उपकारी के उपकारों को स्मरण करना कृतज्ञता गुण है: आचार्य रत्नसेनसूरी

उपकारी के उपकारों को स्मरण करना कृतज्ञता गुण है: आचार्य रत्नसेनसूरी

नवकार महामंत्र कृतज्ञता का मंत्र है


विजयपुर/दक्षिण भारत। शहर के पार्श्‍व भवन जैन संघ में विराजित रत्नसेनसूरीश्वरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अपने बलबूतों पर स्वतः खड़ा नहीं हो सकता है। जीवन में अनेकानेक व्यक्तियों के उपकारों से ही व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा होता है। 

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जन्म समय माता ने अपार वेदना को सहन की उसके बाद पालन-पोषण करने में भी अनेक कष्ट उठाए । माता ने जन्म दिया और पिता ने जीवन दिया। आगे बढ़ते हुए अनेक व्यक्ति , शिक्षक, नौकरी देने वाला स्वामी, व्यापारी आदि ने भी अनेक उपकार किये है। 

लोक व्यवहार में आने वाले अनेकों के उपकारो को हम पैसा या सेवा देकर प्रत्युपकार कर देते है। परंतु जन्म और जीवन देने वाले माता -पिता के उपकारो को जीवन भर उनकी सेवा सुश्रुषा करने पर भी नहीं चुका सकते है। मात्र उनकों धर्म का बोध देकर उनके आत्मोद्धार में सहाय करे,उन्हें समाधि भाव प्रदान करे तो ही उनका ऋण चुकाया जा सकता है।  

माता-पिता से भी बढ़कर हमारी आत्मा पर सबसे बड़ा उपकार वीतराग देव एवं गुरु का हैं। जन्मजन्मों तक देव-गुरु की उपासना करें तो भी उनका उपकार कभी भी चुका सकते है, इसलिए उनके उपकारों का स्मरण करने हमें प्रतिदिन प्रात: उन्हें नमन ,वंदन और स्मरण अवश्य करना चाहिए। 

उपकारी के उपकारों का स्मरण करना यह कृतज्ञता गुण है और उपकारी के उपकारों को भूल जाना अथवा उनका अपकार करना यह कृतज्ञता दोष है। नवकार महामंत्र कृतज्ञता का मंत्र है।

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