शांति, सह-अस्तित्व एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता बौद्ध दर्शन

शांति, सह-अस्तित्व एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता बौद्ध दर्शन

शांति, सह-अस्तित्व एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता बौद्ध दर्शन

फोटो स्रोत: PixaBay

.. अर्जुन राम मेघवाल ..

केंद्रीय राज्यमंत्री, संसदीय कार्य तथा भारी उद्योग और लोक उद्यम राज्य मंत्री एवं बीकानेर से लोकसभा सांसद।

विश्व को मुक्ति का मार्ग और दुखों से अंत की राह दिखाने वाले भगवान बुद्ध के अवतरण दिवस को बुद्ध पुर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लगभग सारे संसार में भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के बारे में चर्चाएं, वर्कशाॅप, सिम्पोजियम आयोजित किए जाते हैं और चिंतन-मनन-मंथन द्वारा विद्वान तार्किक विश्लेषण भी प्रस्तुत करते हुए इस बात की पुष्टि करते हैं कि भगवान बुद्ध की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं।

सिद्धार्थ ने राजसी वैभव त्यागकर ज्ञानप्राप्ति का मार्ग अपनाया और बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया तथा बुद्ध कहलाए। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने ज्ञान को संसार में दुखों से मुक्ति के लिए बांटा। बुद्ध ने सर्वप्रथम अपने 5 साथी भिक्खुओं को सारनाथ में प्रथम उपदेश दिया, जिसे ‘धर्म चक्र प्रवर्तन’ कहा जाता है। बुद्ध ने धम्म-उपदेश दिया और पूरे संसार में फैलने का निर्देश दिया। अगले चरण में संघ की स्थापना की और 60 भिक्षु तैयार किए एवं उन्हें 10 दिशाओं में धम्म प्रचार-प्रसार के लिए भेजा।

बुद्ध ने बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत के रूप में 4 आर्य सत्य की संकल्पना का प्रतिपादन किया, जो इस प्रकार हैं: दुख: संसार में दुख है। समुदाय: दुख का कारण है। दुख का कारण तृष्णा है। निरोध: दुख के निवारण हैं। मार्ग: निवारण के लिए आष्टांगिक मार्ग हैं।

बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में कहा कि संसार में दुख है और मनुष्य जीवनभर दुखों की शृंखला में फंसा रहता है। इस दुख का कारण बुद्ध ने विषयों के प्रति तृष्णा को बताया और इसी तृष्णा के कारण मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त नहीं हो पाता। भगवान बुद्ध ने निरोध के माध्यम से दुख निवारण की शिक्षा दी और दुख निवारण के मार्ग के रूप में आष्टांगिक मार्ग का उपाय बताया एवं कहा कि आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करते हुए मनुष्य जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त कर सकता है। इन आष्टांगिक मार्ग को मध्यमप्रतिपदा कहा गया।

आष्टांगिक मार्ग इस प्रकार हैः सम्यक दृष्टि: चार आर्य सत्य में विश्वास करना; सम्यक संकल्प: मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना; सम्यक वाक: हानिकारक बातें और झूठ न बोलना; सम्यक कर्म: हानिकारक कर्म न करना; सम्यक जीविका: कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना; सम्यक प्रयास: अपने आप सुधरने की कोशिश करना; सम्यक स्मृति: स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना; सम्यक समाधि: निर्वाण प्राप्त करना।

बुद्ध ने इन आष्टांगिक मार्गों को प्रज्ञा, शील और समाधि के रूप में व्याख्यायित किया। बुद्ध एक ऐसे अद्वितीय महापुरुष हुए, जिन्होंने साधना के सारे प्रयोग अपने शरीर पर किए और बोधिसत्व प्राप्त करके सारे संसार में ज्ञान का प्रसार किया। इसलिए बौद्ध धर्म का उदय भारत में हुआ, यह पनपा भी भारत में किंतु इसका प्रचार-प्रसार पूरे संसार में हुआ। विशेष रूप से भारत के आसपास के देशों में।

साधना करते-करते भगवान बुद्ध ने शरीर और वीणा की बहुत उपयुक्त व्याख्या की और सारी मानवता को संदेश दिया कि वीणा के तार यदि बहुत ज्यादा कस दिए जाएंगे तो तार टूट सकते हैं और यदि वीणा के तार ढीले छोड़ दिए जाएंगे तो तार होते हुए भी बजेंगे नहीं। इस व्याख्या द्वारा भगवान बुद्ध ने पूरी मानवता को मध्यम मार्ग का संदेश दिया जो किसी भी प्रकार की अति से बचने का संदेश देता है। यह मध्यम मार्ग पूरे संसार में तेजी के साथ फैला और लोगों ने इसे अपनी जीवनशैली के रूप में अपनाया। इसकी प्रासंगिकता आज भी यथावत बनी हुई है।

तत्कालीन समय में भारत के विभिन्न राजवंशों एवं राजाओं ने बौद्ध धर्म अपनाया, इसका प्रसार किया और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद जब शवों को देखा तो उनका हृदय द्रवित हो उठा और मन में शांति की तड़पन उत्पन्न हुई। अशोक ने बुद्ध की शिक्षाओं में शांति का मार्ग देखा और बौद्ध धर्म को अपनाया। अशोक ने सारनाथ में ‘धर्म चक्र’ बनाया और घोषणा की कि अब युद्ध नहीं शांति चाहिए। सारनाथ आज प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है तथा अशोक स्तम्भ भारत का गौरव है। सम्राट अशोक के समय बौद्ध धर्म मध्य एशिया तक गया और समुद्र के रास्ते इंडोनेशिया, जावा, चीन तथा जापान तक इसका प्रसार हुआ।

बुद्ध पूर्णिमा के विशेष दिन पर 20 नवंबर, 1956 को बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अंबेडकर द्वारा काठमांडू में एक भाषण दिया गया था, जिसकी प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है। बाबा साहेब ने उस दिन कहा था कि ‘कार्लमार्क्स और लाॅर्ड बुद्ध दोनों ही गरीबों को शोषण से मुक्ति दिलाना चाहते थे। गरीब शोषण से मुक्त हो, यह दर्शन दोनों के सिद्धांत में अंतर्निहित है। जब दोनों के दर्शन का अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि कार्लमार्क्स कहते हैं कि गरीबों का शोषण इसलिए होता है क्योंकि समाज में एक शोषक वर्ग है, इसलिए गरीबों का शोषण समाप्त करने के लिए इस शोषक वर्ग को समाप्त करना होगा और इसके लिए वो हिंसा उकसाने को भी अपने सिद्धांतों में सम्मिलित करतें हैं। इसके विपरीत भगवान बुद्ध शांति, अहिंसा, दया और करुणा पर आधारित एक दर्शन देते हैं और गरीबों की शोषण से मुक्ति का मार्ग भी बताते हैं। शोषण से मुक्ति के मार्ग को भी वह दुख दूर करने के उपाय के रूप में ही बतलाते हैं। मार्क्स के सिद्धांतों पर आधारित जीवन दर्शन, वस्तुतः एक अव्यावहारिक दर्शन है जो मंजिल तक नहीं पहुंचता है, अतः उस पर चलने का कोई फायदा नहीं। यदि कोई रास्ता जंगल में जाता है, अव्यवस्था की ओर बढ़ता है, तो उस पर चलने का भी कोई लाभ नहीं, जबकि इसके विपरीत बुद्ध के सिद्धांतों पर आधारित जीवन दर्शन एक स्थायी और व्यावहारिक मार्ग है, जिस पर चलकर मनुष्य अपनी मुक्ति का मार्ग भी खोज सकता है और इस दर्शन से विश्व में शांति और सहिष्णुता की स्थापना भी हो सकती है। हां, यह जरूर है कि बुद्ध का बताया हुआ मार्ग धीमा है, मुश्किलों से भरा है और धैर्य की परीक्षा भी लेता है, लेकिन अंत में आप सुरक्षित और मजबूत जमीन पर खड़े हो सकते हैं, जिससे आपके जीवन में स्थायी परिवर्तन आ जाएगा। मेरे विचार से धीमी और मुश्किल राह शाॅर्टकट की दौड़ से अधिक बेहतर है। शाॅर्टकट हमेशा खतरनाक होता है। बुद्ध के सिद्धांत हिंसा की अनुमति नहीं देते हैं, जबकि साम्यवाद में हिंसा की इजाजत है। हिंसा के विषय में जब मैं अपने कम्युनिस्ट मित्रों से पूछता हूं तो वे उसका सीधा जवाब नहीं देते हैं। वे अपने सिद्धांतों को हिंसा द्वारा स्थापित करने में संकोच नहीं करते हैं, जिसे वे सर्वहारा की तानाशाही कहते हैं। इस सिद्धांत द्वारा वे लोगों को राजनीतिक अधिकार से वंचित रखते हैं। उनका विधायिका में कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता, लोगों को वोट का अधिकार नहीं होता। जनता राज्य की द्वितीय श्रेणी की प्रजा बन जाती है। वह सत्ता की भागीदार नहीं होती बल्कि शासित होती है। जब मैंने कम्युनिस्ट मित्रों से पूछा कि जनता को शासित करने के लिए क्या तानाशाही उचित तरीका है, वे बोले हम तानाशाही पसंद नहीं करते। तब मैंने फिर पूछा, फिर आप इसकी अनुमति कैसे देते हैं? वे कहते हैं, यह अंतरिम व्यवस्था है और जब मैं अंतरिम समय की अवधि पूछता हूं कि यह कितनी होगी, 20 वर्ष, 40 वर्ष, तो वे इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं देते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी के बुद्धिमान लोग यही दोहराते रहते हैं कि सर्वहारा की तानाशाही स्वतः समाप्त हो जाएगी। मुझे तानाशाही पसंद नहीं, हिंसा पसंद नहीं, मैं शांति, अहिंसा और सह-अस्तित्व में विश्वास करता हूं, इसलिए मैं भगवान बुद्ध पर आधारित शिक्षाओं को आधार मानकर बौद्ध जीवन के दर्शन के बारे में बता रहा हूं।’

भारत की वर्तमान सरकार यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में मूल रूप से बुद्ध के दर्शन शांति, अहिंसा और सह-अस्तित्व के आधार पर कार्य कर रही है। प्रधानमंत्रीजी की नीतियों का सार गरीबी को दूर करना है जिससे शोषण समाप्त हो। प्रधानमंत्रीजी का मूल ध्येय भी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास है, जिसे भारत सरकार की नीतियों में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। प्रधानमंत्रीजी ने विश्व पटल पर यह वक्तव्य भी दिया था कि हमने विश्व को दिए बुद्ध और आपने दिया युद्ध। बुद्ध की शिक्षा में स्वतंत्रता, बंधुत्व और समानता के सिद्धांत समाहित हैं, जो हमारे संविधान के मूल उद्देश्य में भी परिलक्षित होते हैं।

आइए, हम सभी बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर हिंसामुक्त, भयमुक्त, शांति, अहिंसा, सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व पर आधारित विश्व व्यवस्था बनाने का संकल्प लें और मानव सभ्यता के लिए दुख और शोषण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें।

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