कर्नाटक में भाजपा के सेनापति को फिर सत्ता की कमान?
कर्नाटक में भाजपा के सेनापति को फिर सत्ता की कमान?
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस) के गठबंधन वाली कुमारस्वामी सरकार सत्ता में आने के 14 महीनों बाद ही गिर गई। अब सबकी निगाहें भाजपा की ओर हैं, खासतौर से बीएस येड्डीयुरप्पा की ओर। सोशल मीडिया पर जोरशोर से चर्चा है कि येड्डीयुरप्पा एक बार फिर सूबे की कमान संभालने जा रहे हैं। इससे भाजपा समर्थकों में हर्ष की लहर है।
पिछले दिनों विधायकों की बगावत से भंवर में फंसी कुमारस्वामी सरकार के बारे में कयासों का दौर जारी था। सरकार के समक्ष लगातार चुनौतियां बढ़ते जाने से यह तय माना जा रहा था कि अब गेंद भाजपा के पाले में जाने वाली है और कर्नाटक की कमान येड्डीयुरप्पा ही संभालेंगे।दक्षिण में भाजपा को किया मजबूत
कर्नाटक के मंड्या जिले में बुकानाकेरे के लिंगायत परिवार में 27 फरवरी, 1943 को जन्मे येड्डीयुरप्पा को कर्नाटक में भाजपा का सेनापति भी कहा जाता है। वास्तव में दक्षिण के इस राज्य में भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में अनेक नेताओं, कार्यकर्ताओं की भूमिका रही है। उनमें येड्डीयुरप्पा निर्विवाद रूप से बेहद लोकप्रिय नेता हैं। साल 2008 में कर्नाटक में जब पहली बार भाजपा की सरकार बनी तो येड्डीयुरप्पा मुख्यमंत्री बने।
कर्नाटक में भाजपा की नींव मजबूत करने वाले नेताओं में स्व. अनंत कुमार का नाम भी प्रमुखता से शामिल किया जाता है। बेंगलूरु दक्षिण सीट से लोकसभा सांसद रहे अनंत कुमार ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया और दक्षिण में ‘कमल’ खिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संघर्षमय रहा शुरुआती जीवन
येड्डीयुरप्पा का शुरुआती जीवन काफी संघर्षमय रहा है। जब वे सिर्फ चार साल के थे, उनकी माता का निधन हो गया। येड्डीयुरप्पा पढ़ाई के दौरान एक कॉलेज में सायंकालीन कक्षाएं लेते थे। साथ ही एक प्राइवेट कंपनी में 300 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर नौकरी भी करते थे।
धर्म में गहरी आस्था रखने वाले येड्डीयुरप्पा साल 1965 में समाज कल्याण विभाग में क्लर्क बन गए लेकिन बाद में वह नौकरी छोड़ दी। फिर वे वीरभद्र शास्त्री से मिले और उनकी चावल मिल में क्लर्क के तौर पर काम करने लगे। शास्त्री ने येड्डीयुरप्पा की काबिलियत को पहचाना और उन्हें सदैव प्रोत्साहन देते रहे। उन्होंने अपनी बेटी मित्रा देवी से उनका विवाह करा दिया।
संघ से जुड़ाव
येड्डीयुरप्पा कॉलेज के दिनों से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं। साल 1970 में उन्हें आरएसएस की शिकारीपुर इकाई का कार्यवाह बनाया गया। उन्होंने दो साल बाद नगरपालिका का चुनाव लड़ा और जीते। इसी के साथ येड्डीयुरप्पा संगठन में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालते रहे।
लिंगायत समुदाय से आने वाले येड्डीयुरप्पा साल 2012 में भाजपा से अलग भी हुए। उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष नामक पार्टी बनाई। हालांकि पार्टी को खास सफलता नहीं मिली, बल्कि भाजपा और येड्डीयुरप्पा दोनों को नुकसान हुआ। इसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस राज्य की सत्ता में आ गई।
फिर भाजपा में वापसी
जनवरी 2014 में येड्डीयुरप्पा ने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया। साल 2016 में भाजपा ने उन्हें दोबारा कर्नाटक इकाई का अध्यक्ष बनाया। राज्य में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण येड्डीयुरप्पा को शपथग्रहण के कुछ घंटे बाद ही इस्तीफा देना पड़ा।
ज्योतिष में विश्वास
येड्डीयुरप्पा ज्योतिष शास्त्र में भी काफी विश्वास रखते हैं। कहा जाता है कि साल 2007 में उन्होंने एक ज्योतिषी के सुझाव पर अपने नाम की स्पेलिंग में बदलाव किया था। उन्होंने अपने नाम के साथ अतिरिक्त डी और वाई को जोड़ा और आई हटा दिया।
सियासी हालात ने पलटी बाजी
अब सियासी हालात ने एक बार फिर बाजी पलट दी है। कुमारस्वामी सरकार गिरने के बाद कांग्रेस-जद (एस) खेमे में मायूसी और भाजपा में उत्साह की लहर है। येड्डीयुरप्पा ने कहा है कि अब विकास के नए युग की शुरुआत होगी। यकीनन नई सरकार पर राज्य में विकास के युग की शुरुआत करने और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का काफी दबाव होगा।