टीवीके रैली भगदड़: तमिलनाडु भाजपा नेता ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की

मामले की जांच तमिलनाडु पुलिस से लेने का आग्रह किया

टीवीके रैली भगदड़: तमिलनाडु भाजपा नेता ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की

Photo: @BJP4India X account

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। तमिलनाडु के एक भाजपा नेता ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर 27 सितंबर को करूर में अभिनेता एवं टीवीके संस्थापक विजय की रैली के दौरान हुई भगदड़ की सीबीआई जांच की मांग की है। उस रैली में 41 लोगों की मौत हो गई थी और 60 से अधिक लोग घायल हो गए थे।

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उच्चतम न्यायालय के वकील एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्य कानूनी प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष जीएस मणि द्वारा दायर याचिका में करूर घटना की तमिलनाडु पुलिस की जांच पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।

शीर्ष न्यायालय ने अन्य संबंधित याचिकाओं को पहले ही 10 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है।

एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड आर सतीश के माध्यम से दायर अपनी याचिका में मणि ने न्यायालय से आग्रह किया है कि मामले की जांच तमिलनाडु पुलिस से लेकर सीबीआई या सर्वोच्च न्यायालय के किसी वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक स्वतंत्र विशेष जांच टीम (एसआईटी) को सौंप दी जाए।

याचिका में कहा गया है, 'याचिकाकर्ता, जो एक जनहितैषी नागरिक है और इस न्यायालय का नियमित अधिवक्ता भी है... ने 3 अक्टूबर के आम अंतिम निर्णय के खिलाफ यह विशेष अनुमति याचिका दायर की है... जिसमें उसके द्वारा दायर रिट याचिकाओं का एक समूह भी शामिल है... जिसमें उसने तमिलनाडु के करूर जिले में एक राजनीतिक बैठक में भगदड़ की घटना के संबंध में प्रतिवादी राज्य की स्थानीय पुलिस से जांच को सीबीआई को हस्तांतरित करने और पर्याप्त मुआवजे के भुगतान की मांग की है।'

इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने कहा था कि ठोस सामग्री के बिना व्यापक आरोपों के आधार पर जांच को केंद्रीय एजेंसी को सौंपना उचित नहीं ठहराया जा सकता।

याचिका में कहा गया है, '(उच्च) न्यायालय ने मुआवजा बढ़ाने का निर्देश देने से भी इन्कार कर दिया और कहा कि राज्य सरकार ने हर पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की है, जबकि राजनीतिक दल ने 20 लाख रुपए की घोषणा की है। यह घटना न केवल आपराधिक लापरवाही का मामला है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 का भी घोर उल्लंघन है।'

इसमें कहा गया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच न केवल पीड़ितों के, बल्कि प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

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