स्वार्थ को तजे बिना धार्मिकता की कल्पना नहीं: कमल मुनि कमलेश
जितने स्वार्थ का विसर्जन करते जाएंगे, धर्म के नजदीक होते जाएंगे

स्वार्थ का त्याग के बिना सम्यक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती
चेन्नई/दक्षिण भारत। यहां के साहुकारपेट स्थित जैन भवन में रविवार को राष्ट्र संत कमल मुनि जी कमलेश ने धर्मसभा को संबोधित करते कहा कि जितने जितने हम स्वार्थ का विसर्जन करते जाएंगे, उतना ही धर्म के नजदीक होते जाएंगे। स्वार्थ का त्याग के बिना धार्मिकता की कल्पना नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा कि स्वार्थ में अंधा बना हुआ मानव का विवेक लुप्त हो जाता है। उसके काले कारनामे से शैतान भी शर्मिंदा हो जाता है, सभी अनर्थ की खान स्वार्थ है। स्वार्थ में कमी पड़े तो भगवान भी शैतान के रूप में नजर आते हैं, और स्वार्थ पूर्ति हो हो जाए तो मिट्टी भी भगवान भगवान के रूप में स्वीकार कर लेता है।मुनि कमलेश ने कहा कि स्वार्थ के कीटाणु खून के रिश्ते में भी कड़वाहट खोल देते हैं। परस्पर दुश्मन और शत्रु बन जाते हैं स्वार्थ का त्याग के बिना सम्यक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
राष्ट्रसंत ने कहा कि सभी धर्म ने स्वार्थ को हिंसा की जनानी बताया है। आत्मा की खतरनाक शत्रु है। दुर्गति का मेहमान बनाती है निष्काम और निस्वार्थ भावों का निर्माण होने पर ही आत्मा का धर्म में प्रवेश होता है।
जैन संत ने बताया कि संसार छोड़कर साधु बन जाना सरल है, परंतु स्वार्थ का त्याग करना अत्यंत दुष्कर है साधना का स्वार्थ हमारे लिए अभिशाप बनता है। अंत में कहा कि दूसरों के परमार्थ के लिए अपने स्वार्थ का बलिदान करता है वही सच्चा धार्मिक है। अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों के हित को चोट पहुंचाने वाला धार्मिक तो क्या इंसान कहलाने का अधिकार नहीं है।
चातुर्मास समिति के चेयरमैन सुरेश लुणावत, अध्यक्ष प्रकाश खिंवेसरा, ज्ञानचंद कटारिया, जितेंद्र भंडारी ने तपस्वियों का स्वागत किया। डॉक्टर संजय पिंचा ने संचालन किया।
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