जगत के सभी जीवों के प्रति मैत्री भावना होनी चाहिए: आचार्य रत्नसेनसूरी
जड़ पदार्थ नाशवंत हैं, क्षणभंगुर हैं, आज नहीं तो कल नष्ट होने ही वाले हैं
विजयपुर/दक्षिण भारत। शहर के पार्श्व भवन जैन संघ में विराजित रत्नसेनसूरीश्र्वरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व और अशुचि भावना से आत्मा को भावित करने से जड़ पदार्थों के प्रति विरक्ति भाव दृढ़ बनता है। वैराग्य की पुष्टि के लिए इन भावनाओं का सेवन अत्यंत ही अनिवार्य है।
जड़ पदार्थ नाशवंत हैं, क्षणभंगुर हैं, आज नहीं तो कल नष्ट होने ही वाले हैं इस प्रकार के चिंतन से अपने चित्त को अच्छी तरह से भावित किया हो तो किसी निकटस्थ प्रिय व्यक्ति की मृत्यु के समाचार सुनकर अपने मन को समाधि में स्थिर रख सकते हैं और स्वयं की मृत्यु आने पर भी चित्त को समाधिस्थ रखा जा सकता है।आत्मा को भावनाओं से भावित करने के लिए प्रतिदिन विचार करें कि इस संसार में सभी बाह्य पदार्थ नश्र्वर हैं, अतः उनके नाश पर अफसोस करना निरर्थक है। इस जगत् में मृत्यु से बचाने वाला कोई नहीं है अकूत संपत्ति हो, अनेक देशों पर आधिपत्य हो ... तो भी मृत्यु से बचाने वाला कोई नहीं है।
इस संसार में माता-पिता,भाई,बहनआदि का मोह रखना निरर्थक है, क्योंकि कर्म के विचित्र गणितानुसार पिता मरकर पुत्र बन सकता है और पुत्र मरकर पिता भी बन सकता है। दुश्मन मित्र बन सकता है और मित्र दुश्मन बन सकता है। इस संसार में हम अकेले ही आए है और अकेले ही जाएंगे। मृत्यु के समय कोई भी वस्तु हमारे साथ चलने वाली नहीं है।
हम इस देह से सर्वथा भिन्न हैं। देह के नाश में अपना नाश नहीं है। मृत्यु समय शरीर यहीं पड़ा रहता है और आत्मा अकेली ही जाती है। जगत के सभी जीवों के प्रति मैत्री भावना होनी चाहिए। जगत् में जितने गुणवान व सुखी प्राणी हैं, उनके प्रति प्रमोद भाव होना चाहिए्। जगत् में जितने भी दुःखी प्राणी हैं, उनके प्रति करुणा भावना होनी चाहिए।
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