आयुर्वेद है जीवन और गरीब के प्रति पूरा-पूरा न्याय: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
'आयुर्वेद सिद्ध विद्या है'

डाॅक्टराें ने बड़ी तल्लीनता से संत काे सुना और बाताें काे सराहा
धर्मस्थला/दक्षिण भारत। स्थानीय धर्मस्थला मंजुनाथेश्वरा काॅलेज ऑफ आयुर्वेद एंड हाॅस्पिटल के प्रांगण में प्रशिक्षित डाॅक्टराें, उनके प्रध्यापकाें और व्यवस्थापकाें के लिए आयाेजित विशेष माेटिवेशनल कार्यक्रम में मार्गदर्शन देते हुए आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि आयुर्वेद प्रकृति है, भारत की संस्कृति है। यह गाैरवशाली चिकित्सा पद्धति सबसे सस्ती, बहुगुणकारी, सबके लिए निरापद सिद्ध विद्या है।
जब इंग्लैंड में एलाेपैथी का जन्म भी नहीं हुआ था, तब अखंड भारतवर्ष में आयुर्वेद अपनी सफलता के चरम पर था। वर्ष 2600 पूर्व रचित प्राचीन सुश्रुत नामक वैद्यक ग्रंथ काे सर्जरी का पितामह कहा जा सकता है। सदियाें पहले इस ग्रंथ के आधार पर आंख व किडनी स्टाेन के ऑपरेशन, सिजेरियन और हाथ-पैर की टूटी हड्डियाें काे बदलने का कार्य सफलतापूर्वक किया जाता था।एनेस्थेसिया की चिकित्सा पद्धति विश्व काे सर्वप्रथम सुश्रुत ग्रंथ की ही देन हैं। आयुर्वेद सिद्ध विद्या है। उसके काेई साइड इफेक्ट नहीं हैं। गरीब और जीवन के प्रति वह पूरा पूरा न्याय करती है। वह समय अब दूर नहीं जब दुनिया पुनः आयुर्वेद की ओर लाैटेगी।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने उपस्थित सैकड़ाें प्रशिक्षित डाॅक्टराें का आह्वान किया कि अपनी संवेदना काे मरने न दें। मात्र अर्थाेपार्जन काे जीवन का ध्येय न समझें। मानवता की अलख जगाएं और गहराई से यह मानकर चलें कि हम असामान्य उपलब्धियाें के लिए दुनिया में आए हैं।
डाॅक्टराें ने बड़ी तल्लीनता से संत काे सुना और बाताें काे सराहा। गणि पद्मविमलसागरजी आदि संतजनाें के साथ जैन समाज के अनेक गणमान्य सदस्य भी इस अवसर पर उपस्थित थे। डाॅ. अश्विनीकुमार व नरेंद्र धाेका ने स्वागत किया।
इससे पूर्व काॅलेज केम्पस में पहुंचने पर अनेक कन्या डाॅक्टराें ने मंगल कलश लेकर संतजनाें का स्वागत किया। डाॅ. मुरलीधर पुजारा, डाॅ. प्रकाश हेगड़े, डाॅ. अश्विनीकुमार, डाॅ. शरद, डाॅ. श्रीनाथ वैद्य, लाेहितक्षा और शंकर के निर्देशन में श्रमण समुदाय ने पुस्तकालय, संग्रहालय, प्रयाेगशाला तथा चिकित्सा पद्धति की विविध विधाओं और प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथाें का निरीक्षण किया।