अब गिद्धों के लिए बनेगा खास रेस्त्रां!

अब गिद्धों के लिए बनेगा खास रेस्त्रां!

गिद्ध प्रतीकात्मक चित्र

अगरतला/भाषा। पयार्वरण को साफ सुथरा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला प्राणी गिद्ध, इंसानों की गिद्ध दृष्टि से अपनी जान बचाने में जुटा है और अब उसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए त्रिपुरा वन विभाग भी जरूरी उपाय कर रहा है। अपने पर्यावरण संरक्षण प्रयासों के तहत त्रिपुरा वन विभाग गिद्धों की अलग से एक बस्ती बसाने की योजना पर काम कर रहा है।

खौवाई जिले में बसाई जाने वाली इस बस्ती में गिद्धों को जहां पर्याप्त भोजन मिलेगा वहीं अपनी प्रकृति के अनुरूप माहौल भी उन्हें मुहैया कराया जाएगा। हाल ही में इसी जिले में इस विलुप्तप्राय: प्राणी को देखा गया था। मरे हुए जीव जंतुओं को खाने वाला पक्षी गिद्ध पर्यावरण को साफ सुथरा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है लेकिन इसके अस्तित्व पर कई प्रकार के खतरे मंडरा रहे हैं जिनमें से एक खतरा दर्दनिवारक दवा डाइक्लोफेनिक भी है। साथ ही अपने आवासीय इलाकों के नष्ट होने से भी गिद्ध बेघर होकर अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

खौवाई के प्रखंड वन अधिकारी (डीएफओ) नीरज कुमार चंचल ने बताया कि नदी के तट के समीप वाले कल्याणपुर इलाके में २६ और छेबरी इलाके में 10 गिद्ध देखे गए हैं। चंचल ने बताया, हम कल्याणपुर और छेबरी में गिद्धों के लिए रेस्त्रां बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं ताकि इन प्राणियों को भोजन की समस्या न रहे। हम इन रेस्त्रां में गिद्धों के लिए मरे हुए जानवरों की आपूर्ति करेंगे। इससे गिद्धों को अपने आवास और प्रजनन स्थलों के पास ही भोजन उपलब्ध हो सकेगा।

पूर्व मुख्य वन्यजीव वार्डन अतुल गुप्ता द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के नतीजों में बताया गया था कि राज्य में दक्षिणी त्रिपुरा और सिपाहीजाला में भी यह पक्षी अच्छी खासी संख्या में देखा गया है। चंचल ने बताया, हालांकि भारत ने दर्दनिवारक दवा डाइक्लोफेनिक पर रोक लगाई हुई है लेकिन जानवरों के लिए इस्तेमाल की जाती रही इस दवा को अब फार्मा कंपनियां इंसानों के लिए बना रही हैं। किसान अक्सर अपने मवेशियों के इलाज में इस दवा का अवैध रूप से इस्तेमाल करते हैं।

इस दवा की अधिक मात्रा के संपर्क में आने से गिद्ध अंडे देने में असमर्थ हो जाते हैं। उन्होंने साथ ही बताया कि त्रिपुरा में किसान इस दवा का इस्तेमाल मवेशियों के लिए नहीं करते हैं क्योंकि यह काफी महंगी होती है। बांबे नेचर हिस्ट्री सोसायटी ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि हिंदुस्तान में कभी दो करोड़ गिद्ध हुआ करते थे लेकिन 2009 तक उनकी संख्या एक प्रतिशत पर आ चुकी है।

Google News
Tags:

About The Author

Post Comment

Comment List

Advertisement

Latest News

'छद्म युद्ध' की चुनौतियां 'छद्म युद्ध' की चुनौतियां
आर्थिक दृष्टि से अधिक शक्तिशाली भारत अपने दुश्मनों पर और ज्यादा शक्ति के साथ प्रहार कर सकेगा
दपरे: कारगिल युद्ध के वीरों के सम्मान में सेंट्रल हॉस्पिटल ने रक्तदान शिविर लगाया
कर्नाटक सरकार ने रामनगर जिले का नाम बदलकर बेंगलूरु दक्षिण करने का फैसला किया
मराठा लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंटल सेंटर ने कारगिल युद्ध विजय की 25वीं वर्षगांठ मनाई
एमयूडीए मामला: प्रह्लाद जोशी ने सिद्दरामैया पर आरोप लगाया, सीबीआई जांच की मांग की
भोजनालयों पर नाम प्रदर्शित करने संबंधी निर्देश पर योगी सरकार ने उच्चतम न्यायालय में क्या दलील दी?
'विपक्षी दल के रूप में काम नहीं कर रही भाजपा, कुछ भी गलत या घोटाला नहीं हुआ'