एआई के खतरे

सोशल मीडिया के दौर में ऐसी झूठी बातें बिजली की तरह दौड़ती हैं, जिसे जनता सच मान बैठे तो भारी अनर्थ हो सकता है

एआई के खतरे

भविष्य में एआई का इस्तेमाल कर उपद्रवी तत्त्व दंगा, बड़ा आर्थिक नुकसान और युद्ध तक करवा सकते हैं

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के 'गॉड फादर' के नाम से मशहूर ज्यॉफ्रे हिंटन ने गूगल से इस्तीफा देकर इस तकनीक से जुड़े जिन खतरों को लेकर आगाह किया है, वे विचारणीय हैं। हिंटन कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। उनका नाम उन प्रारंभिक लोगों में शुमार है, जिन्होंने एआई को विकसित किया था। उन्होंने जो जेनेरिक टेक्नोलॉजी बनाई, उसने विज्ञान के क्षेत्र की एक ऐसी खिड़की खोल दी, जो भविष्य में बड़े बदलाव ला सकती है। 

निस्संदेह हर वैज्ञानिक की तरह उस समय हिंटन का विचार भी यही रहा होगा कि वे ऐसी चीज ईजाद करने जा रहे हैं, जो अनूठी होगी और इतिहास रचेगी। लेकिन अब हिंटन चिंतित हैं। उन्होंने दिग्गज तकनीकी कंपनी गूगल का साथ छोड़कर एआई की खुलकर आलोचना करनी शुरू कर दी है। 

हिंटन को डर है कि उन्होंने जो खिड़की खोली, अगर उसका पता 'अपराधियों' को लग जाएगा तो वे भयंकर विनाश ला सकते हैं। हिंटन का डर स्वाभाविक है। विज्ञान का हर ऐसा आविष्कार, जिसका उद्देश्य मानवता की सेवा करना था, जब वह अपराधियों के हाथ लगा तो दुनिया ने उसकी भारी कीमत चुकाई। चाहे वह बंदूक हो या इंटरनेट। 

हिंटन की 'व्यथा' पढ़कर एक प्राचीन कथा की याद ताजा हो जाती है, जिसमें चार युवक उच्च शिक्षा संपन्न होने के बाद अपने घर जाते हैं। उन्हें रास्ते में शेर की हड्डियां मिल जाती हैं। तब वे उस पर अपनी विद्या का प्रयोग करने लगते हैं। पहला युवक उस शेर की हड्डियां इकट्ठी कर लेता है। दूसरा उसका ढांचा बना देता है। तीसरा उसमें मांस आदि उत्पन्न कर देता है और चौथा उसमें प्राण फूंक देता है। जब वह शेर जीवित हो जाता है तो सबसे पहला शिकार उन युवकों का ही करता है। 

इस कथा को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग प्रकार से सुनाया जाता है, लेकिन शिक्षा एक ही है। अगर वे युवक उस शेर को जीवित ही न करते या पहले अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर लेते, फिर उसे जीवित करते तो फायदे में रहते।

एआई भी उस शेर की तरह है। अगर इसका नियंत्रित उपयोग किया जाए, जिसका उद्देश्य मानवता का कल्याण हो तो निस्संदेह इस क्षेत्र में उज्ज्वल संभावनाएं हैं। असल खतरा इसके दुरुपयोग का है। आज जिन देशों में इसका दबदबा बढ़ता जा रहा है, वहां गंभीर दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। 

अमेरिका में एआई चैटबॉट की मदद से दर्जनों ऐसी वेबसाइट बन गई हैं, जो फर्जी ख़बरें प्रकाशित कर रही हैं। एक वेबसाइट ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मृत्यु की झूठी खबर प्रकाशित कर दी थी, जिसे बहुत लोग सच मान बैठे और सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देने लगे थे। इसी तरह एक और वेबसाइट पर रूस-यूक्रेन युद्ध में बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों के मारे जाने की ख़बर प्रकाशित हो गई, जो असत्य थी। 

सोशल मीडिया के दौर में ऐसी झूठी बातें बिजली की तरह दौड़ती हैं, जिसे जनता सच मान बैठे तो भारी अनर्थ हो सकता है। भविष्य में एआई का इस्तेमाल कर उपद्रवी तत्त्व दंगा, बड़ा आर्थिक नुकसान और युद्ध तक करवा सकते हैं। विज्ञान का यह वरदान उस तलवार की तरह है, जो सैनिक के हाथ में रहे तो वह देश की रक्षा करेगा, लेकिन अपराधी के हाथ में रहे तो वह रक्तपात मचाएगा। 

हो सकता है कि शत्रु देश इसका उपयोग कर किसी कंपनी के बारे में ऐसा दुष्प्रचार कर दें कि उसे बाजार में भारी नुकसान हो जाए। इसका सीधा असर संबंधित देश की अर्थव्यवस्था पर होगा। वे किसी बड़े नेता की सेहत, महत्त्वपूर्ण फैसलों के बारे में भ्रामक प्रचार कर सकते हैं। 

वे किसी अन्य देश द्वारा हमले की झूठी खबर फैला सकते हैं, जो देखते ही देखते बहुत बड़े विनाश में परिवर्तित हो सकती है। निस्संदेह विज्ञान की शक्तियों के माध्यम से विकास होना चाहिए, लेकिन उनसे जुड़े जोखिम पर भी नजर रखनी चाहिए। इस शक्ति के दुरुपयोग से जो समस्याएं पैदा हो सकती हैं, उनके समाधान की दिशा में अनुसंधान होना चाहिए।

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