3700 करोड़ डकारने वाले के पिता ने साइकिल से की थी शुरुआत

3700 करोड़ डकारने वाले के पिता ने साइकिल से की थी शुरुआत

लखनऊ। विभिन्न बैंकों के कथित रूप से 3700 करोड़ रुपए डकारने वाले रोटोमैक कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी पर कानूनी शिकंजा कसता जा रहा है। विक्रम कोठारी भले ही अपने व्यापार को बढाने और बैंकों से लिए गए कर्ज को लौटाने में नाकाम रहे हों लेकिन उनके पिता ने काफी संघर्ष के साथ खड़े किए गए एक सफल व्यापार की कमान उनके हाथों में सौंपी थी। मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार विक्रम कोठारी के पिता कभी कानपुर में साइकिल चलाकर पान मसाला बेचा करते थे और काफी संघर्ष के साथ उन्होंने बाजार में ‘पान पराग’ ब्रांड उतारा था जोकि काफी सफल रहा था।
कोठारी के पिता का नाम मनसुख कोठारी था और उन्होंने पचास के दशक में एक साइकिल से पान मसाला बेचने की शुरुआत की और दस वर्षों के बाद उन्होेंने कानपुर क्षेत्र में पारले के उत्पादों के वितरण का कार्य प्राप्त किया। इसके बाद उनकी आर्थिक दशा सुधरने लगी। यह एक ऐसा दौर था जब कानपुर के बाजार में एक बादशाह नामक पान मसाला ब्रांड का राज हुआ करता था और अचानक यह कंपनी बंद हो गई और एक नया ब्रांड ‘पान बहार’ उसका स्थान लेने की कोशिशों में जुटा था। इसका फायदा उठाते हुए मनसुख कोठारी ने बाजार में अपना ब्रांड ’पान पराग’ उतारा जो कि ‘पान बहार’ को टक्कर देने के उद्देश्य से उतारा गया था।
90 के दशक आते आते मनसुख कोठारी द्वारा शुुरु किए गए ब्रांड पान पराग ने इस क्षेत्र में अपनी ऐसी पहचान बना ली थी कि लोग पान मसाले के लिए पान पराग नाम का उपयोग करने लगे थे। उनके इस उत्पाद ने न सिर्फ भारत में बल्कि खाड़ी देशों यूरोप और अमेरिका तक अपनी धमक दिखाई। अपने पान मसाले के ब्रांड के सफल होने के बाद मनसुख कोठारी ने पेन बनाने की कंपनी रोटोमैक और ’यस मिनरल वाटर’ नामक दो उत्पादों को बाजार में उतारा और उपभोक्ताओं ने उनके इन दोनों उत्पादों को भी काफी प्यार दिया।
जब कोठारी परिवार अपने व्यापार की बुलंदियों को छू रहा था उसी दौरान उनके परिवार में खटपट होने की बात सामने आनी शुरु हो गई। वर्ष 2000 के लगभग पान मसाला समूह के स्वामित्व वाली कंपनी का बंटवारा मनसुख कोठारी के पुत्रों के बीच हो गया। मनसुख अपने छोटे बेटे दीपक के साथ थे और विक्रम अपने पिता के खिलाफ ही बगावत का झंडा बुलंद कर रहे थे। बताया जा रहा है कि आखिरकार पान मसाला समूह से विक्रम को बाहर करने के लिए मनसुख और दीपक ने कुल मिलाकर 1,250 करोड़ रुपए उन्हें देने की योजना बनाई और इस संपत्ति में से 750 करोड़ रुपए तो नकदी के रुप में विक्रम कोठारी को दे दिये गए।
ऐसा कहा जाता है कि पिता से विक्रम कोठारी को विरासत के रुप में ‘रोटोमैक’ और ‘यस ब्रांड‘ जैसे सफल व्यवसाय मिले लेकिन वह इन सफल व्यापारों को चलाने में सफल नहीं हुए और उनकी कंपनी धीरे-धीरे नुकसान में जाने लगी। अपने नुकसान को कम करने के लिए विक्रम कोठारी ने कुछ नए उत्पाद भी बाजार में उतारे लेकिन उनके वह उत्पाद भी बाजार में धड़ाम हो गए। उल्लेखनीय है कि कानपुर के कुछ शॉपिंग माल और एक आवासीय परियोजना में भी विक्रम की साझेदारी होने की बात कही जाती है।

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