समय बड़ा बलवान

समय बड़ा बलवान

राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे ब्रिटेन ने हाल में थेरेसा मे, बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस के रूप में ऐसे प्रधानमंत्री देखे, जिनके कार्यकाल में इस देश में कई क्षेत्रों में गिरावट आई


कहते हैं कि कुदरत का कानून ऐसा है कि जो हम यहां बोलते/करते हैं, वह कभी न कभी लौटकर जरूर आता है, उसका हिसाब देना पड़ जाता है। ठीक उसी तरह, जैसे कोई वादियों में जाकर अच्छा या बुरा जो भी बोले, उसकी प्रतिध्वनि लौटकर आती है। 

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल भी इस कानून से परिचित होते तो भारतवासियों के बारे में वह सब नहीं बोलते, जिसके लिए वे एक बार फिर चर्चा में हैं। शक्ति और सत्ता के मद में डूबे चर्चिल ने यह तक कह दिया था कि भारतीय नेता शासन करने के योग्य नहीं हैं। उन्हीं के शब्दों में कहें तो 'सभी भारतीय नेता बहुत ही कमजोर, भूसे के पुतलों के समान होंगे' - अगर चर्चिल की आत्मा कहीं है तो उन्हें देखना चाहिए कि भारतीयों ने न केवल उन्हें ग़लत साबित किया, बल्कि अब उनके देश की बागडोर भी एक भारतवंशी के हाथों में होगी। 

हमने यहीं 12 सितंबर, 2022 को 'शाही दौर का एक अध्याय' शीर्षक से लिखा था, 'ऋषि सुनक वहां (ब्रिटेन) प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। बहुत संभव है कि वे भविष्य में इस पद तक पहुंच जाएं' - ये शब्द अब वास्तविकता बनने जा रहे हैं। निस्संदेह कोई भारतवंशी विदेश जाकर ज्ञान-विज्ञान, व्यवसाय, राजनीति या परोपकार जैसे कार्यों में अच्छा नाम कमाता है तो देशवासियों को खुशी होती ही है। अब ऋषि सुनक पर जिम्मेदारी होगी कि वे ब्रिटेन के हालात बेहतर बनाएं, उसे प्रगतिपथ पर आगे लेकर जाएं। 

राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे ब्रिटेन ने हाल में थेरेसा मे, बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस के रूप में ऐसे प्रधानमंत्री देखे, जिनके कार्यकाल में इस देश में कई क्षेत्रों में गिरावट आई। अब जनता को ऋषि सुनक से बहुत आशाएं हैं। वित्त मंत्रालय में उनका काम प्रशंसनीय रहा था, इसलिए उम्मीद यही की जा रही है कि वे अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहा मौजूदा संकट दूर करेंगे।

संयोग देखिए कि भारतीयों से घृणा करने वाले चर्चिल, जिन्हें यह अहंकार भी था कि अंग्रेज राजनेता ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक कुशल शासक होते हैं, उनके देश ने पिछले कुछ वर्षों में तीन ऐसे प्रधानमंत्री देखे, जो ब्रिटेन को ब्रेग्जिट से लेकर आर्थिक संकट तक में झोंककर चले गए। आज कहां हैं वे कथित 'सर्वश्रेष्ठ' और 'सर्वाधिक कुशल' अंग्रेज शासक? उनकी नीतियों से तो ब्रिटेन ने पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा भी गंवा दिया। 

यह भी संयोग है कि उसे शिकस्त भारत ने दी, जो आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यही नहीं, चर्चिल ने दूसरे कार्यकाल में 26 अक्टूबर को दफ्तर संभाला था। ये शब्द लिखते समय कैलेंडर की तारीख एक बार फिर उसी के आसपास लौट आई है। अगले महीने चर्चिल का जन्मदिन है, जब सुनक उसी दफ्तर से उनके देश का राजकाज चलाएंगे। 

एक प्रश्न यह भी चर्चा में है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और भारतवासियों को लेकर सुनक शासन का रुख क्या होना चाहिए। इसका उत्तर श्रीमद्भगवद्गीता में पहले से मौजूद है, जिसके संदेश से बतौर हिंदू ऋषि सुनक जरूर परिचित होंगे। उनकी निष्ठा ब्रिटेन के संविधान के प्रति होनी चाहिए, क्योंकि अब वह उनका देश है। उनकी वफादारी ब्रिटेन की मिट्टी के प्रति होनी चाहिए, क्योंकि उस देश के लोकतंत्र ने उन्हें इस उच्च पद तक पहुंचाया है। उन्हें ब्रिटेन के लोगों के कल्याण और सुरक्षा के लिए प्रभावी नीतियां बनाकर उन्हें लागू करना चाहिए। 

साथ ही भारत के साथ संबंधों में मधुरता को बढ़ावा देना चाहिए। दोनों देशों को आपसी सहयोग मजबूत करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति कर अपने नागरिकों का जीवनस्तर बेहतर बनाना चाहिए।

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