राजग की राह

राजग की राह

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले रविवार को अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया। इस फेरबदल का ब़डा फैसला रहा देश की वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण को पदोन्नत कर रक्षा मंत्री बनाया जाना। इसी के साथ चार पूर्व नौकरशाहों को भी मंत्रालय में जगह दी गई है। भारतीय जनता पार्टी अगले आम चुनावों में ३५० सीटों से अधिक पर अपना कब़्जा बनाने की ख्वाहिश रख रही है। ऐसा करने के लिए उसे अपने सहयोगी दलों को खुश रखना होगा और रविवार को हुए फेरबदल के बाद जनता दल (यू), शिवसेना, और नए साथी अन्नाद्रमुक, निराश ऩजर आ रहे हैं। हालाँकि तमिलनाडु में चल रही राजनैतिक हलचल के कारण अन्नाद्रमुक फिलहाल भारतीय जनता पार्टी पर किसी भी तरह का दबाव बनने की स्थिति में नहीं है परंतु शिव सेना और जद (यू) को इस फेरबदल का हिस्सा बनने की उम्मीद जरूर थी। जनता दल (यू) को मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं बनाकर भाजपा ने नीतीश कुमार के विरोधियों को उनके खिलाफ बयान बा़जी करने का मौका द ेदिया। वहीं दूसरी तरफ शिव सेना भी भाजपा को अप्रत्यक्ष धमकी देती ऩजर आई। उसके एक प्रवक्ता ने कहा की हमें सत्ता नहीं चाहिए परंतु हमारे साथ किए जाने वाले सौतेले व्यवहार का जवाब हम समय आने पर अवश्य देंगे। वर्ष २०१९ के लक्ष्यको सही अंजाम तक पहुँचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को अपनी राह आसान बनाए रखने के लिए सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना होगा। निकट भविष्य में एक और फेरबदल किया जा सकता है क्योंकि अभी भी मंत्रालय में कुछ स्थान रिक्त हैं। अगले फेरबदल में जनता दल (यू) को दो, अन्नाद्रमुक को दो और शिवसेना को एक विभाग दिया जा सकता है। भाजपा भी सम्भवत अपने सहयोगी दलों की ताकत को परख रही है और इसी कारणवश इस फेरबदल में किसी भी सहयोगी दल को मौका नहीं मिला। लालू और उनके परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देऩजर महागठबंधन का दामन छो़डने वाले नीतीश कुमार के पास फिलहाल भारतीय जनता पार्टी से खफा होने का विकल्प नहीं है। साथ ही महाराष्ट्र में भाजपा के साथी शिवसेना भी कांग्रेस या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से हाथ मिलाने की स्थिति में नहीं है। शायद इसी का फायदा उठाते हुए भाजपा ने पहले अपनी पार्टी के समीकरणों को मजबूत करना ही बेहतर समझा। लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है और इसलिए अपने सहयोगी दलों के दबाव में भाजपा झुकती ऩजर नहीं आ रही है परंतु सच यह भी है कम़जोर विपक्ष की मौजूदगी में अगर भाजपा अपने सहयोगियों को खुश रख कर आगे ब़ढती है तो निश्चित रूप से उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने में बहुत आसानी होगी और इसलिए उसे अगले फेरबदल में सहयोगी दलों को जगह देनी चाहिए।

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