एआई: इस्तेमाल की हद तय करें
वैज्ञानिक प्रयोगों में एआई का इस्तेमाल वरदान सिद्ध हो सकता है

एआई मंच समय के साथ और उन्नत होते जाएंगे
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने एआई के बारे में बड़ी गहरी बात कही है। बेशक इसके विभिन्न मंच मनुष्य की आलोचनात्मक सोच का विकल्प नहीं बन सकते और देश अपने लोगों की बुद्धिमत्ता के जरिए ही प्रगति करेगा। एआई के क्षेत्र में काम होना चाहिए, जहां जरूरी हो, वहां इसका इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन इस पर पूरी तरह निर्भर नहीं होना चाहिए। यह कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिसके पास हर समस्या का समाधान हो। देश में जैसे-जैसे इंटरनेट सुलभ हुआ है, विद्यार्थियों की कुछ आदतों में खास तरह के बदलाव आए हैं, जिन पर गौर करने की जरूरत है। पहले, होमवर्क करने के लिए विद्यार्थियों को बहुत मेहनत करनी होती थी, शिक्षक द्वारा दिए गए सवालों को हल करने के लिए काफी पढ़ना और अभ्यास करना होता था। अब एआई मंच चुटकियों में जवाब बता देते हैं। अगर किसी विद्यार्थी की इन पर निर्भरता बढ़ेगी तो निश्चित रूप से उसकी बौद्धिक क्षमता प्रभावित होगी। इसी तरह निबंध लेखन में एआई की मदद लेना एक हद तक सहायक हो सकता है, लेकिन उसके द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री को हू-ब-हू उतार देने से विद्यार्थी का प्रदर्शन नहीं सुधरेगा। कई बच्चे एआई के इतने आदी हो चुके हैं कि वे इसे अपना अभिन्न मित्र मानने लगे हैं। कई युवा भी उसके साथ अपने मन की बात साझा करते हैं। अमेरिका, चीन, जापान समेत कई देशों में लोग अकेलेपन का समाधान एआई में ढूंढ़ रहे हैं। वे संबंधित चैटबॉट के साथ घंटों बातें करते हैं। इससे कालांतर में परिवार टूटने का खतरा पैदा हो सकता है।
जटिल गणनाओं और वैज्ञानिक प्रयोगों में एआई का इस्तेमाल वरदान सिद्ध हो सकता है। हालांकि इसे विद्यार्थियों को सिखाई जाने वाली बुनियादी बातों का विकल्प नहीं समझना चाहिए। बच्चों को गिनती, पहाड़े, शब्दज्ञान में जरूर निपुण होना चाहिए, अन्यथा उच्च कक्षाओं में बहुत दिक्कत हो सकती है। इस बात से सभी सहमत होंगे कि पश्चिमी देशों में भारतीय मूल के लोगों के 'गणितज्ञान' की बड़ी धाक है। अमेरिका में स्पेल बी जैसी प्रतियोगिताओं में भारतीय बच्चे कई बार अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। अगर यहां एआई का इस्तेमाल करें तो इस तरह करें कि ज्ञान में और वृद्धि हो। पहले, स्कूलों में 40 तक पहाड़े याद करना अनिवार्य होता था। उसके बाद 20 तक पहाड़े याद होना पर्याप्त समझा जाने लगा। अब स्थिति यह है कि कई बच्चे 10 तक पहाड़ों में ही अटक जाते हैं। कई विद्यार्थियों की मोबाइल फोन और लैपटॉप पर टाइपिंग की गति बहुत अच्छी होती है, लेकिन जब उन्हें कलम से लिखने के लिए कहा जाता है तो वे खूब गलतियां करते हैं और उनकी लिखावट में काफी सुधार की गुंजाइश देखने को मिलती है। कई बच्चे दूध का सामान्य हिसाब नहीं कर पाते। उन्हें इसके लिए कैल्कुलेटर की मदद लेनी पड़ती है, जो मोबाइल फोन में मौजूद होता ही है। वे 'पाव', 'पौन' और 'सवा' के हिसाब में गलती कर बैठते हैं। सब्जी मंडी में उस समय विचित्र स्थिति पैदा हो जाती है, जब विक्रेता 'उन्यासी' रुपए मांगता है और वे 'नवासी' रुपए थमा देते हैं! गूगल मैप की 'लोकेशन' पर बहुत भरोसा करने वाली पीढ़ी 'दाएं और बाएं' में अंतर करने में कठिनाई महसूस करती है। अगर अब यह स्थिति है तो उस समय क्या होगा, जब एआई पर ज्यादा निर्भरता बढ़ जाएगी? एआई मंच समय के साथ और उन्नत होते जाएंगे, जिनसे फायदे होंगे, लेकिन इनके इस्तेमाल की एक हद जरूर तय करनी होगी।