उपसभापति चुनाव में हार के बाद अब उठ रहे राहुल की रणनीति पर सवाल
उपसभापति चुनाव में हार के बाद अब उठ रहे राहुल की रणनीति पर सवाल
नई दिल्ली। राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता सियासी गुणा-गणित में उलझे हैं। चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि पार्टी के पास पर्याप्त नंबर हैं, लेकिन नतीजा इससे बिल्कुल अलग था। इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हरिवंश नारायण सिंह को विजय दिलाने के लिए जितनी सक्रियता दिखाई, वैसी कांग्रेसी खेमे में अपने उम्मीदवार के लिए नहीं दिखी। अब कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि यदि उनकी रणनीति बेहतर होती तो तस्वीर कुछ और ही होती।
आम आदमी पार्टी मतदान प्रक्रिया से दूर रही। कहा जा रहा है कि यदि राहुल गांधी केजरीवाल से संपर्क करते तो शायद उनका रुख बदल सकता था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके विपरीत मोदी और नीतीश ने बीजद का समर्थन पाने के लिए नवीन पटनायक से संपर्क करने में देर नहीं लगाई। इसका उन्हें फायदा मिला। बीजद के सांसदों के समर्थन से राजग उम्मीदवार जीत गए।यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस ने उपसभापति चुनाव के लिए विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया। अगर वे कोई गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार खड़ा करते तो इस बात की ज्यादा संभावना थी कि उसका समर्थन करने के लिए ऐसे दल आगे आ जाते जो भाजपा और कांग्रेस – दोनों में से किसी के साथ नहीं जाना चाहते। भले ही इससे उनका उम्मीदवार न जीतता, लेकिन विपक्ष के मतों की संख्या ज्यादा होती। इसे वे विपक्ष की एकजुटता के तौर पर दिखा सकते थे।
विपक्ष के कई नेता राहुल गांधी पर सवाल उठा रहे हैं कि जब नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल को फोन किया तो उन्हें भी एक बार संपर्क जरूर करना चाहिए था। विपक्ष को आशा थी कि इस चुनाव में कांग्रेस किसी अन्य सहयोगी दल के सदस्य के नाम को आगे बढ़ाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे विपक्ष की शक्ति एकजुट होने से पहले ही खंडित हो गई।
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