मेजर प्रमिला सिंह: बेसहारा जानवरों की पीड़ा महसूस करती एक योद्धा

मेजर प्रमिला सिंह: बेसहारा जानवरों की पीड़ा महसूस करती एक योद्धा

मेजर प्रमिला सिंह: बेसहारा जानवरों की पीड़ा महसूस करती एक योद्धा

मेजर प्रमिला सिंह

कोटा/दक्षिण भारत। साल 2020 में जब दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस पांव पसारने लगा तो भारत सरकार ने एहतियात बरतते हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ऐलान के साथ ही लोगों की सबसे पहली प्राथमिकता थी- अपने लिए भोजन का प्रबंध करना। इसके लिए दुकानों पर भीड़ उमड़ पड़ी। संपूर्ण लॉकडाउन में हर किसी की फिक्र इसी बात को लेकर थी कि जान बच जाए और पेट को समय पर रोटी मिलती रहे। इन सबके बीच, देश में कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने अपने अलावा उन जानवरों की भी परवाह की जो बोलकर नहीं बता सकते कि हम भूखे हैं, हमें प्यास लगी है या यह शिकायत नहीं कर सकते कि हमें किसी ने पीट दिया। वे दर्द सहकर आगे बढ़ जाते हैं।

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राजस्थान में कोटा निवासी एवं भारतीय सेना से बतौर मेजर सेवानिवृत्त हुईं प्रमिला सिंह ने अपनी जमा-पूंजी का एक बड़ा हिस्सा उन जानवरों पर न्योछावर कर दिया, जिनकी पीड़ा शायद ही कभी चर्चा का विषय बनती है। इस कार्य में उनके पिता श्यामवीर सिंह ने बहुत सहयोग दिया, जिन्हें प्रमिला अपना सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत मानती हैं। उनकी माता विजयेंद्री देवी आयुर्वेद चिकित्सक हैं, जो जीवसेवा के कार्यों में सदैव सम्मिलित रही हैं।

मेजर प्रमिला ने बताया कि पिताजी करीब तीन दशक से सेवाभाव के साथ बेसहारा जानवरों को भोजन, चिकित्सा आदि मुहैया करा रहे हैं। वे जलदाय विभाग में वरिष्ठ इंजीनियर रहे हैं। अब सेवानिवृत्ति के बाद अपनी पेंशन जीवदया के कार्यों पर खर्च करते हैं। लॉकडाउन में ऐसी कई घटनाएं हुईं जब किसी ने अपने पालतू श्वान (डॉग) को बीमारी के डर से बाहर निकाल दिया, कोई गाय भूख-प्यास से परेशान थी, किसी बंदर को करंट लग गया … ऐसे में मुझसे उनकी तकलीफ देखी नहीं गई और अपने संसाधनों से उनकी मदद करने की कोशिश की।

मेजर प्रमिला सिंह: बेसहारा जानवरों की पीड़ा महसूस करती एक योद्धा
मेजर प्रमिला सिंह

चींटी से लेकर इन्सान, हर कोई ‘शक्तिमान’
मेजर प्रमिला स्कूली दिनों से ही प्रतिभाशाली छात्रा रही हैं। वे प्रकृति से गहरा लगाव रखती हैं। उन्होंने बताया कि प्रकृति ने एक चीज भी ऐसी नहीं बनाई जिसका कोई महत्व नहीं है। चींटी से लेकर इन्सान तक, हर किसी को खास शक्तियां दी हैं। जो इन्सान प्रकृति से प्रेम करता है, वह किसी जीव को हानि पहुंचाने के बारे में नहीं सोच सकता। प्रमिला ने जयपुर से उच्च शिक्षा के बाद भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन किया। वहां उनका चयन इंजीनियर कोर में लेफ्टिनेंट पद पर हुआ। सेना में सेवा देते हुए उनका तबादला अलग-अलग स्थानों पर होता रहा। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि इन्सान का खुद को सर्वशक्तिमान समझना कोरा भ्रम है। धरती पर ऐसे अनेक जीव हैं जो कई मायनों में अनूठी शक्ति रखते हैं। जैसे: भूकंप आने से पहले जलाशय में मछलियों की प्रतिक्रिया इसका संकेत दे देती है। बरसात से पहले चींटियां अपने अंडों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की कोशिश करती हैं। इन जीवों की यह शक्ति हमें हैरान कर सकती है, क्योंकि न इनके पास कोई वैज्ञानिक यंत्र हैं और न ही आधुनिक शिक्षा। फिर यह कैसे संभव है?

समझें प्रकृति के संकेत
मेजर प्रमिला ने बताया कि प्रकृति के इन संकेतों को वही समझ सकता है जो खुद उससे जुड़ा रहता है। उनके मुताबिक, हमारे प्राचीन ग्रंथों, शास्त्रों में ऐसी अनेक बातों का उल्लेख मिलता है जहां तक पहुंचना आधुनिक विज्ञान के लिए अभी संभव नहीं हुआ है। हमारे ऋषियों ने ज्योतिष गणना के माध्यम से ग्रहों की ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने के उपाय बताए हैं, जिन्हें लोग सदियों से मान रहे हैं।

जब सत्य सिद्ध होने लगे आकलन
मेजर प्रमिला के अनुसार, उन्होंने सेना में सेवा देने के साथ प्राचीन भारतीय ज्योतिष, वास्तु एवं टैरोकार्ड का अध्ययन किया। वर्षों अध्ययन के बाद उन्होंने पाया कि भारतीय ज्योतिष ऐसा विज्ञान है जिसके पीछे हमारे ऋषियों का दिव्य दर्शन है। उन्हें ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करते देख कुछ लोगों ने उत्सुकतावश सवाल किए। प्रमिला ने आकलन कर जो निष्कर्ष बताया, आश्चर्यजनक रूप से वह भविष्य में सत्य सिद्ध हुआ। इससे प्रमिला की ख्याति फैलने लगी। सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद अब वे अपना ज्यादातर समय बेसहारा जीवों की सेवा और ज्योतिष के अध्ययन में ही बिताती हैं।

मेजर प्रमिला सिंह: बेसहारा जानवरों की पीड़ा महसूस करती एक योद्धा
एक घायल श्वान जिसकी मेजर प्रमिला सिंह ने सेवा की है।

हर जीव ईश्वर की रचना
मेजर प्रमिला बताती हैं कि इस कार्य से जो भी सहयोग राशि मिलती है, वह उन जानवरों के भोजन, चिकित्सा, आवास पर खर्च करती हूं जिन्हें समाज में अक्सर दुत्कारा ही जाता है। इन्हें लोग आते-जाते बेवजह चपत लगा जाते हैं, पत्थर मार देते हैं, बिना यह समझे कि जानवर की रचना भी उसी ईश्वर ने की है, जिसने इन्सानों का सृजन किया है। इसलिए मेरी कोशिश होती है कि इनकी तकलीफें कुछ कम कर दूं। मैं कोई एनजीओ नहीं हूं और इस कार्य के लिए कोई दान नहीं लेती। अगर कोई इन जीवों की मदद करना चाहता है तो मुझे दान न भेजे, बल्कि मेरे ज्ञान से सेवाएं ले।

हर कण में ईश्वर के दर्शन
मेजर प्रमिला ने कहा कि अहंकार हमारा बहुत बड़ा शत्रु है। जब इन्सान को यह अहंकार हो जाता है कि मैं ही सबकुछ हूं, तो वह अन्य जीवों पर अत्याचार करता है। जो अहंकार से दूर होकर सबके अस्तित्व को स्वीकार करता है, वह हर कण में ईश्वर के दर्शन करता है।

प्रस्तुति: राजीव शर्मा (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) मो: +91 8949 380 771

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