जम्मू-कश्मीर पर रक्षामंत्री का दूरगामी संदेश
राजनाथ सिंह ने कहा कि हम गुलाम कश्मीर पर अपना दावा कभी नही छोड़ेंगे
Photo: RajnathSinghBJP FB Page
ललित गर्ग
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कश्मीर में विकास, पर्यटन में भारी वृद्धि, शांति एवं सौहार्द का वातावरण बनना गुलाम कश्मीर के लोगों को प्रेरित कर रही हैं कि उन्हें भी इस ओर आजाद फिजा में सांस लेने का मौका मिले| ऐसे में रक्षामंत्री ने उन्हें भारत का हिस्सा बनने का निमंत्रण देकर पड़ौसी देश की दुखती रग को छेड़ दिया है एवं पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है, बल्कि गुलाम कश्मीर के लोगों में भी नया विश्वास एवं मनोबल जगा दिया है| रक्षामंत्री का यह निमंत्रण बहुत मायने रखता है, इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा था कि गुलाम कश्मीर हमारा है एवं हम इसे लेकर रहेंगे| गुलाम कश्मीर के लोग भारत से मिलने के लिये उत्सुक है, आन्दोलनरत है| क्योंकि पाकिस्तानी शासक उन्हें विदेशियों की तरह देखते हैं्| यह एक सच्चाई भी है| पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर के लोगों का जैसा दमन और शोषण कर रहा है, उसके कई प्रमाण सामने आ चुके हैं| इसी दमन और शोषण के चलते जब-तब वहां पाकिस्तान के खिलाफ सड़कों पर उतरकर लोग भारत जाने की अनुमति भी मांगते रहते हैं्| गुलाम कश्मीर में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोगों को मारा जा रहा है| वहां के लोग यह अच्छी तरह देख रहे हैं कि भारतीय भूभाग में किस तरह तेजी से विकास हो रहा है और उन्हें किस तरह पाकिस्तान की ओर से ठगा जाता रहा है| कहना कठिन है कि रक्षा मंत्री के बयान पर पाकिस्तान क्या कहता है, लेकिन इसके आसार कम ही हैं कि वह आतंकवाद को सहयोग-समर्थन देने से बाज आएगा| पाकिस्तान की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आंदोलन कर रहे इस चुनाव पर सिर्फ भारतीयों नहीं, पूरी दुनिया की नजर है|
विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच राजनाथ सिंह ने कहा कि हम गुलाम कश्मीर पर अपना दावा कभी नही छोड़ेंगे| वैसे भी गुलाम कश्मीर के लोग हमारे ही लोग है, उन्हें पाकिस्तान ने कभी अपना माना ही नहीं है| राजनाथ सिंह का गुलाम कश्मीर के लोगों को संदेश पाकिस्तान के ताबूत में आखिरी कील की तरह है|
रक्षा मंत्री ने अपने वक्तव्य के जरिये चुनाव के परिदृश्यों को एक नया मोड़ दिया है| उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस को भी निशाने पर लिया| उनके लिए ऐसा करना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के नेता पाकिस्तानपरस्ती का परिचय देते हुए उससे बात करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन ऐसा करते हुए वे यह रेखांकित नहीं करते कि वार्ता के लिए उसे आतंकवाद पर लगाम लगानी होगी| नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद-370 की वापसी का भी सपना दिखा रहे हैं| यह दिवास्वप्न के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि अब इस विभाजनकारी और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले अनुच्छेद की वापसी संभव नहीं और इसीलिए रामबन में राजनाथ सिंह ने कहा, भाजपा ने डंके की चोट पर अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर में शांति और समृद्धि का रास्ता बनाया है| किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं कि वह इस अनुच्छेद को वापस ला सके| ऐसा कहते हुए उन्होंने कांग्रेस को भी निशाने पर लिया, जो कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है और अनुच्छेद-३७० की वापसी के उसके वादे पर मौन धारण किए हुए है| पाकिस्तान एवं घाटी के विभिन्न राजनीतिक दल बार-बार अनुच्छेद 370 का जिक्र कर दुनिया के सामने यह गीत गाते रहे हैं कि ३७० हटने से कश्मीर के लोग नाराज हैं| इस झूठ को खुलासा स्वयं कश्मीर की जनता ने लोकसभा चुनाव में वोटिंग के जरिये किया है|
घाटी में चुनाव में हिस्सेदारी कर रहे हैं राजनीतिक दल पाकिस्तानी राग अलापते रहे हैं्| उमर अब्दुल्ला इस वक्त अफ़ज़ल को दी गयी फांसी के विवाद में घिर चुके हैं्| उन्होंने कह दिया कि अफ़ज़ल को फॉंसी देना गलत था| चूँकि अफ़ज़ल संसद पर हमले का ज़िम्मेदार था, उसकी तरफदारी करके नेशनल कान्फ्रेंस स्पष्ट रूप से जता रही है कि वह आतंकवादियों से मिली हुई है या उनकी तरफ़दारी कर रही है और कांग्रेस उसकी साथी है| इन स्थितियों में कांग्रेस को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र में किए गए वादों से सहमत है? उसे यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह उमर अब्दुल्ला के इस आकलन से सहमत है कि संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु को फांसी की सजा देने से कुछ हासिल नहीं हुआ? यह अलगाववाद और आतंकवाद के दौर की वापसी के समर्थकों की हमदर्दी हासिल करने वाला ही बयान है और इसीलिए राजनाथ सिंह ने उन पर कटाक्ष किया कि अफजल को फांसी न दी जाती तो क्या उसके गले में हार डाले जाते| यह विडंबना ही है कि कांग्रेस उमर अब्दुल्ला के इस बयान पर भी चुप्पी साधे है, जबकि उसे फांसी की सजा मनमोहन सिंह सरकार के समय ही दी गई थी| ऐसे में कश्मीर के लोगों को तय करना होगा कि वे देश प्रेमियों के साथ हैं या देशद्रोहियों के साथ? बहरहाल, धारा ३७० हटने के बाद यहॉं पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में पचास प्रतिशत से ऊपर मतदान हुआ था जो अच्छा संकेत है| वर्ना इससे पहले तो तीस प्रतिशत मतदान को भी अच्छा समझा जाता रहा|
जम्मू एवं कश्मीर के चुनाव अनेक दृष्टियों से न केवल राजनीतिक दशा-दिशा स्पष्ट करेंगे बल्कि बल्कि राज्य के उद्योग, पर्यटन, रोजगार, व्यापार, रक्षा, शांति आदि नीतियों तथा राज्य की पूरी जीवन शैली व भाईचारे की संस्कृति को प्रभावित करेगा| वैसे तो हर चुनाव में वर्ग, जाति, सम्प्रदाय का आधार रहता है, पर इस बार वर्ग, जाति, धर्म, सम्प्रदाय व क्षेत्रीयता के साथ गुलाम कश्मीर एवं अनुच्छेद 370 के मुद्दे व्यापक रूप से उभर कर सामने आयेंगे| इन चुनावों में मतदाता जहां ज्यादा जागरूक दिखाई दे रहा है, वहीं राजनीतिज्ञ भी ज्यादा समझदार एवं चतुर बने हुए दिख रहे हैं| उन्होंने जिस प्रकार चुनावी शतरंज पर काले-सफेद मोहरें रखे हैं, उससे मतदाता भी उलझा हुआ है| अपने हित की पात्रता नहीं मिल रही है| कौन ले जाएगा राज्य की एक करोड पच्चीस लाख जनता को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विकास एवं शांति की दिशा में| इन स्थितियों में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर की जनता को जागरूक किया है एवं मतदान के प्रति सतर्क होने के साथ अपना मतदान विवेक से करने का वातावरण निर्मित किया है|