वियतनामी युद्ध में अमेरिका को मात देने में कु ची सुरंगों ने निभाई अहम भूमिका
आंखों से देखी और कानों से सुनी इन सुरंगों की कहानी रोंगटे खड़े कर देती है
.. श्रीकांत पाराशर ..
वियतनाम देश को आजादी किसी ने थाली में सजाकर पेश नहीं की थी बल्कि वियतनामी सैनिकों ने पहले 1940 के दशक में फ्रांसीसी उपनिवेश से एवं बाद में अमेरिका जैसे बड़े देश से बहुत बहादुरी और चतुराई भरी रणनीति के तहत साहसिक युद्ध लड़ा और विजय हासिल की। वियतनाम की जनता ने इस दौरान अपने सैनिकों का भरपूर साथ दिया और उन पर पूरा भरोसा किया, भले ही इस स्वतंत्रता के लिए उन्हें कितनी ही यातनाएं झेलनी पड़ी हों।वियतनाम के सबसे प्रमुख शहर को ची मिन्ह से लगभग 70 किमी दूर कु ची जिले में कु ची सुरंगें स्थित हैं जो करीब 250 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हैं। ये सुरंगें पूरे वियतनाम देश के अधिकांश हिस्सों में फैली सुरंगों के नेटवर्क का एक हिस्सा मात्र हैं। यह सच्चाई है कि वियतनाम युद्ध में इन सुरंगों ने सबसे अधिक अहम भूमिका निभाई थी क्योंकि युद्ध के दौरान वियतनामी कांग्रेस के सैनिकों ने दुश्मन से छिपने के लिए इन सुरंगों का इस्तेमाल किया था। दिन के समय सैनिक इन सुरंगों में रहकर रणनीति तैयार करते थे और रात में बाहर निकल कर गौरिल्ला प्रणाली से दुश्मन पर हमला करते थे। इन सुरंगों का उपयोग अस्पताल, राशन व रसद के भंडारण, आपूर्ति मार्ग तथा संचार व्यवस्था के रूप में किया गया जिसका कोई तोड़ अमेरिकी सैनिकों के पास नहीं था। अभी भी वियतनाम के पुनर्मिलन (उत्तर व दक्षिण वियतनाम का एकीकरण) के बाद वियतनामी सरकार ने लगभग 120 किमी कु ची सुरंगों का परिसर संरक्षित कर रखा है जो न केवल वियतनाम के इतिहास में रुचि रखने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है बल्कि उस भयावह दौर के बाद की पीढी को भी तत्कालीन परिस्थितियों से अवगत कराने एवं वियतनामी सेना के शौर्य व साहस के संबंध में प्रेरित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।

हालांकि इन सुरंगों का निर्माण तो वर्ष 1940 के दशक में फ्रांसीसी उपनिवेश से मुकाबला करने व उन्हें देश से खदेड़ने के लिए किया गया था परंतु इनका मुख्य रूप से उपयोग अमेरिकी सेना से लड़ने के दौरान किया गया। अमेरिका के साथ युद्ध (1955-1975) के दौरान लंबे समय तक तो अमेरिकियों को इन सुरंगों का पता ही नहीं चला क्योंकि किसी भी सेना के जवान महीनों तक जंगलों में बनी सुरंगों में में जिंदा रह सकते हैं यह सोचा भी नहीं जा सकता था लेकिन यह सच्चाई थी कि युद्ध के दौरान कई बार तो वियतनामी सैनिक कई कई दिन तक इन सुरंगों से बाहर भी नहीं निकलते थे। इन सुरंगों में जीव जंतुओं से तथा बरसाती पानी से बचने के पर्याप्त इंतजाम थे। सुरंगों में छिपे सैनिकों को पर्याप्त आक्सीजन मिले इसकी भी समुचित व्यवस्था थी। सुरंगों के उन हिस्सों को पहचानना आसान नहीं था जिनके जरिए अंदर आक्सीजन पहुंचती थी। आज भी जब पर्यटक इन व्यवस्थाओं को देखते हैं तो दांतों तले अंगुली दबाए बिना नहीं रह सकते। आज दो सुरंग प्रदर्शन स्थलों (बेन दिन्ह व बेन डुओक) को युद्ध स्मारक पार्क के रूप में संरक्षित किया गया है जहां कुछ सुरंगों को थोड़ा सा आकार में बड़ा किया गया है ताकि पर्यटक सुरंग के अंदर जाकर तत्कालीन सैनिकों के साहस व रणनीतिक कौशल को जान सकें, महसूस कर सकें। सुरंगों के अंदर अब तो रोशनी भी उपलब्ध है। जब गाइड इन सुरंगों के बारे में जानकारी देता है तो पर्यटकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जब अमेरिकी सैनिकों को इन सुरंगों की जानकारी मिली तो उन्होंने इनको बम एवं पानी के जरिए नष्ट करनो का भी प्रयास किया लेकिन उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। वियतनामी सैनिकों की उस समय कैसी वेशभूषा थी इसकी जानकारी भी पर्यटकों को मिले, इसके लिए तत्कालीन सैनिकों के पुतले निर्मित किए गए हैं जिनके पास खड़े होकर पर्यटक सेल्फी लेना व फोटो खिंचवाना पसंद करते हैं। इसके अलावा दुश्मन को मात देने के लिए कैसे कैसे जाल बिछाए जा सकते हैं और दुश्मन को अपने कब्जे में कैसे लिया जा सकता है अथवा उसे मौत के घाट उतारा जा सकता है, ऐसे ट्रैप आज भी क्रियाशील स्थिति में रखे हुए हैं जिन्हें देखकर वियतनामी सैनिकों की रणनीतिक कुशलता का पता लगता है और अनायास ही मुंह से "वाह" शब्द निकल ही जाता है। अमेरिकी सैनिकों पर हावी होकर उनसे वियतनामी सैनिकों द्वारा छीने गए कुछ टैंक एवं हथियार भी यहां संरक्षित हैं तो युद्ध में चली मिसाइलों के खोखे भी सिरसुरक्षित रखे गए हैं जो रोमांच पैदा करने वाले हैं।

यहां इसी परिसर में एक शूटिंग रैंज भी है जहां भ्रमणकारी असली हथियारों से शूटिंग का आनंद ले सकते हैं। प्रवेश शुल्क प्रति व्यक्ति 90 हजार वियतनामी डोंग है जो भारत के लगभग 300- 325 रुपये होता है।यहां से पर्यटक एक अद्भुत रोमांच के साथ अमेरिका द्वारा एक देश को तबाह करने के लिए किए गए प्रयासों के प्रति मन में आक्रोश भी लेकर निकलता है लेकिन साथ ही वियतनामी सैनिकों के साहस की कहानियां भी उसके मानसपटल पर अंकित हो जाती हैं।
वियतनाम जाने के लिए बेंगलूरु से वियत-जेट की सीधी फ्लाइट
# वियतनाम जाने के लिए बेंगलूरु से हाल ही में बेहतरीन सुविधा प्रारंभ हुई है। वियतनाम की सबसे बड़ी निजी विमानन कंपनी वियत-जेट एयरलाइंस की ओर से सप्ताह में चार सीधी फ्लाइट शुरू की गई हैं। बेंगलूरु से हो ची मिन्ह शहर के लिए वियत-जेट की सीधी उड़ानें सोम, बुध, शुक्र व रविवार को उपलब्ध हैं। बेंगलूरु से रात 11.35 बजे रवाना होकर फ्लाइट अगले दिन सुबह सुबह 6 बजे (वियतनामी समय) हो ची मिन्ह सिटी पहुंचती है। इसी प्रकार हो ची मिन्ह से शाम 7.20 बजे (वियतनामी समय) रवाना होकर रात लगभग 10.30 बजे बेंगलूरु पहुंचती है। गौरतलब है कि वियतनामी समय भारत से डेढ घंटे आगे चलता है।
# वियत-जेट का इकोनॉमी क्लास का किराया जाने व आने का कुल लगभग 20 हजार है जो कि एक देश से दूसरे देश के बीच टू एंड फ्रो यात्रा अर्थात अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए किफायती ही माना जाएगा। वीजा भी आसानी से उपलब्ध है जिसके लिए आनलाइन आवेदन किया जा सकता है।
# वियत-जेट इकोनोमी क्लास के अलावा स्काई बास श्रेणी की सेवा भी देती है जिसमें बिजनेस क्लास की तरह चेक-इन में प्राथमिकता तथा विमान के अगले हिस्से में सीटें मिलती हैं। इतना ही नहीं, यहां खान पान की सुविधा भी टिकट में शामिल होती है।


