द्रमुक नेता स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा पत्र
द्रमुक नेता स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा पत्र
चेन्नई। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी द्रवि़ड मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे नदियों को जो़डने की परियोजना को मंजूरी देने का अनुरोध किया। प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में स्टालिन ने कहा कि देश की एक बहुत ब़डी आबादी कृषि पर निर्भर है और इसलिए प्रशासन द्वारा नदियों को जो़डने की परियोजना शुरु करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।द्रमुक ने अपने पत्र में कहा है कि तमिलनाडु के प़डोसी राज्य राज्य में पानी लाने वाली और राज्य के किसानों की खेती के प्रमुख स्रोत माने जाने वाली नदियों के पानी का या तो भेदभाव पूर्ण ढंग से उपयोग कर रहे हैं या फिर इन नदियों पर चेक डैम का निर्माण कर रहे हैं। तमिलनाडु के प़डोसी राज्यों द्वारा अंतरराज्यीय जल समझौतों का उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि तमिलनाडु में अंतर राज्यीय जल विवाद के कारण काफी गंभीर स्थिति पैदा हो गई है। किसानों को अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए हर दिन संघर्ष करना प़ड रहा है। उन्होंने लिखा है कि तमिलनाडु को प़डोसी राज्यों द्वारा इसके हिस्से का पानी सही ढंग से नहीं देने, मानसून के विफल होने और राज्य में पैदा हुई सूखे की स्थिति के कारण काफी समस्याओं का सामना करना प़ड रहा है। इन समस्याओं के कारण किसानों का दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है और काफी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि वर्ष १९७२ में तत्कालीन केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री केएल राव द्वारा नदियों को जो़डने की परियोजना शुरु करने की दिशा में कदम उठाया गया था हालांकि उसके बाद इस परियोजना को आगे बढाने की दिशा में सतत प्रयास नहीं किया गया और इसलिए इसका कोई लाभदायक परिणाम नहीं मिला। यहां तक कि इस परियोजना के लिए बनाई गई टॉस्क फोर्स को भी भंग कर दिया गया। स्टालिन ने अपने पिता और द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि द्वारा राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में दो-दो बार नदियों को जो़डने की परियोजना शुरु करने की वकालत की थी। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया है कि द्रमुक सरकार के कार्यकाल के दौरान १८९ करो़ड रुपए की लागत से कावेरी गुंडार्ट और तमिरबरनी-कारुमणियार और नांबियार नदी को जो़डने की परियोजना शुरु की गई थी। द्रमुक नेता ने अपने पत्र में कहा है कि नदियों के पानी के बंटवारे के लिए जो संस्थागत व्यवस्थाएं की गई थी वह मौजूदा समय में काम नहीं कर रही हैं और इससे पानी की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है।