देश की अखंडता पर निशाना क्यों?

देश की अखंडता पर निशाना क्यों?

देश की अखंडता पर निशाना क्यों?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। फोटो स्रोत: फेसबुक पेज।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अक्सर अपने कुछ विशेष बयानों से मीडिया की सुर्खियों में रहती हैं। कभी उन्हें श्रीराम के नाम से चिढ़ होती है और वे भाषण देने से ही मना कर देती हैं। अब उन्हें लग रहा है कि बंगाल में भाजपा नेताओं के दौरे दरअसल गुजरात का बंगाल पर शासन करने का प्रयास है, जिसे वे सफल नहीं होने देंगी।

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ममता बनर्जी का नाम देश के उन नेताओं में शुमार किया जाता है जिन्होंने सियासत में कई दौर देखे और आज वे उल्लेखनीय स्थान पर हैं। उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि अगर बंगाल में सत्ता परिवर्तन हुआ तो यह गुजरात की जीत होगी? ऐसे बयान एक परिपक्व राजनेता को शोभा नहीं देते। बेहतर होगा कि इससे बचा जाए।

दीदी को पता है कि बतौर मुख्यमंत्री आपके शब्द समाज पर क्या असर डाल सकते हैं। उनके द्वारा यह कहा जाना कि ‘गुजरात कभी भी बंगाल पर शासन नहीं कर पाएगा’ अनावश्यक और विवादों को बढ़ाने वाला है। दीदी, आपसे यह उम्मीद नहीं थी! क्या आप गुजरात/बंगाल को देश का अंग नहीं मानतीं? सभी राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और देश का हर एक इंच मिलकर ही भारत बनता है। भारत के लोगों से मिलकर भारत बनता है।

बंगाल का अगला मुख्यमंत्री जो भी होगा, निस्संदेह वह भारतीय होगा जिसे बंगाल की जनता अपने वोट से चुनेगी। देश में पहले भी विधानसभा चुनाव हुए हैं जिनमें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि, नेता प्रचार करते रहे हैं। यह जरूरी नहीं कि उनमें से सभी का संबंध उस राज्य विशेष से हो।

क्या उनकी पार्टी के चुनाव जीतने पर इसे किसी अन्य राज्य की जीत माना जाए? क्या भारत में कोई बादशाही सल्तनत चल रही है कि उनके सिपहसालार घोड़े पर सवार होकर, हाथ में खून से रंगी तलवार थामे किसी और की जमीन फतह करने की मुहिम पर निकले हैं?

ममता बनर्जी का यह बयान ही हास्यास्पद है। अगर दीदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से प्रतिद्वंद्विता रखती हैं तो उन्हें जरूर ललकारें, उनकी नीतियों में खामियां ढूंढ़ें, बेहतर विकल्प सुझाएं, जरूरत पड़ने पर कड़ी आलोचना भी करें। अगर वे ऐसा करती हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए, परंतु किसी एक पार्टी की हार/जीत को राज्य से जोड़कर देखना उचित नहीं है।

ममता बनर्जी पूर्व में देश की रेलमंत्री रह चुकी हैं। क्या तब वे सिर्फ बंगाल की रेल मंत्री थीं? नरेंद्र मोदी और भाजपा के शीर्ष नेता विभिन्न विधानसभा चुनावों में प्रचार करते रहे हैं। वहां उनकी सरकारें भी बनी हैं। क्या इस सूरत में उन राज्यों पर गुजरात की विजय मानी जाएगी? उम्मीद है कि दीदी इन सवालों पर गौर करेंगी।

ममता बनर्जी की कोशिश है कि आगामी विधानसभा चुनावों में तृणमूल सत्ता में वापसी करे और वे पुन: मुख्यमंत्री बनें। यह आकांक्षा रखना कोई गलत नहीं है। वे प्रचार करें, जनता से वोट की अपील करें, प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती दें, चुनाव लड़ें; इतना ध्यान जरूर रखें कि जो देश आपको व्यापक अधिकार देता है, उसकी एकता और अखंडता का सम्मान करें।

यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि आपकी राजनीतिक आकांक्षा इस देश से बड़ी नहीं हो सकती। हमारे लिए सभी राज्य समान रूप से आदरणीय होने चाहिए, चाहे वह बंगाल हो या गुजरात, नागालैंड हो या राजस्थान, अरुणाचल हो या असम, मध्य प्रदेश हो या तेलंगाना, सिक्किम हो या आंध्र प्रदेश, कर्नाटक हो या केरल… जब हम सब मिलते हैं, एकजुट होते हैं, सशक्त होते हैं तो दुनिया हमें जानती है, हमारा आदर करती है।

राजनेताओं को बयान देते समय सावधानी बरतनी चाहिए। वे ऐसी कोई बात न बोलें जो अन्य राज्य के निवासियों को असहज कर सकती है, उन्हें ऐसा महसूस करा सकती है कि हमें निशाना बनाया जा रहा है। राजनेता एक-दूसरे पर निशाना साधें, जमकर साधें, बस इतना ध्यान रखें कि उनके निशाने पर देश की एकता, अखंडता कभी नहीं हो।

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