बांग्लादेश में 'झूठ की दुकान'

हमारे पड़ोस में यह दुकान कुछ ज्यादा ही चल निकली है

बांग्लादेश में 'झूठ की दुकान'

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का हो रहा उत्पीड़न

अगर झूठ पर लीपापोती कर उसे सच की शक्ल में पेश करने के बदले कोई पुरस्कार मिलता तो बांग्लादेश के 'मुख्य सलाहकार' मोहम्मद यूनुस उसके दूसरे सबसे बड़े हकदार होते। पहला नंबर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का होता। उन्होंने नोबेल पुरस्कार पाने की लालसा में भारत-पाक संघर्ष रुकवाने के झूठे दावे किए थे। वे एक ही झूठ को बार-बार दोहराते रहे, ताकि वह सच लगने लगे और लोग भ्रमित हो जाएं। अब यूनुस ने मोर्चा संभाल लिया है। वे यह कहकर ट्रंप को पछाड़ना चाहते हैं कि 'बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ कोई हिंसा नहीं हुई और भारत फर्जी खबरें फैला रहा है!' यहां बड़ा फर्क यह है कि डोनाल्ड ट्रंप ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए बहुत पांव पटके थे, वे नाकाम रहे, जबकि मोहम्मद यूनुस को साल 2006 में ही यह पुरस्कार मिल गया था। उनके 'मुख्य सलाहकार' बनने के बाद किए गए कारनामे देखकर नोबेल पुरस्कार समिति के सदस्यों ने भी अपने माथे पीट लिए होंगे। यूनुस ने अपनी पूरी ऊर्जा राजनीतिक प्रतिशोध लेने और भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने में ही खर्च कर दी। उनके राज में अल्पसंख्यकों की जो हालत हुई, वह किसी से छिपी हुई नहीं है। यूनुस पूरी तरह कागजी शेर साबित हुए हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर पहले भी अत्याचार होते थे। खासकर दुर्गापूजा के दौरान कट्टरपंथी ऐसा कांड जरूर करते थे, जिससे वे अपने ही देशवासियों को सता सकें। यूनुस से आशा थी कि वे कट्टरपंथियों और उपद्रवियों को नकेल डालेंगे, लेकिन वे भारत पर ही तोहमत लगा रहे हैं।

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बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों के घरों, प्रतिष्ठानों और पूजन स्थलों पर जो हमले हुए थे, उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर मिल जाएंगे। यूनुस उन्हें देख सकते हैं। एक नवंबर, 2024 को चटग्राम में लगभग 30,000 हिंदुओं ने रैली क्यों निकाली थी? क्या इतने सारे लोग एकसाथ सैर-सपाटा करने निकले थे? यूनुस को मालूम होना चाहिए कि वे लोग अपने लिए सुरक्षा चाहते थे, जो सरकार नहीं दे पाई। दुर्भाग्य की बात है कि जिस समाज ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए इतने बलिदान दिए, उसे अपने ही देश में सुरक्षा की मांग करनी पड़ रही है! यह नौबत क्यों आई? यूनुस अपनी कमजोरियों और कोताहियों का ठीकरा किसी और के सिर पर क्यों फोड़ना चाहते हैं? उन्होंने यह कहकर कि 'अभी भारत की एक खासियत है झूठी खबरें फैलाना ... झूठी खबरों की बारिश हो रही है', अपनी नाकामी का एक और सबूत पेश किया है। अगर भारत झूठी खबरें फैला रहा है तो आप सच्ची खबरें क्यों नहीं फैलाते? बेशक बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है, लेकिन अभी इतने बुरे हालात नहीं हैं कि वह 'सच्ची खबरें' न दिखा सके। जिन लोगों ने चटग्राम में रैली निकाली थी, उनमें से ही दर्जनभर लोगों को कैमरे के सामने लाकर बता दें कि बांग्लादेश में सद्भाव की लहर चल रही है, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की ख़बरें कोरी अफवाह हैं! क्या यूनुस ऐसा कर पाएंगे? नहीं, क्योंकि उसके बाद उनके झूठ की पूरी तरह पोल खुल जाएगी। लोग उन वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा करना शुरू कर देंगे, जो उन्होंने उस समय रिकॉर्ड किए थे। यूनुस की यह टिप्पणी भी हास्यास्पद है कि 'सरकार इस मामले में बहुत सावधान है, क्योंकि यह एक ऐसी चीज है जिसे भारत हमेशा आगे बढ़ाता है कि हम दबाव बना रहे हैं।' भारत में तो लोगों को सरकारों से शिकायत रही है कि वे बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के हक में आवाज उठाने से परहेज करती हैं। सरकारों की नरमी का नतीजा है कि बांग्लादेश और मालदीव भी भारत को आंखें दिखाते रहते हैं। बांग्लादेश में 'झूठ की दुकान' कुछ ज्यादा ही चल निकली है। अब भारत सरकार को ज्यादा गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। इस पड़ोसी देश में शांति और स्थिरता होना भारत के लिए बहुत जरूरी है।

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