खुशहाली का अर्थशास्त्र

हमारा एक त्योहार करोड़ों चेहरों पर समृद्धि की मुस्कान लाने की शक्ति एवं सामर्थ्य रखता है

खुशहाली का अर्थशास्त्र

स्वदेशी पर खर्च किया गया पैसा किसी न किसी रूप में लौटकर आपके पास आएगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'वोकल फॉर लोकल' और 'स्वदेशी अपनाएं' का जो आह्वान किया, उसका असर दिखाई देने लगा है। इस बार लोग दीपावली मनाने के लिए स्वदेशी चीजों को प्राथमिकता दे रहे हैं। गांवों और ढाणियों से लेकर महानगरों तक स्वदेशी का दबदबा नजर आ रहा है। अयोध्या में ही कई कुम्हार परिवार दिन-रात मिट्टी के दीये बनाने में व्यस्त हैं। वे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अपने प्रॉडक्ट्स की गुणवत्ता को और बेहतर बना रहे हैं। इन्हें सोशल मीडिया ने बड़ा मंच दे दिया है, जिससे इनकी कला को पहचान मिली है। कुम्हार परिवारों में ऐसे प्रतिभावान लोग हैं, जिनकी मेहनत देखकर लोग चकित रह जाते हैं। किसी ने मिट्टी का ऐसा दीया बनाया है, जो रोशनी को कई गुणा बढ़ा देता है, तो किसी ने दीये पर ऐसी कलाकारी की है कि रोशनी में लक्ष्मीजी वरदान देती नजर आती हैं। मिट्टी को सुंदर कलाकृति में ढालना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए वर्षों तपस्या करनी पड़ती है। यह सुखद है कि अब लोग स्वदेशी का महत्त्व समझने लगे हैं। हालांकि विदेशी चीजों के प्रति आकर्षण अपनी जगह है, लेकिन स्वदेशी के साथ सबका हित जुड़ा होने का सिद्धांत जीवन में शामिल होने लगा है। हमारे सभी त्योहारों का आधार इतना अद्भुत है कि उन्हें उनकी असल भावना के साथ मनाया जाए तो सर्वसमाज में खुशहाली आ सकती है। दीपावली पर सिर्फ दीयों की बात करें तो इनसे कुम्हार परिवारों को रोजगार मिलता है। उनके अलावा कपास और तेल उद्योग से जुड़े लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। चूंकि इन दोनों चीजों का आधार खेती है, इसलिए किसान को भी फायदा होता है।

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सोचिए, सिर्फ दीया, बाती और तेल के साथ इतने परिवारों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है तो कपड़े, मिठाई, क़लम, दवात, पूजन सामग्री, अनाज, जूतों, गहनों के साथ कितने लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी होगी? हमारा एक त्योहार करोड़ों चेहरों पर समृद्धि की मुस्कान लाने की शक्ति एवं सामर्थ्य रखता है। भारत में ऐसे कितने व्रत-त्योहार और खास अवसर होते हैं? अगर हम उन सबके साथ स्वदेशी की भावना को जोड़ दें तो भारत की अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत हो सकती है! हमारे देश में हर राज्य के भी खास व्रत-त्योहार होते हैं, जिनका दायरा व्यापक होता जा रहा है। यह विविधता हमारी ऐसी शक्ति है, जिसकी ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। जो पश्चिमी देश कभी टैरिफ, तो कभी अंतरराष्ट्रीय नियमों एवं संधियों का हवाला देकर हम पर अनुचित दबाव डालने की कोशिश करते रहते हैं, उनके पास ऐसी कौनसी व्यवस्था है? भारत को स्वदेशी के दम पर ही समृद्ध और खुशहाल बनाया जा सकता है। विदेशी चीजें शुरुआत में तो आकर्षक लगती हैं, लेकिन वे सर्वसमाज का भला नहीं कर सकती हैं। उन पर खर्च किया गया पैसा विदेशी व्यापारियों को समृद्ध बनाएगा, जबकि स्वदेशी पर खर्च किया गया पैसा किसी न किसी रूप में लौटकर आपके पास आएगा। अगर लोग स्वदेशी अपनाने के संकल्प को त्योहारों के बाद भी दृढ़ता से निभाएं तो बेरोजगारी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। अगर बेरोजगारी कम हो गई तो अपराध भी कम हो जाएंगे। देश में सुख-चैन का वातावरण बन जाएगा। सरकारी नौकरी के इंतजार में वर्षों बैठे रहने से बेहतर है कि युवा कोई ऐसा हुनर सीखें, जिससे लोगों की जरूरतें जुड़ी हुई हैं। वे ईमानदारी से काम करें और सोशल मीडिया पर प्रचार करें। अब भारत में इतना बड़ा बाज़ार है कि उनके साथ कई लोगों का भला हो जाएगा।

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