संपादकीय: सीएए का विरोध क्यों?

संपादकीय: सीएए का विरोध क्यों?

संपादकीय: सीएए का विरोध क्यों?

दक्षिण भारत राष्ट्रमत में प्रकाशित संपादकीय

ऐसा लगता है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसियों के विरोध की कसम खा रखी है जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में आए दिन उत्पीड़न व भेदभाव का सामना कर रहे हैं। अगर राहुल को उनकी तकलीफों का एक फीसद भी अहसास होता तो असम जाकर डिब्रूगढ़ में जनसभा को संबोधित करते हुए यह नहीं कहते कि ‘अगर हमारी सरकार आती है तो गारंटी देते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू नहीं होने देंगे और इसके ख़िलाफ़ लड़ेंगे’।

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राहुल इस कानून से लड़ने की बात कह रहे हैं, इसकी गारंटी भी दे रहे हैं। क्या वे इन तीन देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों को अपना शत्रु समझते हैं जो यह लड़ाई लड़ेंगे? सीएए का विरोध करना, उसे वापस लेने की मांग करने का सीधा अर्थ यही है कि आप पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों का विरोध कर रहे हैं। इन लोगों ने राहुल गांधी का क्या बिगाड़ा है? ये हैं ही कितने? गिनते के लोग रह गए हैं। अगर वहां के हालात ऐसे ही रहे तो इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में यह संख्या और कम हो जाएगी।

अगर ये लोग यहां पनाह ले लेंगे, उनके हालात पर रहम करके भारत नागरिकता दे देगा, तो भी ये संख्याबल में इतने मजबूत नहीं हैं कि कोई इनके बूते ही कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दे। वैसे राहुल का यह बयान सुनने के बाद स्वाभाविक है कि उन पर और उनकी पार्टी पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगे। चूंकि इन शरणार्थियों में ज्यादा तो हिंदू ही हैं। किसी नेता को अपने वोटबैंक को खुश करने के लिए इस हद तक नहीं जाना चाहिए कि वह मानवता का विरोध करने लगे।

राहुल को याद रखना चाहिए कि यह वो जमाना नहीं है जब नेता कोई बयान देते थे तो वह समाचारपत्रों में छपकर, फिर बैलगाड़ी और साइकिल पर सफर करते हुए कई घंटों बाद जनता तक पहुंचता था। तब तक तो बात आई गई हो जाती थी। अब सोशल मीडिया का जमाना है। यहां आप बोलेंगे, वहां देश की जनता आपको सुनेगी, पढ़ेगी।

भविष्य में ये ही बयान पीछे से आप पर ही वार कर सकते हैं। संभव है कि फिर आपको इसमें साजिश नजर आएगी, संवैधानिक संस्थाएं खतरे में दिखेंगी, असहिष्णुता का ग्राफ डराने लगेगा और हर कहीं खुद के जनेऊधारी होने का प्रमाण देंगे। अब यह तो नहीं हो सकता कि जब वोट लेने हों, तब धर्म, गौत्र आदि की चर्चा करें और पीड़ित हिंदुओं के कल्याण के लिए कुछ करने का अवसर आए तो उनके ही खिलाफ खड़े हो जाएं। वास्तव में यह मुद्दा किसी हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी का नहीं है। यह मानवता का मुद्दा है। यह एक रुका हुआ फैसला है जिसे दशकों बाद केंद्र सरकार ने हरी झंडी दिखाई थी।

साल 2003 में वाजपेयी सरकार के समय डॉ. मनमोहन सिंह राज्यसभा में यह अपील कर चुके हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के मामले में नरमी बरती जाए। फिर इन वर्षों में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि समूची कांग्रेस ही मनमोहन सिंह के इस ​बयान के खिलाफ खड़ी नजर आ रही है? क्या कांग्रेस मानती है कि उस समय मनमोहन सिंह ने जो कहा था, वह असत्य था? या उन्हें हर हाल में मोदी का विरोध करना है? इन लोगों के जीवन की रक्षा और भारत में शरण का वादा महात्मा गांधी ने किया था। क्या आज कांग्रेस नेताओं की महात्मा गांधी के शब्दों में कोई आस्था नहीं है? राहुल गांधी को इस पर विचार अवश्य करना चाहिए।

ये शरणार्थी न सत्ता पाने के लिए आ रहे हैं, न किसी की जमीन-जायदाद पर कब्जा करने के लिए आ रहे हैं। ये शांति से जीना चाहते हैं, इसलिए भारत में शरण चाहते हैं। इनके साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में कैसा सलूक होता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस के पास अवसर है कि वह इन उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए खुलकर सामने आए। अन्यथा भविष्य में यह प्रश्न उसका पीछा करता रहेगा।

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