बड़े भोले हैं सिद्धू!
बड़े भोले हैं सिद्धू!
क्रिकेट खिलाड़ी से राजनेता बने पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का विवादों से पुराना नाता रहा है। उनके बयानों अथवा आचरण से जब भी कोई विवाद उपजता है, तो वे अपने तरीके से बात को तोड़-मोड़कर अपनी सफाई देते रहते हैं। सिद्धू का ताजा विवाद उनकी हाल की पाकिस्तान यात्रा से जुड़ा है।
सिद्धू इमरान खान के बुलावे पर उनके शपथ ग्रहण समारोह में शरीक होने गए थे। उन्होंने यात्रा से पूर्व इमरान खान को अपना अच्छा दोस्त और अच्छा इंसान बताया था। कहा था कि इमरान के प्रधानमंत्री बनने से भारत-पाक के बीच रिश्ते बेहतर होंगे और पाकिस्तानी जनता के अच्छे दिन आएंगे। खुदा करे ऐसा हो, लेकिन भारत-पाक के बीच रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद किसी भारतीय को फिलहाल तो कतई नहीं है। आगे के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।शपथ समारोह में शरीक होने का निमंत्रण भारत में अन्य कुछ लोगों को भी मिला था, लेकिन किसी ने इमरान को लेकर कोई उत्साहवर्धक बयान नहीं दिया और पाकिस्तान कोई गया भी नहीं। पाकिस्तान कैसा देश है और वहां की सेना का आचरण कैसा है, इन सभी बातों से सिद्धू क्या अपरिचित हैं?
पाकिस्तान की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई की गतिविधियों के बारे में सारी दुनिया को पता है। ये दोनों सरकारी प्रतिष्ठान आतंकवादियों को संरक्षण देते हैं और भारत में आतंकी हमलों के लिए घुसपैठ करवाते हैं। पाकिस्तान में आतंकवाद की फैक्ट्री खुली हुई है। फिर भी सिद्धू तो वहां के सेना प्रमुख जनरल बाजवा से गले ही मिल आए और बाजवा को शांति पुरुष तक कह डाला!
भारत के हर आदमी को पता है कि भारत का असली दुश्मन बाजवा ही है जो अशांति फैलाने के अलावा कुछ नहीं करता। हाथ मिले तो गले मिलने में कोई बुराई नहीं थी, लेकिन बाजवा को शांति पुरुष बताना आपत्तिजनक है। बाजवा ने यदि कोई शांति की बात कही भी तो सिद्धू को भी बड़ी चतुराई से जवाब देना चाहिए था।
फिर सिद्धू कह रहे हैं कि बाजवा साहब गुरुनानक देव की 550वीं जयंती पर वह करतारपुर मार्ग खोलना चाहते हैं। मार्ग खोलने का निर्णय सरकार यानी इमरान खान करेंगे या फिर सेना प्रमुख? बाजवा ने पैंतरा दिखाया और सिद्धू ने उसे सही मान लिया। पैंतरेबाजी करना पाकिस्तान की सच्चाई है, लेकिन सवाल सिद्धू का है, जिन्होंने अपनी पार्टी के लिए अजीबो-गरीब स्थिति पैदा कर दी है।
सिद्धू का कारनामा खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के गले भी नहीं उतरा। उन्होंने स्पष्ट किया है कि सिद्धू को बाजवा से गले मिलने की जरूरत नहीं थी और वह चाहते तो यह घटना टाली जा सकती थी। अमरिंदर की इस बात में दम है कि बाजवा के ही आदेश पर पाकिस्तानी सेना के जवान भारतीय सैनिकों की हत्या करते हैं।
भारतीय शहीदों के असली गुनहगार तो बाजवा ही हैं। सैनिक शहीद परमजीत के परिवार ने पूछा, सिद्धू पाकिस्तानी सेना के प्रधान बाजवा से पाक सैनिकों द्वारा शहीद जवानों के काटे गए सिर ही मांग लाएं। अगर सिर नहीं ला सकते तो वीर जवानों की पगड़ी ही ले आएं।
दूसरी ओर, जिस भाजपा के साथ सिद्धू ने राजनीति की लंबी पारी खेली, उसने भी उन पर हमला बोला है। भाजपा ने राष्ट्रीय शोक के समय इस तरह पाकिस्तान जाने की भी आलोचना की है। उनके पाकिस्तानी सेना प्रमुख से गले मिलने को शहीद सैनिकों का अपमान करार दिया है।
अगर अब भी सिद्धू को लगता है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया और विदेश जाकर वह भारत की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कोई भी कदम उठा सकते हैं तो वह एक अपरिपक्व राजनेता ही माने जाएंगे।