3 दिनों में 100 गुना ट्रैफ़िक वृद्धि! स्वदेशी मैसेजिंग ऐप 'अरट्टाई' का कमाल
नए साइन-अप 3 हज़ार/दिन से बढ़कर 350 हज़ार/दिन हो गए हैं
Photo: @Arattai X account
चेन्नई/दक्षिण भारत। ज़ोहो कॉर्पोरेशन द्वारा पेश किए गए मैसेजिंग ऐप 'अरट्टाई' को यूजर्स से भरपूर समर्थन मिल रहा है। कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक श्रीधर वेंबू ने अपने एक्स अकाउंट पर कहा, 'हमने तीन दिनों में अरट्टाई के ट्रैफ़िक में 100 गुना वृद्धि देखी है (नए साइन-अप 3 हज़ार/दिन से बढ़कर 350 हज़ार/दिन हो गए हैं)। हम संभावित 100 गुना वृद्धि के लिए आपातकालीन आधार पर बुनियादी ढांचा जोड़ रहे हैं। घातांक इसी तरह काम करते हैं।'
उन्होंने कहा, 'जैसे-जैसे हम और ज़्यादा बुनियादी ढांचा जोड़ रहे हैं, हम कोड को भी बेहतर बना रहे हैं और उसे अपडेट कर रहे हैं, ताकि आने वाली समस्याओं को ठीक किया जा सके। हमारे सभी कर्मचारी पूरी ताकत से काम कर रहे हैं।'श्रीधर वेंबू ने कहा, 'दरअसल, हमने नवंबर तक एक बड़ी रिलीज़ की योजना बनाई थी, जिसमें आपकी उम्मीद के मुताबिक कई सुविधाओं, क्षमता में भारी वृद्धि और मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा। और फिर अचानक यह वर्टिकल हो गया!'
उन्होंने कहा, ''अरट्टाई' के लिए हमारे पास और भी बहुत योजनाएं हैं, कृपया हमें कुछ समय दें। आपके धैर्य और सहयोग के लिए धन्यवाद! जय हिंद!'
बता दें कि कहा है कि कंपनी ने अरट्टाई' को मुफ़्त, सुरक्षित और उपयोग में आसान मैसेजिंग ऐप बताया है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो यह भारत में वॉट्सऐप का विकल्प बन सकता है।
इससे पहले, श्रीधर वेंबू ने कहा था, 'हमने इसे इसलिए बनाया, क्योंकि हमें लगा कि भारत में इस तरह की इंजीनियरिंग क्षमता की ज़रूरत है। हमें भारत में ऐसी और भी कई क्षमताओं की ज़रूरत है और हम इस पर काम कर रहे हैं।'
उन्होंने कहा, 'ज़ोहो में हमारे कुछ बेहद महत्वाकांक्षी, दीर्घकालिक अनुसंधान एवं विकास प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनमें कंपाइलर, डेटाबेस, ऑपरेटिंग सिस्टम, सुरक्षा, हार्डवेयर, चिप डिज़ाइन, रोबोटिक्स (एआई की तो बात ही छोड़िए) वगैरह शामिल हैं। इसके अलावा, हमने कई अनुसंधान एवं विकास-केंद्रित कंपनियों में निवेश किया है, जिनके बारे में हमें पता है कि वे जल्द ही पैसा नहीं कमा पाएंगी।'
उन्होंने कहा, 'ज़ोहो एक तरह की औद्योगिक अनुसंधान प्रयोगशाला है, जो खुद को फंड करने के लिए भी पैसा कमाती है। हम अल्पकालिक मुनाफ़े को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जब तक कि हमें नुकसान न हो। और हमारे यहां संस्थापकों और वरिष्ठ अधिकारियों की एक ऐसी संस्कृति है, जो मितव्ययता से जीवन यापन करती है, जैसे इसरो के अच्छे वैज्ञानिक और इंजीनियर मितव्ययता से जीवन यापन करते हैं। हमारे लिए यही भारत का सार है। जापान अपने विकास के दौरान इसी तरह काम करता था। कल्पना कीजिए कि आप वॉल स्ट्रीट या दलाल स्ट्रीट को ये सब बता रहे हों!'


