बदला चरित्र और जनादेश
बदला चरित्र और जनादेश
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जनादेश ने भाजपा के माथे पर विजय का तिलक लगाया है। भाजपा और कांग्रेस में सीटों के लिहाज से जीत-हार के अंतर को देखें तो हिमाचल की जीत भाजपा के लिए ब़डी है, यानी कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनते हुए उसने ६८ में से ४४ सीटें जीती हैं, जो कांग्रेस से दुगुनी हैं। फिर भी, गुजरात विधानसभा चुनावों पर ही देश-दुनिया की टकटकी लगी हुई थी क्योंकि अपने गृह प्रदेश के मुख्यमंत्र के पद से बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक बहुमत दिलाते हुए नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में प्रधानमंत्री के रूप में पहुंचे थे। देशवासी ही नहीं, भारत के लोकतंत्र में दिलचस्पी रखने वाली दुनिया भर के लोगों की निगाहें इसीलिए गुजरात चुनावों पर थी कि वैश्विक नेता की मजबूत छवि बना चुके मोदी की छाप और उनका जादू क्या अब भी गुजरात में बरकरार है, जहां भाजपा २२ वर्षों से लगातार सरकार चलाती आ रही है? ऐसे में छठी बार गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा का जनादेश हासिल करना बेशक बहुत ब़डी जीत है। गुजरात में भले ही इस बार भाजपा की जीत कांग्रेस के मुकाबले सीटों के लिहाज से बहुत नजदीकी दिखाई दे रही हो लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा का मत प्रतिशत पिछली बार से ब़ढा है। मत प्रतिशत के लिहाज से देखें तो कांग्रेस के मुकाबले भाजपा कुछ ज्यादा ही बेहतर स्थिति में है। गुजरात चुनाव ने इस बार राजनीति में कुछ बिल्कुल नए रूपांतर भी पैदा किए हैं, जिन्हें खूब याद किया जाता रहेगा। पहली बार कांग्रेस ने जातिगत मोर्चेबंदी करके चुनाव ल़डा और हार्दिक पटेल के आरक्षण आंदोलन की लहर पर सवार होने के साथ ही अल्पेश ठाकोर के पिछ़डे व जिग्नेश मेवानी के दलित आंदोलन से चुनावी संजीवनी पाने की कोशिश की लेकिन इस त्रिमुखी आंदोलनों के अंतरविरोध कांग्रेस की सीटें ब़ढाने के बावजूद अंततः कुल मिलाकर किनारे तक पहुंचते-पहुंचते उसकी नाव में छेद ही कर गए। यहां चाहें तो इंदिरा गांधी के दौर के उस नारे को याद कर सकते हैं, जिसमें कहा जाता था कि जात पर न पांत पर, मुहर लगेगी हाथ पर लेकिन यहां तो कांगेस ने जात-पांत की राजनीति से ही गुजरात में प्रवेश करने का मंसूबा पाले नजर आई। फिर भी इसने कांग्रेस में चारित्रिक रूपांतरण का भी काम किया है मसलन, राहुल गांधी जनेऊधारी शिवभक्त के रूप में सामने आए और उन्होंने २८ बार मंदिरों में दर्शन, आरती और पूजा-पाठ में भाग लेकर अपनी एक नई हिंदूवादी छवि प्रस्तुत की। कह सकते हैं कि यह भाजपा के हिंदुत्व दर्शन का कांग्रेस पर दबाव ही था।