सलेम परियोजना: उच्चतम न्यायालय के 8 दिसंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिका
सलेम परियोजना: उच्चतम न्यायालय के 8 दिसंबर के फैसले पर पुनर्विचार के लिए याचिका
नई दिल्ली/भाषा। चेन्नई-सलेम आठ लेन की 10,000 करोड़ रुपए की हरित गलियारा परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना सही ठहराने वाले उच्चतम न्यायालय के आठ दिसंबर के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है।
यह याचिका सलेम निवासी युवराज एस ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध तथ्यों के आलोक में यह निर्णय त्रुटिपूर्ण है और इससे घोर अन्याय होगा।इसमें कहा गया है कि न्यायालय के पास कथित ‘लोक नीति’ के मामले में न्यायिक समीक्षा के लिए प्रतिपादित व्यवस्था पर विचार नहीं किया जबकि इसमें व्यापक नीति का उल्लंघन है।
न्यायालय ने आठ दिसंबर को इस परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण किए जाने के खिलाफ भूमि स्वामियों की अपील खारिज कर दी थीं।
न्यायालय ने कहा था कि किसी भी मार्ग को राजमार्ग घोषित करने और राजमार्ग के निर्माण, उसके रखरखाव तथा संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण की मंशा जाहिर करने से पूर्व केंद्र को कानूनों के तहत पहले ‘पर्यावरण मंजूरी’ लेने की जरूरत नहीं है।
उच्च न्यायालय ने आठ अप्रैल, 2019 को अपने फैसले में नए राजमार्ग के निर्माण के लिए विर्निदिष्ट भूमि के अधिग्रहण के वास्ते राष्ट्रीय राजमार्ग कानून की धारा 3ए (1) के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचनाओं को गैरकानूनी और कानून की नजर में दोषपूर्ण बताया था।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि इन कानूनों और नियमों में कहीं भी स्पष्ट रूप से प्रावधान नहीं है कि परियोजना के लिए केंद्र सरकार को धारा 2 (2) के अंतर्गत मार्ग के किसी हिस्से को राजमार्ग घोषित करने या 1956 के कानून की धारा 3ए के तहत राजमार्ग के निर्माण, इसके रखरखाव, प्रबंधन या संचालन के लिए भूमि अधिग्रहण अधिसूचना जारी करने से पहले पर्यावरण/वन मंजूरी लेना अनिवार्य है।
इसने कहा कि केंद्र ने 1956 के कानून के तहत नियम बनाए थे और इनमें भी दूर-दूर तक ऐसा संकेत नहीं है कि केंद्र के लिए पर्यावरण या वन कानूनों के तहत पूर्व अनुमति लेना जरूरी है।
आठ लेन की 277.3 किलोमीटर लंबी इस महत्वाकांक्षी हरित राजमार्ग परियोजना का मकसद चेन्नई और सलेम के बीच की यात्रा का समय आधा करना अर्थात करीब सवा दो घंटे कम करना है।
हालांकि, इस परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा है क्योंकि उन्हें अपनी भूमि चले जाने का डर है। दूसरी ओर, पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे हैं। यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुजरती है।