प. बंगाल: 2022 में टीएमसी के कई नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप

भाजपा ने नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने और चुनावी झटकों का सामना किया

प. बंगाल: 2022 में टीएमसी के कई नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप

हालांकि, भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने अपने नेताओं को एकजुट रखने की कोशिश की

कोलकाता/भाषा। पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को मिली शानदार जीत का उत्साह, उसके नेताओं की भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी और इस साल पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार नहीं कर पाने से कम हो गया, लेकिन टीएमसी राज्य की राजनीति पर हावी रही।

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दूसरी ओर, 2022 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने और चुनावी झटकों का सामना किया। हालांकि, भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने अपने नेताओं को एकजुट रखने की कोशिश की।

टीएमसी को उम्मीद है कि वह अगले साल होने वाले पंचायत चुनावों में अपना राजनीतिक दबदबा बनाए रखेगी और 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले एक मजबूत विपक्ष बनाने में अहम भूमिका निभाएगी।

भाजपा को भी उम्मीद है कि वह पंचायत चुनाव का इस्तेमाल अपने कार्यकर्ताओं को लामबंद करने के लिए कर पाएगी।

टीएमसी के लिए यह वर्ष चुनावी लिहाज से लाभदायक रहा, क्योंकि पार्टी ने आसनसोल लोकसभा सीट और बालीगंज विधानसभा सीट के उपचुनावों में जीत दर्ज की, जबकि फरवरी में हुए निकाय चुनावों में 108 नगर निकायों में से 106 पर उसे विजय हासिल हुई।

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सौगत राय ने ‘पीटीआई-भाजपा’ से कहा, ‘आंतरिक और बाहरी, दोनों तरह से यह पार्टी के लिए एक चुनौतीपूर्ण वर्ष रहा। इस वर्ष की शुरुआत में वरिष्ठ नेताओं और नयी पीढ़ी के नेताओं के बीच टकराव हुआ। हमारे कई वरिष्ठ नेता सलाखों के पीछे हैं। हमारी छवि बुरी तरह से प्रभावित हुई है, लेकिन अब हमने अपनी चुनौतियों से पार पा लिया है।’

टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव एवं डायमंड हार्बर से लोकसभा सदस्य और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का पार्टी में अनौपचारिक नंबर दो का नेता बनना उसके कुछ वरिष्ठ नेता स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कल्याण बनर्जी ने अभिषेक बनर्जी की कोविड-19 से निपटने और वरिष्ठ पार्टीजनों के संन्यास लेने की आयु पर दिए सुझावों को लेकर खुले तौर पर आलोचना की।

निकाय चुनावों के लिए उम्मीदवारों की अलग-अलग सूची जारी होने के बाद यह मुद्दा सामने आया। इनमें से एक सूची पार्टी की वेबसाइट पर, जबकि दूसरी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा जारी की गई, जिन्हें टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की मंजूरी मिली हुई थी।

इसके बाद ममता ने पार्टी की राष्ट्रीय पदाधिकारियों की समिति को भंग कर दिया, जिसमें अभिषेक बनर्जी शामिल थे। ममता ने उसके बाद 20 सदस्यीय कार्य समिति का गठन किया, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया गया था।

कथित विद्यालय सेवा आयोग (एसएससी) घोटाला, मवेशी तस्करी घोटाला और कोयला घोटाला के मामलों में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच ने टीएमसी नेतृत्व को व्यस्त रखा।

तृणमूल कांग्रेस को जुलाई में तब एक झटका लगा, जब उसके महासचिव एवं उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी को ईडी ने एसएससी घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किया था। चटर्जी की गिरफ्तारी उनके एक करीबी सहयोगी के आवास से नकदी की बरामदगी के बाद की गई।

इस सिलसिले में पार्टी के एक अन्य विधायक एवं एसएससी के पूर्व अध्यक्ष माणिक भट्टाचार्य को भी गिरफ्तार किया गया है।

चटर्जी को पार्टी से निलंबित करने और उन्हें मंत्री पद से हटाने के बाद, टीएमसी ने मंत्री परिषद के लगभग आधे सदस्यों के विभागों में फेरबदल किया और बाबुल सुप्रियो सहित कई नए चेहरों को शामिल किया। सुप्रियो पिछले वर्ष भाजपा से तृणमूल कांग्रेस में आए थे।

तृणमूल कांग्रेस को तब एक और झटका लगा, जब उसके बीरभूम जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल को पशु तस्करी मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, चटर्जी के मामले के विपरीत, पार्टी मंडल के साथ खड़ी रही और उनकी गिरफ्तारी को एक साजिश करार दिया।

राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने और भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के टीएमसी के प्रयासों को गोवा विधानसभा चुनावों में उसके खराब प्रदर्शन के बाद झटका लगा।

वहीं, उप-राष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहने के पार्टी के फैसले ने कई लोगों को चौंका दिया।

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