सरहद पार का सच
'दो क़ौमी नज़रिया' है नफ़रत की जड़
भारत को समर्थ, सशक्त एवं सुरक्षित बनाएं
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा ने पाकिस्तान में 'घर जैसा महसूस होने' संबंधी बयान देकर एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भारत के कुछ 'बुद्धिजीवियों' में शत्रुबोध का घोर अभाव है। वे आज भी एक ऐसी ख़याली दुनिया में रहते हैं, जहां उन्हें पाकिस्तान घर जैसा लगता है। हमारे देश में कई लोगों का विचार है कि सरहद पार के लोगों के साथ भाषा, खानपान, पहनावे में समानता होने के कारण भविष्य में संबंध सुधर सकते हैं। अक्सर ऐसे लोग मासूमाना अंदाज़ में यह दलील देते मिल जाते हैं कि 'इन्सान तो एक जैसे ही हैं, बस सरहद बीच में आ गई!' वे भूल जाते हैं कि ऐसा सिर्फ उनका सोचना है। सरहद पार के लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं - इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। वर्ष 1947 में जब भारतविभाजन के परिणामस्वरूप पाकिस्तान बना था, तब यह बात कुछ हद तक सही मानी जा सकती थी, लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं। मौजूदा पाकिस्तान में बहुत बड़ी आबादी उन लोगों की है, जो भारत को दुश्मन मानते हैं। उन्हें स्कूलों और मदरसों के पाठ्यक्रमों में बार-बार दो क़ौमी नज़रिया पढ़ाया तथा रटाया गया है। यह नज़रिया हिंदुओं के खिलाफ नफरत से भरा हुआ है। यह हर उस चीज से नफरत करना सिखाता है, जिसका संबंध भारतीय संस्कृति और गौरवशाली इतिहास से है। पाकिस्तान को उक्त नज़रिए से अलग करके देखा और समझा नहीं जा सकता है। हमारे कितने 'बुद्धिजीवियों' को दो क़ौमी नज़रिए के बारे में पता है? जब पाकिस्तान का जिक्र होता है तो वे उसकी बुनियाद को समझे बग़ैर भावुकतापूर्ण बातें करने लग जाते हैं।
पाकिस्तान हो या बांग्लादेश - इनकी भाषा, खानपान, पहनावे और इमारतों को देखकर यह धारणा बना लेना कि ये 'घर जैसे' हैं, बिल्कुल ही गलत विचार है। बाहर से घर जैसे लगने वाले इन देशों के नागरिकों को हम कैसे लगते हैं? घर को घर बनाते हैं वहां के लोग, उनके विचार, उनके तौर-तरीके। अगर किसी घर के लोग हमें देखते ही काट खाने को दौड़ें, हमारे घर में सेंध लगाएं, नुकसान पहुंचाने के लिए नित-नई साजिशें रचें तो उसके साथ भाषा, खानपान, पहनावे जैसी समानता कोई मायने नहीं रखती। पाकिस्तान में आज जो पीढ़ी जवान हो रही है, उसे हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति के बारे में कोई जानकारी नहीं है। जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर का आग़ाज़ किया था तो लाखों पाकिस्तानी इंटरनेट पर 'सिंदूर' के बारे में सर्च कर रहे थे। जो सिंदूर कभी उनकी दादियां, परदादियां लगाया करती थीं, आज वे उससे अनजान हैं! उन्हें रामायण, महाभारत के बारे में कोई ज्ञान नहीं है। कई पाकिस्तानी इतने गहरे अंधकार में डूबे हुए हैं कि उनका दृढ़ विश्वास है- 'मुगलों के आने से पहले भारत में कुछ नहीं था!' अपने इतिहास से पूरी तरह कट चुके इन लोगों के दिलो-दिमाग़ में आईएसआई और कट्टरपंथियों ने जम्मू-कश्मीर के बारे में भ्रामक एवं काल्पनिक बातें बैठा दी हैं। वे यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि जम्मू-कश्मीर ऋषियों और संतों की भूमि है। हमारे कई 'बुद्धिजीवी' जब किसी मुलाकात या कार्यक्रम में कहते हैं कि वर्ष 1947 में बंटवारे के दौरान बहुत लोगों ने प्राण गंवाए थे और बहुत गलत काम हुए थे, तो वे उस समय उनकी हां में हां मिला देते हैं, लेकिन मन ही मन हंसते भी हैं। हम बंटवारे को एक त्रासदी मानते हैं, वे इसे अपनी फ़तह मानते हैं। तो कहां गई समानता और कहां गई मानवता? जो खुद हमसे अलग होकर दूर चले गए, वे चले गए। अब भूगोल बदल चुका है। सिंधु में बहुत पानी बह चुका है। उस हिस्से को 'घर जैसा' मानने की कल्पनाओं से बाहर निकलें और अपने घर (भारत) को समर्थ, सशक्त एवं सुरक्षित बनाएं।

