शीघ्र हो शांतिवार्ता

शीघ्र हो शांतिवार्ता

अगर रूसी हथियार आर्मीनियाई सैनिकों के हाथों में जाते हैं तो बहुत संभव है कि ‘अन्य शक्तियां’ अज़रबैजान को हथियारों की आपूर्ति शुरू कर दें


अभी रूस-यूक्रेन युद्ध की ज्वाला ठंडी नहीं हुई कि आर्मीनिया और अजरबैजान में भिड़ंत हो गई। यह विश्व-शांति के लिए शुभ संकेत नहीं है। अगर ये दोनों देश भी रूस-यूक्रेन की राह पर निकल पड़े तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान यह दावा कर चुके हैं कि सोमवार से अब तक उनके 100 से ज्यादा सैनिकों की मौत हो गई है। हालांकि नुकसान अजरबैजान को भी हो रहा है। उसके करीब 50 सैनिक हताहत होने की बात सामने आ रही है।

दोनों के बीच शांति के तुरंत कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं, बल्कि हर कोई दूसरे पक्ष पर जिम्मेदारी डाल रहा है। पाशिन्यान तो संसद से देशवासियों के नाम संदेश जारी करते हुए अपने 105 सैनिकों के मारे जाने की बात कहकर अजरबैजान के प्रति गुस्सा जाहिर कर चुके हैं। मामला सिर्फ दोनों ओर के सैनिकों के मारे जाने तक सीमित नहीं है।

पाशिन्यान यह भी कह चुके हैं कि अजरबैजान ने उनकी 10 वर्ग किमी जमीन कब्जा ली है। वे ‘शत्रु पक्ष’ के खिलाफ रूस से मदद मांग रहे हैं। रूस अभी यूक्रेन में ‘व्यस्त’ है। यूक्रेन का पलड़ा हल्का जरूर है, लेकिन उसने कड़ी टक्कर दी है। रूस को इस लड़ाई से भारी नुकसान हुआ है। सवाल है- क्या इस स्थिति में रूस आर्मीनिया की मदद करेगा? क्या वह एक और मोर्चा खोलने का जोखिम वहन कर सकता है? यह माना जा सकता है कि रूस आर्मीनिया की मदद के लिए अपनी सेना नहीं भेजेगा, क्योंकि उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता यूक्रेन फतह करना है, लेकिन क्या वह हथियारों से मदद कर सकता है?

अगर रूसी हथियार आर्मीनियाई सैनिकों के हाथों में जाते हैं तो बहुत संभव है कि ‘अन्य शक्तियां’ अज़रबैजान को हथियारों की आपूर्ति शुरू कर दें। इससे दोनों ही पक्ष खुद को ताकतवर महसूस करने लगेंगे और फिर जो भिड़ंत होगी, वह अत्यधिक भयावह और भारी नुकसानदेह होगी।

दूसरी ओर अज़रबैजान अब तक ‘मासूम’ बना हुआ है। वह न केवल आर्मीनिया के दावों को खारिज करता है, बल्कि यह भी दावा करता है कि आर्मीनिया ने खुद ही अपने कलबाकार जिले में सैन्य ठिकानों पर गोलीबारी कर आग में घी डालने का काम किया है। वह जवाबी कार्रवाई की पुष्टि तो करता है, लेकिन इस बात से साफ इन्कार करता है कि उसकी गोलीबारी में रूस की एफएसबी सुरक्षा सेवा के वाहनों को निशाना बनाया गया।

हालांकि संतोषजनक यह है कि अमेरिका और रूस दोनों ही इन देशों से अपील कर रहे हैं कि वे तनाव कम करें। खासतौर से रूस का यहां काफी प्रभाव है। साल 2020 में भी जब दोनों देशों में भिड़ंत हुई तो रूस ही बीच-बचाव करने आया, जिसके बाद ये शांत हुए थे। इस बार रूस कोई सक्रिय भूमिका निभाएगा, इस पर संदेह जताया जा रहा है, क्योंकि रूस खुद यूक्रेन में उलझा हुआ है। वह अब तक इसकी राजधानी पर अपना झंडा नहीं लहरा पाया है। ऐसे में अगर दोनों देश इसी तरह युद्धरत रहे तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए दोनों देशों को एक-दूसरे के खिलाफ अंगारे उगलने के बजाय शांति बहाल करने पर जोर देना चाहिए।

जिन देशों के साथ इनके मधुर संबंध हैं, उन्हें चाहिए कि वे पहल करें और जंग की ज्वाला पर पानी डालें। यूं तो अजरबैजान के तुर्की के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं। दोनों में मुस्लिम बाहुल्य है। वहीं, आर्मीनिया में ईसाई आबादी ज्यादा है। वह रूस का करीबी है। रूस के इन दोनों ही देशों के साथ अच्छे संबंध हैं। ये दोनों कभी सोवियत झंडे तले आते थे। अब कड़वाहट फैल गई है। दोनों ओर ही सैनिकों की मृत्यु के अलावा भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है, जो आखिरकार जनता के हिस्से आएगा।

कोरोना महामारी के कारण इनकी अर्थव्यवस्था को पहले ही खासा नुकसान हो चुका है। अब युद्ध के नगाड़े बजने से अर्थव्यवस्था का चौपट होना तय है, जिसका असर अन्य देशों पर भी आएगा। बेहतर यह होगा कि शीघ्र ही शांतिवार्ता हो और उसे धरातल पर लागू किया जाए।

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