निरक्षरता के इतनी तेज़ी से उन्मूलन में कैसे सफल रहा ईरान?

'तेहरान टाइम्स' में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, ईरान निरक्षरता उन्मूलन के बिल्कुल नज़दीक पहुंच गया है

निरक्षरता के इतनी तेज़ी से उन्मूलन में कैसे सफल रहा ईरान?

साक्षर पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर 23.4 प्रतिशत था, जो घटकर 6 प्रतिशत रह गया है

नई दिल्ली/तेहरान/दक्षिण भारत। इक्कीसवीं सदी में शिक्षा के काफ़ी प्रचार-प्रसार के बावजूद कई लोग निरक्षर हैं। इसके पीछे सुविधाओं का अभाव एक बड़ी वजह है। हालांकि लोगों में शिक्षा पाने के लिए उत्साह बढ़ रहा है, इसलिए साक्षरता का लक्ष्य धीरे-धीरे नज़दीक आ रहा है।

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'तेहरान टाइम्स' में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, ईरान निरक्षरता उन्मूलन के बिल्कुल नज़दीक पहुंच गया है। इसमें मरियम तवास्सोली कहती हैं कि साल 1979 की इस्लामी क्रांति के लगभग एक साल बाद निरक्षरता को खत्म करने के उद्देश्य से इमाम खुमैनी के आदेश से साक्षरता आंदोलन संगठन की स्थापना की गई थी।

उस समय ईरान की छह साल से अधिक उम्र की आधी से ज़्यादा आबादी निरक्षर थी। अब ईरान निरक्षरता दूर करने के बिलकुल क़रीब है। इससे पहले, बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल जाने से वंचित थे। उस समय जनसंख्या वृद्धि के साथ निरक्षर लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई।

'तेहरान टाइम्स' की इस ख़बर के मुताबिक़, देश से निरक्षरता को ख़त्म करना, सांस्कृतिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना और शैक्षिक न्याय, साक्षरता आंदोलन के गठन में सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक थे।

साक्षर पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर 23.4 प्रतिशत था, जो घटकर 6 प्रतिशत रह गया है। साल 1990 में साक्षरता के लिए सामान्य गतिशीलता योजना के कार्यान्वयन से साल 2023 में साक्षरता दर बढ़कर 97 प्रतिशत हो गई।

साल 1990 में, एक दशक के अंदर 4.1 मिलियन से अधिक निरक्षर लोगों को शिक्षित किया गया और साल 1996 में ईरान में साक्षरता दर 79.5 प्रतिशत (18 प्रतिशत की वृद्धि) तक पहुंच गई।

साल 2015, 2016 और 2017 में ये आंकड़े क्रमश: 84.6 प्रतिशत, 84.8 प्रतिशत और 87.6 प्रतिशत तक पहुंच गए। साल 2021 में आंकड़ा 90.5 प्रतिशत (छह वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में) था।

ये आंकड़े क्रांति के बाद साक्षरता दर में 42.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हैं। साल 1976 में, 10-49 आयु वर्ग के 48.8 प्रतिशत (लगभग 51 मिलियन लोग) साक्षर थे, जबकि साल 2016 में यह आंकड़ा 94.7 प्रतिशत था। इस तरह 46 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं, साल 2021 में आंकड़ा 97.1 प्रतिशत तक पहुंच गया।

'तेहरान टाइम्स' ने बताया कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक न्याय प्राप्त करने के लिए, पिछले 39 वर्षों में साक्षरता गतिविधियों का 55 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया गया। परिणामस्वरूप, देश के वंचित क्षेत्रों में साक्षरता सूचकांक 65.4 प्रतिशत से बढ़कर 90.8 प्रतिशत हो गया।

वहीं, ग्रामीण इलाकों में साक्षरता दर 30.5 प्रतिशत से बढ़कर 78.5 प्रतिशत हो गई। दूसरे शब्दों में, ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर में वृद्धि तेज हो गई और ग्रामीण तथा शहरी साक्षरता दर के बीच का अंतर साल 1976 में 34.9 प्रतिशत से घटकर साल 2016 में 12.3 प्रतिशत हो गया। यह आंकड़ा साल 2021 में बदलकर 11 प्रतिशत हो गया।

इस बीच, साक्षरता आंदोलन विदेशी नागरिकों, विशेषकर अफगानों पर भी विचार करने से नहीं चूका, क्योंकि पिछले वर्षों में लगभग 10 लाख शरणार्थी साक्षर हो गए हैं।

पिछले वर्षों में, साक्षरता आंदोलन संगठन ने ऐसी परियोजनाएं लागू की हैं, जो निरक्षरता के कारणों को रोकने में प्रभावी रही हैं और विदेशियों, कैदियों, सैनिकों, निरक्षर छात्रों के माता-पिता, कर्मचारियों, कार्यकर्ता और महिलाएं जो घर की मुखिया हैं, सहित विभिन्न आयु समूहों और वर्गों में साक्षरता को बढ़ावा देने में सक्षम रही हैं। 

'तेहरान टाइम्स' ने बताया कि इन सभी प्रयासों के बावजूद, सीखने की क्षमता की कमी जैसे विभिन्न कारणों से लगभग दो प्रतिशत लोग निरक्षर हैं।

चूंकि 'साक्षरता' की नई परिभाषा अब पढ़ने और लिखने तक ही सीमित नहीं है। साक्षरता आंदोलन का पहला मिशन बुनियादी निरक्षरता को दूर कर देना भर नहीं है। समाज के विकास के साथ साक्षरता की परिभाषा को बदलना होगा। अन्यथा मौजूदा कई समस्याएं बनी रहेंगी। इसीलिए कहा जाता है कि साक्षरता कभी न ख़त्म होने वाली प्रक्रिया है।

साक्षरता आंदोलन ने रुचि रखने वालों को प्रशिक्षित करने के लिए आभासी पाठ्यक्रमों का उपयोग करते हुए नए तौर-तरीके अपनाए हैं। प्रतिभागी हर शैक्षिक पाठ्यक्रम के बाद प्रासंगिक परीक्षा दे सकते हैं। इससे भविष्य में साक्षर लोगों की संख्या में अवश्य वृद्धि होगी।

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