स्वदेशी तकनीक विकसित करें
तकनीक आज की बहुत बड़ी जरूरत है
भविष्य को ध्यान में रखते हुए स्वदेशी तकनीक विकसित करने और उसे अपनाने पर जोर देना चाहिए
वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट से जुड़ी एक तकनीकी समस्या से दुनिया के कई देशों में कामकाज बाधित हुआ। विभिन्न बैंक शाखाओं, हवाईअड्डों, मीडिया सेवाओं, शेयर बाजारों समेत कई दफ्तरों का कामकाज ठप हो गया। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं थी। लोगों ने रोजाना की तरह अपने कंप्यूटरों को चालू करने के लिए बटन दबाया तो स्क्रीन का रंग नीला नज़र आया। अचानक आई इस तकनीकी समस्या के सामने बड़े-बड़े संस्थान खुद को असहाय महसूस कर रहे थे। भारत में भी इसका कुछ असर देखने को मिला। हमें इसके दूसरे पहलू को देखने-समझने की जरूरत है। यह सिर्फ एक समस्या थी, जो अचानक आ गई। अगर समस्या इससे भी ज्यादा गंभीर हो, जिसका कई दिनों तक समाधान होने की कोई उम्मीद न हो तो उसके क्या नतीजे हो सकते हैं? आज दफ़्तरों से लेकर घरों तक, जिस तरह विदेशी तकनीक आधारित उपकरणों का उपयोग बढ़ रहा है, वह हमारे लिए भविष्य में बड़ी समस्या भी बन सकता है। इन शब्दों का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हमें तकनीक से दूर हो जाना चाहिए! तकनीक आज की बहुत बड़ी जरूरत है। इसके बिना काम नहीं चल सकता। हमें भविष्य को ध्यान में रखते हुए स्वदेशी तकनीक विकसित करने और उसे अपनाने पर जोर देना चाहिए। विदेशी तकनीक के साथ जुड़ीं समस्याओं को एक और सन्दर्भ में देखने की जरूरत है। कई विदेशी सरकारों का हमारे साथ दोस्ताना रिश्ता नहीं रहा है। वर्ष 1971 के युद्ध से पहले जब पूर्वी पाकिस्तान में हालात बिगड़ रहे थे और वहां से बड़ी तादाद में लोग हमारे देश में आ रहे थे, तब पश्चिमी देशों ने समस्या के समाधान में कोई रुचि नहीं दिखाई थी। यही नहीं, जब युद्ध छिड़ गया था, तब अमेरिका समेत ज़्यादातर पश्चिमी देशों के बयान पाकिस्तान के पक्ष में आ रहे थे।
भारत ने मई 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किए थे तो विदेशी सरकारें आगबबूला हो गई थीं। उन्होंने कई तरह के प्रतिबंधों की घोषणाएं कर दी थीं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि वर्ष 1999 में जब हमारी सेनाएं कारगिल युद्ध लड़ रही थीं, तब कुछ विदेशी कंपनियां (जो हमारे कथित मित्र देशों में हैं) इसे सुनहरे मौके की तरह लेते हुए अपने उत्पादों के दाम बढ़ा-चढ़ाकर मांग रही थीं। वे अपना पुराना माल ऊंची कीमतों पर खपा देने की फिराक में थीं। पाकिस्तान आज भी बाज़ नहीं आ रहा है। वह आतंकवाद फैला रहा है। जबकि कई विदेशी सरकारें, शोध संस्थान (जो कुछ खास कंपनियों के सहयोग से चलते हैं) भारत को ही सहिष्णुता व सेकुलरिज्म पर उपदेश देते रहते हैं। वे अपनी बयानबाजी में यह जरूर लिखते हैं कि 'हम भारत में फलां परिस्थिति पर नजर बनाए हुए हैं!' अगर भारत सरकार भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ किसी बड़ी कार्रवाई को अंजाम देने का निश्चय कर ले तो ये विदेशी सरकारें और कंपनियां हमारे देश के कामकाज में व्यवधान डालने की कोशिशें कर सकती हैं। क्या हमारे पास अपना सर्च इंजन है? क्या हमारे पास कंप्यूटरों में इस्तेमाल होने वाली मजबूत, सरल एवं लोकप्रिय तकनीक है? क्या ईमेल आदि भेजने के लिए अपना सुदृढ़ माध्यम है? भारत के निजी/सरकारी दफ्तरों, घरों में विदेशी तकनीक का बोलबाला है। कोई आश्चर्य नहीं, अगर ये कंपनियां अपने देशों की सरकारों के इशारों पर हमारे लिए अपनी सेवाओं के बटन बंद कर दें! जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला था, तब पश्चिमी कंपनियों ने आर्थिक प्रतिबंधों के तौर पर डिजिटल भुगतान से संबंधित सेवाएं रोक दी थीं। इससे लोगों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। हालांकि माइक्रोसॉफ्ट से जुड़ी तकनीकी समस्या से रूस और चीन अप्रभावित रहे, क्योंकि उनके पास अपनी तकनीक है। रूस ने अपने अनुभवों से सबक लेते हुए तकनीक विकसित की और चीन तो कई वर्षों से स्वदेशी तकनीक काम में ले रहा है। उसके पास कंप्यूटर और इंटरनेट संबंधी सेवाओं के लिए अपने प्लेटफॉर्म हैं। हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। आईआईटी से लेकर तकनीकी क्षेत्र में शोध करने वाले बड़े संस्थान हैं, जो स्वदेशी तकनीक पर काम कर सकते हैं। हमें तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की सख्त जरूरत है। देश के पास अपनी तकनीक हो और उसका सभी दफ्तरों व घरों तक विस्तार हो। आत्मरक्षा की तैयारी पहले से कर लेंगे तो चुनौतीपूर्ण स्थिति में मजबूती से खड़े रहेंगे।