संपादकीय: ओली को आई अक्ल

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दक्षिण भारत राष्ट्रमत में प्रकाशित संपादकीय

ऐसा प्रतीत होता है कि भारत को कोसने का मौका ढूंढ़ने वाले नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को ‘अक्ल’ आ गई है। कुछ माह पहले तक चीन की दोस्ती में आसमान से बात करने वाले ओली के सुर ऐसे बदल जाएंगे, इस पर आश्चर्य हो सकता है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि ओली का मिजाज सच में बदल गया है या वे मौका देखकर फिर पलटी मारेंगे। वैसे उनका अतीत देखें तो इस धारणा को ज्यादा बल मिलता है कि वे मौका देखते ही पलटी मारने से परहेज नहीं करेंगे। भारत के वैज्ञानिकों ने कोरोना की वैक्सीन बनाई, जिसे भारत सरकार योजनाबद्ध ढंग से अपने नागरिकों तक पहुंचा रही है और मित्र राष्ट्रों को भी मुहैया करा रही है।

इसी सिलसिले में 10 लाख निशुल्क कोरोना वैक्सीन नेपाल पहुंचाई गईं। भारत नेपाल के नागरि​कों को पराया नहीं मानता। इस संकट की घड़ी में उनके प्राण बचाने को भी प्राथमिकता दे रहा है। अब वैक्सीन की खेप काठमांडू पहुंचा दी गई तो ओली कैमरे के सामने आए और मुस्कुराते हुए अपनी फोटो खिंचाते हुए ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद बोल दिया। साथ में समस्त भारतवासियों के प्रति आभार जताया। इस बात का जिक्र भी कर दिया कि इन मुश्किल हालात में भारत अपने लोगों का टीकाकरण कर रहा है, तो नेपाल के लिए वैक्सीन भिजवाना ‘उदार अनुदान’ है। ओली साहब भूल गए थे कि भारत तो नेपाल के लिए सदैव उदार रहा है। दोनों देशों में धर्म, संस्कृति, पारिवारिक रिश्ते और बहुत कुछ एक ही है।

भारत सिर्फ इसलिए नेपाल से मित्रता नहीं निभाता क्योंकि उसे व्यापार करना है। यहां व्यापार सबसे आखिरी पायदान पर है। अगर भारत को व्यापार करके नोट कमाने होते तो कोरोना से ज्यादा सुनहरा मौका और कौनसा होगा जब दुनिया में हर किसी को अपने प्राण बचाने की चिंता है और भारत की कंपनियां लाखों की संख्या में वैक्सीन की खुराकों का उत्पादन कर रही हैं?

अब ओली बदले-बदले नजर आ रहे हैं। कभी वे कथित सीमा विवाद को हवा देते नजर आते थे, तो कभी भारत को बताते थे कि श्रीराम जन्मभूमि कहां है। इन सबसे ओली ने अपनी ही जगहंसाई करवाई, क्योंकि भारत को उनके बयानों से न तब फर्क पड़ा था और न अब फर्क पड़ा है। अगर ओली कोरोना वैक्सीन को लेकर भारत सरकार और नागरिकों को धन्यवाद नहीं कहते, तो भी भारत के रवैए में कोई बदलाव नहीं आता। वह यथासामर्थ्य वैक्सीन जरूर भेजता।

ओली के सुर में यह बदलाव उन्हें वहां के उच्चतम न्यायालय से झटका लगने के बाद ज्यादा स्पष्टता से महसूस किया जा सकता है। वे संसद भंग करके नए सिरे से चुनाव कराना चाहते थे, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने एक नहीं सुनी और उसे बहाल कर दिया। इससे नेपाल में ओली की प्रतिष्ठा को तो धक्का लगा ही, उनकी राजनीति समझ पर भी सवाल उठने लगे। नेपाल में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि ओली जल्दबाज किस्म के व्यक्ति हैं, जिनमें दूरदर्शिता का घोर अभाव है।

एक तरफ चीन से दोस्ती की कोशिश में उसके द्वारा जमीन कब्जाने की रिपोर्टें आ रही थीं, तो दूसरी ओर भारत में ओली की वजह से नेपाल के प्रति गुस्सा गहराने लगा था। सोशल मीडिया के जमाने में यह जानना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं रह गया है। आम जनता के कमेंट पढ़कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हवा किस ओर बह रही है। अब ओली अपने लोगों को दिलासा दे रहे हैं कि भारत और नेपाल के मैत्रीपूर्ण संबंधों के बारे में किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए। वहीं, चीन के बारे में सफाई दे रहे हैं कि उसका निवेश सुरक्षित दायरे में ही है यानी उस स्तर तक नहीं पहुंचा जब चीन हंबनटोटा की तर्ज पर वहां कब्जा कर ले।

न्यायालय से झटके के बाद ओली की राह आसान नहीं होगी। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी दो गुटों में विभाजित हो गई है और ओली के खिलाफ असंतोष कम होने का नाम नहीं ले रहा है। स्वयं ओली यह स्वीकार कर चुके हैं कि वे संसद भंग करने के मामले में उच्चतम न्यायालय को अपना पक्ष समझाने में फेल हो गए हैं। बहरहाल, ओली के इस नए रूप का स्वागत किया जाना चाहिए। ओली सुबह के भूले शाम को घर आ गए हैं या बीजिंग के ख्वाबों में खोए हैं, यह उन्हें अपने कार्यों से सिद्ध करना होगा।

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