा को वह फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए। भारत में बेरोजगारी क्यों है? भारत अन्य देशों से पीछे क्यों रह गया? इतनी शक्ति व सामर्थ्य होने के बावजूद हम दुनिया में वह मुकाम क्यों हासिल नहीं कर पाए, जिसके हकदार हैं? इन सभी सवालों के जवाब भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से मिलते हैं। भगवान ने अपने दिव्य हाथों की शक्ति का एक अंश वरदान के रूप में उन लोगों को दिया है, जो हाथ का हुनर जानते हैं। इसमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है। जो व्यक्ति वह हुनर सीखेगा, उस पर भगवान जगन्नाथ कृपा करेंगे। जिन देशों में किशोरों को स्कूली पढ़ाई के दौरान ही उनकी योग्यता को पहचानकर कोई हुनर सिखा दिया गया, वे आगे बढ़ गए। जापान के बारे में प्रसिद्ध है कि वहां कई स्कूली बच्चे इतने पारंगत हो गए कि वे खेल-खेल में कैलकुलेटर, घड़ी, छाता, टॉर्च, रेडियो, पंखा, बैग, जूते, फर्नीचर जैसी चीजें बना लेते हैं। वहां कई स्कूल अपने विद्यार्थियों को विभिन्न बेकरी उत्पाद बनाना सिखाते हैं। जबकि, भारत में युवा कॉलेज की डिग्री लेने के बाद अपने भविष्य के संबंध में अनिश्चितता की स्थिति में होता है। वह धरने देता है, रास्ते अवरुद्ध करता है, ट्रेनें रोकता है! इसमें उसका भी दोष नहीं है। जब उसे कोई हुनर सिखाया ही नहीं गया, किताबें ही रटाई गई हैं तो वह क्या करेगा? सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे युवाओं को सिर्फ किताबी पढ़ाई तक सीमित न रखें। उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ कोई हुनर जरूर सिखाएं। जब युवा अपनी पढ़ाई के दौरान कमाने लायक बन जाएगा तो देश की अर्थव्यवस्था पर भगवान जगन्नाथ की कृपा खूब बरसेगी।About The Author
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