मानव धर्म ही धर्म का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है: आचार्यश्री प्रभाकर
'इस धरा पर जितने भी महान व्यक्ति हुए, उन्होंने निश्चित रूप से मानव धर्म का पालन किया'
'किसी का जीवन छीन लेना जिंदगी नहीं है, बल्कि किसी को जीवन देना जिंदगी है'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के महालक्ष्मी लेआउट स्थित चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री प्रभाकरसूरीश्वरजी व साध्वीश्री तत्वत्रयाश्रीजी की निश्रा में आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि मानव धर्म ही धर्म का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है। मानव धर्म यही सिखाता है कि सभी वर्गों को एक होकर अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग अहिंसा, विकास और सत्य को उजागर करने में करना चाहिए।
इस धरा पर जितने भी महान व्यक्ति हुए, उन्होंने निश्चित रूप से मानव धर्म का पालन किया। महावीर ने जीवों पर अत्याचार होते देखा, तो उनकी रूह कांप उठी और उन्होंने लोगों को समझाया कि जीव हत्या मत करो, क्योंकि उन्हें भी वैसी ही पीड़ा होती है, जैसी तुम्हें।संतश्री ने समझाते हुए कहा कि कभी कसाई की दुकान पर जाकर जानवर को कटते देखना! यदि आपकी रूह नहीं जागी, तो समझ लेना कि आपके भीतर से मानवता निकल गई है और जब मानवता खत्म हो जाती है, तो वह इंसान भी खत्म हो जाता है। हमारा-आपका अस्तित्व ही नष्ट न हो जाए, इसलिए मानवीय बने रहने में भलाई है।
किसी का जीवन छीन लेना जिंदगी नहीं है, बल्कि किसी को जीवन देना जिंदगी है। मानव भव मिला है बेस्ट। समय मत करो वेस्ट। क्षमापना का करो टेस्ट। मिल जाए मुक्ति फिर करो रेस्ट। दुर्लभ मनुष्य भव जो आज हमें सुलभ लग रहा है वह अनंतकाल पश्चात हमें प्राप्त हुआ है। अगर मन और आत्मा में से किसी एक की सुननी पड़े, तो अपनी अंतर आत्मा की सुनिए, क्योंकि मन अक्सर भटकाव की ओर ले जाता है।
ट्रस्ट के नरेश बंबोरी ने बताया कि 10 अगस्त को आचार्यश्री की निश्रा में होने वाले पार्श्वनाथ पद्मावती महापूजन के लिए ट्रस्ट प्रतिनिधि मंडल ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचन्द गहलोत से मुलाकात कर उन्हें कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया है। सभा में मुनिश्री महापद्मविजयजी, पद्मविजयजी, साध्वी तत्वत्रयाश्रीजी, गोयमरत्नाश्रीजी व परमप्रज्ञाश्रीजी उपस्थित थे।


