सच्ची समृद्धि का सूत्र

अविवेकपूर्वक खर्च करने से जीवन में परेशानियां आती हैं

सच्ची समृद्धि का सूत्र

'कर्ज लेकर घी पीने' की आदत से बचना चाहिए

मनुष्य को अपने जीवन की विभिन्न जरूरतें पूरी करने के लिए धन कमाना और उसे खर्च करना होता है। सुखी जीवन के लिए बुद्धिपूर्वक कमाने और विवेकपूर्वक खर्च करने की कला का ज्ञान होना चाहिए। ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जिनकी महीने की कमाई लाखों में है, फिर भी 15 तारीख आते-आते तंगी में गुजारा करने को मजबूर हो जाते हैं! वे धन कमाना तो जानते हैं, लेकिन उसे सही तरीके से खर्च करना नहीं जानते। वे इस वजह से परेशानियों का सामना करते हैं। 'तेते पांव पसारिए, जेती लांबी सौर' - जैसी कहावतें यूं ही नहीं बनी हैं। हमारे पूर्वजों ने ऐसे लोगों को देखा था, जिन्होंने धन तो खूब कमाया, लेकिन अविवेकपूर्वक खर्च करने की आदत से परेशानियों के भंवर में फंसे थे। उनके जीवन में वित्तीय अनुशासन नहीं था, इसलिए उन्हें दूसरों के सामने हाथ फैलाने पड़े थे। कोरोना काल में जब काम-धंधे ठप पड़ गए थे, तब वित्तीय अनुशासन अपनाने वाले परिवार उस संकट में मजबूती से खड़े रहे थे। वहीं, अपनी कमाई से ज्यादा खर्च करने वालों को बहुत तंगी का सामना करना पड़ा था। देश-दुनिया में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे। माइकल जैक्सन, जो पॉप संगीत के बादशाह माने जाते थे, की कमाई अरबों में थी। उनका नाम अपने समय के सबसे धनी कलाकारों में शुमार किया जाता था। वे जीवन के आखिरी वर्षों में दिवालियापन के कगार पर खड़े थे। अनियंत्रित खर्चों और गलत वित्तीय फैसलों ने एक समृद्ध कलाकार को उस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया था, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी।

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भारत के एक मशहूर उद्योगपति के बेटे कभी अपनी शानो-शौकत के लिए जाने जाते थे। उन्हें अपने पिता से विरासत में इतना धन मिला था कि अगर सूझबूझ से काम लेते तो बहुत उन्नति करते। उनके गलत वित्तीय फैसलों की वजह से कंपनी की हालत खस्ता हो गई। उन पर कई बैंकों का कर्ज चढ़ गया। वे आजकल मुकदमेबाजी का सामना कर रहे हैं। इसी तरह, एक और उद्योगपति ने अपनी कंपनी के आकर्षक कैलेंडरों की वजह से खूब सुर्खियां बटोरी थीं। उनके ठाठ निराले थे। लोग उनके वीडियो देखकर कहते थे, 'किस्मत हो तो ऐसी!' अब वे उद्योगपति बैंक ऋण धोखाधड़ी के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। भारत सरकार विदेश से उनके प्रत्यर्पण की कोशिश कर रही है। अविभाजित भारत में जन्मे और बाद में पाकिस्तान जाकर शहंशाह-ए-ग़ज़ल के तौर पर मशहूर हुए मेहदी हसन को बुढ़ापे में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा था। उनके परिवार को चिकित्सा खर्च के लिए मदद की गुहार लगानी पड़ी थी। ये उदाहरण बताते हैं कि धन का होना ही काफी नहीं है। उसे संभालने और खर्च करने की कला आनी चाहिए। आज भारत का मध्यम वर्ग तेजी से बदलते सामाजिक और आर्थिक माहौल में देखादेखी की आदत का शिकार हो रहा है। अगर पड़ोसी ने नई कार खरीद ली तो उसे भी चाहिए। अगर दफ्तर में किसी ने महंगा स्मार्टफोन ले लिया तो उसे भी लेना है। अगर किसी सहेली ने महंगा जेवर बनवा लिया तो उसके पास भी होना चाहिए। अमीरी का यह नकली प्रदर्शन लोगों को अनावश्यक खर्चों की ओर धकेल रहा है। इसका नतीजा यह है कि घरों में क्लेश है, जीवन में अशांति है। अनावश्यक खर्चों के मकड़जाल में ऐसे उलझे हुए हैं कि बाहर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता। इन लोगों से तो वह व्यक्ति ज्यादा सुखी है, जो कम कमाता है, लेकिन उसमें से भी कुछ-न-कुछ बचाता है। अविवेकपूर्वक खर्च करने और 'कर्ज लेकर घी पीने' की आदत परेशानियों को न्योता देती है। विवेकपूर्वक खर्च करने में ही सच्ची समृद्धि है।

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