स्वदेशी: स्कूल बनें आंदोलन के केंद्र

विदेशी चीजों को इस्तेमाल से बाहर करते जाएं

स्वदेशी: स्कूल बनें आंदोलन के केंद्र

विदेशी चीजों के स्वदेशी विकल्प तलाशें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों और विद्यार्थियों का जिन शब्दों में आह्वान किया है, वे आज अत्यंत प्रासंगिक हैं। अगर शिक्षक और विद्यार्थी इस मुहिम को आगे बढ़ाएं तो देश में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। भारत का सौभाग्य रहा है कि यहां महान शिक्षक हुए हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान और मार्गदर्शन से इतिहास रच दिया। अगर शिक्षक 'चाणक्य' हों तो उन्हें 'चंद्रगुप्त' मिल ही जाते हैं। यहां बड़ा सवाल है- स्वदेशी की मुहिम को शिक्षक कैसे आगे बढ़ाएं? उन्हें सबसे पहले खुद से शुरुआत करनी होगी। वे पता लगाएं कि सुबह उठकर तैयार होने, स्कूल आने, बच्चों को पढ़ाने और घर जाने के बाद रात्रि विश्राम तक कितनी स्वदेशी और विदेशी चीजों का इस्तेमाल करते हैं? उन सबकी सूची बनाएं। अब उन पर नजर डालें और पता लगाएं- जो विदेशी चीजें इस्तेमाल करते हैं, उनके स्वदेशी विकल्प कितने हैं? अपनी सुविधानुसार विदेशी चीजों को इस्तेमाल से बाहर करते जाएं। याद रखें, स्वदेशी को बढ़ावा देने का काम एक दिन का नहीं है। इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। अब टूथब्रश/पेस्ट, साबुन, घड़ी, कपड़े, जूते, बैग, मोबाइल फोन जैसी चीजों के स्वदेशी विकल्प आसानी से उपलब्ध हैं और उनकी गुणवत्ता भी अच्छी है। जब शिक्षक खुद संकल्पबद्ध होकर स्वदेशी चीजों का इस्तेमाल करने लगेंगे तो यह संदेश उनके परिवार, मोहल्ले में जरूर जाएगा। इसके बाद वे विद्यार्थियों से भी कह सकेंगे कि हमें स्वदेशी को बढ़ावा देना है। विदेशी पेय, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं, उनको तो पहले ही दिन घर से विदा कर दें। जब हमारे देश में दूध, लस्सी और दर्जनों तरह के शर्बत एवं फलों के रस मौजूद हैं तो विदेश के हानिकारक पेय को मुंह क्यों लगाएं?

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शिक्षकों को चाहिए कि वे सुबह प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे महापुरुषों के बारे में बताएं, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए स्वदेशी को एक मिशन बना लिया था। अब हमें उस मिशन को आगे बढ़ाना है, ताकि अपने देश को समृद्ध एवं सशक्त बना सकें। विद्यार्थियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि पेन, पेंसिल, नोटबुक, स्याही, बैग, जूते, जुराब और ऐसी सभी चीजें जो स्कूल में लेकर आते हैं, वे स्वदेशी हों। यह काम स्नेह और समझाइश से ही होना चाहिए। किसी तरह की सख्ती न दिखाएं। जो विद्यार्थी सबसे ज्यादा स्वदेशी चीजों को बढ़ावा दे रहा हो, उसे प्रार्थना सभा में सम्मानित करना चाहिए। विद्यार्थियों से यह अपील करें कि वे अपने माता-पिता, भाई-बहन, परिजन, दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों आदि तक यह संदेश पहुंचाएं। स्वदेशी को बढ़ावा देने से किस तरह हम सबको फायदा होगा, हमारी अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत होगी और अभी क्या चुनौतियां हैं - इन सबके बारे में आसान शब्दों में समझाएं। 'स्वदेशी को बढ़ावा दें' - जैसे विषय पर निबंध, कविता लेखन, पोस्टर निर्माण, नाटक मंचन, प्रभात फेरी जैसे कार्यक्रम करवाएं। स्कूलों में स्थानीय कारीगरों, उद्यमियों को आमंत्रित करें। उनके उत्पादों की प्रदर्शनी लगवाएं। बच्चों को गृहकार्य में स्वदेशी पर आधारित प्रश्न दें। इन प्रश्नों को परीक्षाओं में भी शामिल करें। स्वदेशी का मुद्दा सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी डिबेट तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसे जन-जन तक पहुंचाना होगा। यह इस सदी का बहुत बड़ा आंदोलन बनना चाहिए। कुछ लोग इस आंदोलन का मजाक उड़ाने की कोशिश कर सकते हैं। जब महात्मा गांधी ने चरखे को स्वदेशी का प्रतीक बनाया था, तब उनके खिलाफ भी खूब टीका-टिप्पणी हुई थी। हमें ऐसी बातों से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। हर नागरिक को स्वदेशी अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।

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