अब तक कितने सांसदों ने गंवाई संसद की सदस्यता, कब सबसे ज्यादा ठहराए गए अयोग्य?

दल-बदल विरोधी कानून लागू होने के बाद कांग्रेस के लालदुहोमा को अयोग्य करार दिया गया था

अब तक कितने सांसदों ने गंवाई संसद की सदस्यता, कब सबसे ज्यादा ठहराए गए अयोग्य?

दल-बदल विरोधी कानून के तहत राज्यसभा में भी सदस्यों ने अपनी सदस्यता गंवाई

नई दिल्ली/भाषा। हाल में लोकसभा की सदस्यता से राहुल गांधी को अयोग्य करार दिए जाने के बाद एक अधिनियम के प्रावधान सुर्खियों में आ गए हैं, जिसके तहत 1988 से अब तक 42 सांसद सदस्यता गंवा चुके हैं।

इनमें सबसे ज्यादा सदस्य 14वीं लोकसभा में अयोग्य करार दिए गए। प्रश्न पूछने के बदले धन लेने के मामले और ‘क्रॉस वोटिंग’ के संबंध में 19 सांसदों को अयोग्य करार दिया गया।

सांसदों को राजनीतिक पाला बदलने, सांसद के तौर पर अशोभनीय आचरण करने तथा दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराधों के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने समेत विभिन्न आधारों पर अयोग्य करार दिया गया है।

हालिया समय में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता मोहम्मद फैजल पीपी, और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेता अफजाल अंसारी को अदालतों द्वारा उनकी दोषसिद्धि के बाद दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा के कारण अयोग्य करार दिया गया। इन्हें जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों के तहत अयोग्य ठहराया गया।

जन प्रतिनिधित्व कानून किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने और दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाए जाने पर सांसदों और विधायकों की स्वत: अयोग्यता से संबंधित है।

लोकसभा में लक्षद्वीप का प्रतिनिधित्व करने वाले फैजल को हत्या के प्रयास के मामले में उनकी दोषसिद्धि और सजा के बाद सदस्यता से अयोग्य करार दिया गया था। हालांकि, केरल उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि और सजा रद्द किए जाने के बाद सदस्यता बहाल कर दी गई।

गांधी ने ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी को लेकर आपराधिक मानहानि के मामले में राहत पाने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया है। सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाई थी।

वर्ष 1985 में दल-बदल विरोधी कानून लागू होने के बाद लोकसभा की सदस्यता से सबसे पहले कांग्रेस के लालदुहोमा को अयोग्य करार दिया गया था, जिन्होंने मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए मिजो नेशनल यूनियन के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था। इस पार्टी का गठन लालदुहोमा ने ही किया था।

नौवीं लोकसभा के समय जब जनता दल के तत्कालीन नेता वी पी सिंह ने गठबंधन सरकार बनाई थी, लोकसभा के नौ सदस्यों को दल-बदल विरोधी कानून के उल्लंघन का दोषी माना गया, जिसके कारण उन्हें अयोग्य करार दिया गया।

हालांकि, 14वीं लोक सभा में सदन से सबसे ज्यादा सदस्यों ने अपनी सदस्यता गंवाई। इस दौरान 10 सदस्यों को संसद में प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत स्वीकार कर अशोभनीय आचरण के लिए और नौ को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग)-1 सरकार के विश्वास मत के दौरान ‘क्रॉस-वोटिंग’ के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। जुलाई 2008 में वाम मोर्चे ने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर समर्थन वापस ले लिया था, जिसके कारण सरकार को विश्वासमत का सामना करना पड़ा था।

वर्ष 2005 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के छह सदस्यों, बसपा के दो और कांग्रेस तथा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एक-एक सदस्य को ‘प्रश्न पूछने के लिए धन लेने के’ मामले में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। बसपा के एक राज्यसभा सदस्य को भी सदन से निष्कासित कर दिया गया था।

लोकसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव देवेंद्र सिंह असवाल ने बताया, ‘निष्कासन के फैसले को उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा था। इनमें से किसी भी मामले को निष्कासन की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया, क्योंकि विधायिका स्वयं ऐसा करने के लिए सक्षम है।’

दसवीं लोकसभा में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था, चार सदस्यों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

दल-बदल विरोधी कानून के तहत राज्यसभा में भी सदस्यों ने अपनी सदस्यता गंवाई। इनमें मुफ्ती मोहम्मद सईद (1989), सत्यपाल मलिक (1989), शरद यादव (2017) और अली अनवर (2017) शामिल हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता शिबू सोरेन और समाजवादी पार्टी (सपा) की सदस्य जया बच्चन को क्रमशः साल 2001 और 2006 में लाभ का पद संभालने के लिए राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। सोरेन जहां झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे, वहीं जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष थीं।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की अध्यक्ष के लाभ का पद धारण करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ अयोग्यता संबंधी याचिका निष्फल हो गई थी, क्योंकि उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य असवाल ने कहा कि संभावित राजनीतिक उथल-पुथल से बचने के लिए, संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 को 2006 में 4 अप्रैल, 1959 से पूर्व प्रभाव के साथ संशोधित किया गया था और इसी तरह की याचिकाएं निष्फल हो गईं।

लिली थॉमस मामले में शीर्ष अदालत के निर्णय ने कानूनी स्थिति को स्पष्ट किया कि कोई भी दोषसिद्धि जिसमें दो साल या उससे अधिक की सजा हो, निर्वाचित प्रतिनिधि स्वत: ही सदस्यता से अयोग्य हो जाएगा। असवाल ने कहा, ‘लोकसभा सचिवालय को केवल एक अधिसूचना जारी करके रिक्ति को अधिसूचित करना होता है, ताकि निर्वाचन आयोग उपचुनाव की प्रक्रिया शुरू कर सके।’

फैसले के परिणामस्वरूप, कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य, रशीद मसूद को भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण उच्च सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद राजद प्रमुख लालू प्रसाद और जनता दल (यूनाइटेड) सदस्य जगदीश शर्मा को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

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