मधुमेह का फैलता जाल
'साल 2019 में 45 वर्ष और उससे ज्यादा आयु का लगभग हर पांचवां व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित था'
'हर पांच में से दो व्यक्तियों को स्वास्थ्य संबंधी इस स्थिति के बारे में संभवतः पता ही नहीं था'
'द लांसेट ग्लोबल हेल्थ' में प्रकाशित एक शोध का यह निष्कर्ष कि 'जैसे-जैसे देश की आबादी वृद्ध होती जाएगी, मध्यम आयु वर्ग और वृद्धों में मधुमेह के मामले बढ़ेंगे', एक ऐसी चुनौती का संकेत है, जिसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए। उक्त शोध की इन पंक्तियों से सहमत या असहमत हो सकते हैं कि 'भारत में साल 2019 में 45 वर्ष और उससे ज्यादा आयु का लगभग हर पांचवां व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित था और हर पांच में से दो व्यक्तियों को स्वास्थ्य संबंधी इस स्थिति के बारे में संभवतः पता ही नहीं था', लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अब कई बच्चों और युवाओं में भी इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं। पहले, मधुमेह के बारे में आम धारणा थी कि यह साधन-संपन्न शहरी लोगों को ही होती है, क्योंकि उन्हें शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता। गांवों में मेहनतकश लोग खेतों में पसीना बहाते थे। वे सूरज उगने से पहले उठते और रात को जल्दी सोते थे। खानपान भी सात्विक होता था। अनाज तो खेतों से मिल जाता था। हर घर में पशुधन होने से शुद्ध दूध-दही सुलभ था। अब गांवों में भी ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो देर रात तक मोबाइल फोन चलाते हैं और सुबह देर तक सोते हैं। उनके खानपान में ज्वार, बाजरा, मक्का, दूध-दही, हरी सब्जियों की जगह ऐसे पदार्थों ने ले ली है, जो सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। बच्चों पर पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव होता है। वहीं, युवाओं पर इस बात का दबाव होता है कि वे जल्द-से-जल्द मोटे वेतन वाली नौकरी, जिसमें सरकारी नौकरी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है, को हासिल करें। जिनके पास नौकरी है, उन पर बेहतर जीवन स्तर का दबाव होता है। जब लोगों के जीवन में खुशी नहीं होगी, वे कई तरह के दबाव और तनाव का सामना करेंगे तो उन्हें कम आयु में ही बीमारियां घेरेंगी।
यह शोध स्पष्ट संकेत देता है कि प्रकृति से दूरी, तनाव, अनियमित खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी जैसे बिंदु मधुमेह को बढ़ावा दे रहे हैं। हालांकि यह शोध कुछ सकारात्मक पहलू उजागर करता है। मधुमेह के बारे में जागरूक 46 प्रतिशत लोगों ने रक्त शर्करा के स्तर पर नियंत्रण पा लिया। लगभग 60 प्रतिशत लोग उसी वर्ष अपने रक्तचाप को नियंत्रित करने में सक्षम रहे। यह बताता है कि जागरूकता और समय पर उपचार से अपनी सेहत को ठीक किया जा सकता है। मुद्दा यह है कि ज्यादातर लोगों को बीमारी का पता नहीं चलता। इसके लिए जागरूकता जरूरी है। सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को चाहिए कि वे ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में मधुमेह जांच के लिए अभियान चलाएं। जिन राज्यों में मधुमेह के मामले बढ़ रहे हैं, वहां स्कूलों और दफ्तरों में विशेष जांच शिविर लगाने चाहिएं। भारत में नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए कम ही लोग अस्पताल जाते हैं। जब स्वास्थ्य समस्या बढ़ जाती है, तब डॉक्टर के कहने पर जांच करवाते हैं। चूंकि सरकारी अस्पतालों में बहुत भीड़ होती है और निजी अस्पतालों की सेवाएं (आर्थिक कारणों से) हर कोई नहीं ले सकता, इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं को और सुलभ बनाना होगा, ताकि लोग नियमित जांच भी करवा सकें। हमें अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करने होंगे। प्रकृति के अनुकूल दिनचर्या, स्वस्थ आहार, नियमित योगाभ्यास, व्यायाम आदि को जीवन का हिस्सा बनाना होगा। तनाव प्रबंधन को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। हम सब ऐसी जीवनशैली अपनाएं, जो न सिर्फ मधुमेह जैसी बीमारियों को रोके, बल्कि हमें प्रकृति के साथ भी जोड़े।

