पद्मश्री कवि हलधर नाग: कष्टों को शब्दों में पिरोकर रची कविता

पद्मश्री कवि हलधर नाग: कष्टों को शब्दों में पिरोकर रची कविता

पद्मश्री कवि हलधर नाग: कष्टों को शब्दों में पिरोकर रची कविता

तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्मश्री अलंकरण ग्रहण करते हुए कवि हलधर नाग

भुवनेश्वर/दक्षिण भारत। सफेद धोती, नंगे पांव और चेहरे पर जीवन के उन अनुभवों की छाप जिन्हें सुखद नहीं कहा जा सकता, पहली ही नजर में वे एक किसान मालूम होते हैं जो तपती धरती और खुले आसमान के नीचे अपनी मेहनत से मुकद्दर लिखता है। ये हैं कवि हलधर नाग, जो पद्मश्री से सम्मानित हैं। कोसली में रचित इनकी कविताओं पर विद्यार्थी पीएचडी तक कर चुके हैं।

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सादगी और सरलता की मूर्ति हलधर नाग का जीवन बहुत कष्टमय रहा है लेकिन उन्होंने इन्हीं कष्टों में ऐसे शब्द ढूंढ़ लिए जिन्हें पिरोया तो कविता बन गई। 31 मार्च, 1950 को ओडिशा के बरगढ़ जिले में स्थित घेंस गांव में जन्मे हलधर जब 10 साल के थे तो पिता की मृत्यु हो गई। आर्थिक अभाव इतने ज्यादा थे कि तीसरी कक्षा के बाद चाहकर भी पढ़ाई जारी नहीं रख सके।

जीवन-नैया चलाने के लिए मिठाई की एक दुकान पर बर्तन धोने लगे। कुछ साल तक यही काम करते रहे, फिर एक स्कूल में खाना बनाने लगे। यह नौकरी 16 साल तक की। अब तक गांव में शिक्षा का प्रसार जोर पकड़ चुका था, काफी संख्या में बच्चे स्कूल जाने लगे थे, इसलिए उन्होंने स्टेशनरी और खान-पान की एक दुकान शुरू की, जिसके लिए बैंक से 1,000 रुपए का कर्ज लिया।

साल 1990 में हलधर ने ‘ढोडो बरगाछ’ (पुराना बरगद) शीर्षक से कविता लिखी, जो एक पत्रिका में प्रकाशित हो गई। इसे खूब सराहा गया और यहां से एक नया सफर शुरू हुआ। उन्होंने और कविताएं लिखीं और विभिन्न पत्रिकाओं में भेजीं, वे सभी प्रकाशित हो गईं।

हलधर की कविताएं पाठकों द्वारा बहुत पसंद की जातीं, उनका दूसरा भाषाओं में अनुवाद होने लगा। उन्हें विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाने लगा और वे कवितापाठ करने लगे।

हलधर को कविताप्रेमियों से इतना सम्मान मिला कि रोज ही करीब तीन-चार कार्यक्रमों के लिए बुलावे आ जाते हैं। प्रसिद्धि के बावजूद वे जमीन से जुड़े रहे और आज तक अपना पहनावा नहीं बदला। साल 2016 में जब उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया तो कवि हलधर ठेठ ग्रामीण पहनावे में ही सम्मान प्राप्त करने दिल्ली आए।

समाचारपत्रों और सोशल मीडिया में छपीं उनकी तस्वीरें देख देश-विदेश में लोगों का ध्यान इस कवि की ओर गया और उनकी रचनाओं की सुगंध हर दिशा में फैलने लगी। कवि हलधर सामाजिक विषयों, जीवन के उतार-चढ़ाव, अध्यात्म और प्रकृति पर कविताएं लिखते हैं।

संभलपुर विश्वविद्यालय इनकी रचनाओं को हलधर ग्रंथावली में प्रकाशित कर पाठ्यक्रम में शामिल कर चुका है। विवि उन्हें डॉक्टरेट डिग्री से भी सम्मानित कर चुका है। कवि हलधर को ‘लोक कवि रत्न’ की उपाधि दी गई जो कवि के साथ ही उनकी रचनाओं का सबसे बड़ा सम्मान है।

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