सत्ता, साजिश, सलाखें … कैसे जासूसी के झूठे आरोपों ने इसरो वैज्ञानिक का करियर तबाह किया?

सत्ता, साजिश, सलाखें … कैसे जासूसी के झूठे आरोपों ने इसरो वैज्ञानिक का करियर तबाह किया?

सत्ता, साजिश, सलाखें … कैसे जासूसी के झूठे आरोपों ने इसरो वैज्ञानिक का करियर तबाह किया?

इसरो के फेसबुक पेज से लिया गया एक चित्र।

अब उच्चतम न्यायालय के आदेश से जगीं उम्मीदें

क्या कठघरे में आएंगे असल गुनहगार?

नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम/दक्षिण भारत। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को जासूसी के झूठे आरोपों में फंसाने और करियर तबाह करने के मामले में उच्चतम न्यायालय का एक आदेश उन अधिकारियों पर भारी पड़ सकता है जो इस पूरे घटनाक्रम के पीछे थे।

Dakshin Bharat at Google News
जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसे गंभीर माना है और इसके लिए उत्तरदायी अधिकारियों के खिलाफ गहन जांच को जरूरी बताया है। साथ ही सीबीआई को आदेश दिया है कि वह पूरी साजिश की जांच करे, जिससे उक्त प्रतिभाशाली वैज्ञानिक का पूरा करियर खत्म हो गया था।

बता दें कि यह मामला करीब 26 साल पुराना है। तब नंबी नारायणन इसरो में वैज्ञानिक थे और उसके महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। इसके बाद उन पर जासूसी के गंभीर आरोप लगे। मामले के तार भारत के अलावा मालदीव से भी जुड़े थे। अक्टूबर 1994 में केरल के तिरुवनंतपुरम में मालदीव की एक महिला को गिरफ्तार किया गया था।

मरियम रशीदा पर आरोप थे कि उसने इसरो से रॉकेट इंजनों की गुप्त ड्रॉइंग लेकर पाकिस्तान को बेच दी। इसी सिलसिले में नंबी नारायणन को गिरफ्तार कर लिया गया। फिर उन्हें 48 दिनों तक जेल में रखा गया। यह सब वे बेगुनाह होकर भी झेल रहे थे जबकि जांच अधिकारी उनके साथ सख्ती से पेश आ रहे थे।

हर कोई समझता था ‘गद्दार’
आईबी और रॉ के अधिकारी उनसे ‘सच’ उगलवाने के लिए कई हथकंडे अपना रहे थे। हालांकि बाद में जांच सीबीआई को सुपुर्द कर दी गई। इस पूरे घटनाक्रम ने नंबी नारायणन के जीवन को झकझोर कर रख दिया। उनके करियर के साथ सामाजिक मान-सम्मान और प्रतिष्ठा धूमिल हो गई। रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने उनसे दूरी बना ली। उन्हें हर कोई ‘गद्दार’ समझता था।

नंबी नारायणन यह अपमान चुपचाप बर्दाश्त करते रहे। आखिरकार उन्होंने फैसला किया कि वे इंसाफ के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। अदालत को उनकी दलीलों में दम नजर आया। उनके खिलाफ लगाए गए आरोप अदालतों में एक-एक कर धराशायी हो गए।

नारायणन अपने मामले को उच्चतम न्यायालय तक ले गए और वहां भी जीते। न्यायालय ने उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। साथ ही केरल सरकार को आदेश दिया कि वह उन्हें 50 लाख रुपए का मुआवजा दे।

अब तक नारायणन का यह मामला सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर चुका था। लोगों ने इस वैज्ञानिक के पक्ष में आवाज उठानी शुरू की। केंद्र सरकार ने भी नारायणन के सम्मान व प्रतिष्ठा की बहाली के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित करने की घोषणा की।

तारीख पर तारीख
उल्लेखनीय है कि सीबीआई मई 1996 में केरल उच्च न्यायालय में जांच रिपोर्ट पेश कर चुकी है। इसके साथ दायर याचिका में नारायणन को झूठा फंसाने के लिए राज्य पुलिस के उच्चाधिकारियों व आईबी के उपनिदेशक आरबी श्रीकुमार पर कार्रवाई की बात कही थी। उसी साल जून में यह मामला सीबीआई से केरल सरकार ने ले लिया। इसके बाद राज्य पुलिस दोबारा नारायणन तथा अन्य के खिलाफ जांच करने लगी।

नवंबर 1996 में उच्च न्यायालय ने दोबारा जांच के फैसले को बहाल कर दिया, वहीं अप्रैल 1998 में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को झटका देते हुए दोबारा जांच किए जाने को निरस्त कर दिया। उसी साल मई में आदेश दिया कि केरल सरकार नारायणन को बतौर मुआवजा एक लाख रुपए का भुगतान करे।

मुआवजे का यह मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा। उसने मार्च 2001 में आदेश देकर केरल सरकार को कहा कि वह नारायणन को 10 लाख रुपए दे। इसके दस साल बाद यानी जून 2011 में केरल सरकार ने फैसला किया कि वह जांच अधिकारियों के खिलाफ मामला आगे नहीं चलाएगी। सितंबर 2012 में राज्य उच्च न्यायालय ने भी 10 लाख रुपए मुआवजे पर मुहर लगाते हुए केरल सरकार को इस चुकाने का आदेश दिया।

हार नहीं मानी
नारायणन ने हार नहीं मानी। वे लगातार अदालतों में केस लड़ते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई। अक्टूबर 2014 में उच्च न्यायालय ने कहा कि मामले से जुड़े जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने पर विचार किया जाए।

सितंबर 2018 में उच्चतम न्यायालय ने मुआवजे की रकम 50 लाख रुपए करते हुए एक समिति का गठन करने के लिए कहा जो जांच अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर विचार करे। न्यायालय ने स्वीकार किया कि नारायणन के खिलाफ किया गया आचरण अनुचित था। उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई मनोरोगियों जैसा बर्ताव थी। इससे उनकी गरिमा और मानवाधिकारों का हनन हुआ।

इस साल 5 अप्रैल को मामले में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब केंद्र की ओर से उच्चतम न्यायालय के सामने एक रिपोर्ट विचारार्थ प्रस्तुत की गई। इस ​रिपोर्ट में पुलिस अधिकारियों की भूमिका का जिक्र है।

अपमान और तकलीफ
मामले पर टिप्पणी करते हुए नारायणन का कहना है कि यह केरल पुलिस द्वारा गढ़ा गया और जिस तकनीक को चुराकर विदेशियों को बेचने का दावा किया गया, वह तब मौजूद ही नहीं थी। इस मामले में यह भी कहा जाता है कि इससे केरल के राजनीतिक दलों ने अपना सियासी फायदा तलाशने की कोशिश की, जिसकी वजह से एक वैज्ञानिक को अपमान, तकलीफ और वह सब झेलना पड़ा जिसके लिए वे जिम्मेदार नहीं थे।

नारायणन का जीवनसंघर्ष फिल्म ‘रॉकेट्री: द नंबी इफैक्ट’ में दिखाया जाएगा। इसमें माधवन उनका किरदार निभाते नजर आएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस कदम को सराहा है।

Tags:

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download