विश्वासघात के कंकर

मुशर्रफ 'कागजी रणनीतिकार' थे

विश्वासघात के कंकर

आज नवाज शरीफ परवेज मुशर्रफ के उस गुनाह से पीछा छुड़ाकर खुद को बड़ा ही पाक-साफ और अमन-पसंद दिखाना चाहते हैं

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत के तत्कालीन समकक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के साथ किए गए समझौते के ‘उल्लंघन’ के बारे में बयान देकर फिर एक जोखिम मोल ले लिया है। हालांकि इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल की यह टिप्पणी बिल्कुल उचित है कि इस पड़ोसी देश में एक निष्पक्ष दृष्टिकोण उभर रहा है। यह दृष्टिकोण कब पलटी मार दे, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता। खैर, नवाज शरीफ ने इतना तो माना कि गलती उनकी ओर से हुई थी। अपनी गलती मानना पाकिस्तानी नेताओं की फितरत में नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि नवाज शरीफ कारगिल युद्ध के 'अपराध' से खुद को अलग करना चाहते हैं, जिसमें भारत के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे और बहुत बड़ी तादाद में पाकिस्तानी जवान भी मारे गए थे। कारगिल युद्ध के सबसे बड़े गुनहगार पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ थे। जब दोनों देश परमाणु परीक्षण कर चुके थे, तब वाजपेयीजी ने लाहौर जाकर संबंधों का नए सिरे से आगाज किया और विश्वास जीतने की कोशिश की थी। उस समझौते पर किए गए हस्ताक्षरों की स्याही भी नहीं सूखी थी कि मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध छेड़ दिया था। यह भी एक अजीब बात है कि मुशर्रफ जब तक पाक फौज में उच्च पदों तक नहीं पहुंचे थे, उन्हें अच्छा रणनीतिकार माना जाता था। वे सैन्य अध्ययन के दिनों में रणनीति संबंधी विषयों में अच्छा प्रदर्शन करते थे। यह अलग बात है कि जब उन्होंने धरातल पर रणनीति बनाई, वह बुरी तरह विफल हुई। मुशर्रफ 'कागजी रणनीतिकार' थे, जिन्होंने दुस्साहसी स्वभाव के कारण कारगिल युद्ध में मुंह की खाई और अपने देश को तबाही की ओर लेकर गए।

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आज नवाज शरीफ परवेज मुशर्रफ के उस गुनाह से पीछा छुड़ाकर खुद को बड़ा ही पाक-साफ और अमन-पसंद दिखाना चाहते हैं। हालांकि बात इतनी सादा नहीं है। नवाज कारगिल युद्ध के समय से ही यह दिखावा कर रहे थे कि गोया वे बड़े मासूम हैं और उन्हें कुछ पता नहीं है। जब वाजपेयीजी ने उनसे फोन पर बात कर मुशर्रफ का कच्चा चिट्ठा खोला, तब भी वे यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि इन सब बातों से अनजान हैं। जबकि हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। पाकिस्तान के कई वरिष्ठ पत्रकार, जो पाक फौज के विशेषज्ञ माने जाते हैं और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी सबूतों के साथ बता चुके हैं कि नवाज को मुशर्रफ की साजिशों के बारे में जानकारी थी। हां, उन्हें शुरुआत में ज्यादा कुछ नहीं बताया गया था, लेकिन जब पाकिस्तानी जवानों ने कारगिल की पहाड़ियों पर घुसपैठ कर ली थी, तब उन्हें सबकुछ मालूम हो चुका था। नवाज शरीफ के अनजान बने रहने का दावा इसलिए भी गलत है, क्योंकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सलाहकारों में सैन्य मामलों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं। क्या उन्होंने जानकारी नहीं दी होगी? कहा जाता है कि जब मुशर्रफ ने एक फौजी नक्शा दिखाते हुए नवाज को अपनी साजिश के बारे में थोड़ी जानकारी दे दी थी तो बैठक के बाद एक सलाहकार ने साफ-साफ समझा दिया था कि इसका मतलब है- हिंदुस्तान को जंग के लिए उकसाना। लेकिन नवाज को मुशर्रफ ने यह कहते हुए सब्ज़-बाग़ दिखाए थे कि 'पाक फौज आपको कश्मीर फतह करके देगी, आप तो बस हां में हां मिलाते रहें ... फिर आपका नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।' मुशर्रफ का वह दांव उल्टा पड़ा, लेकिन नवाज अपनी छवि चमकाने के चक्कर में मासूम बने रहे। वे आज भी यही कर रहे हैं। फर्क इतना है कि तब उनकी बातों पर भारत में काफी लोग विश्वास करते थे, आज नहीं करते हैं। नवाज खुद को 'शरीफ' साबित करने की कोशिशें करते रहें, लेकिन यह दाल अब गलने वाली नहीं है, क्योंकि इसमें आपने विश्वासघात के कंकर मिला दिए हैं।

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