बांग्लादेश में शांति व स्थिरता

अगर दोनों देशों में संबंध मधुर रहेंगे तो दोनों तरफ जनता को फायदा होगा

बांग्लादेश में शांति व स्थिरता

बांग्लादेश कई समस्याओं के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है

बांग्लादेश के विदेश मंत्री हसन महमूद की टिप्पणी कि 'भारत के साथ अच्छे संबंधों के बिना बांग्लादेश का विकास संभव नहीं है', हकीकत बयान करती है। साथ ही, यह भी जाहिर करती है कि इस पड़ोसी देश में शांति और स्थिरता कायम रखने में भारत का बड़ा योगदान है। भारत और बांग्लादेश काफी लंबी सीमा साझा करते हैं, जहां नदी, जंगल, दलदल, पहाड़ समेत विभिन्न विषम भौगोलिक परिस्थितियां हैं। अगर दोनों देशों में संबंध मधुर रहेंगे तो सुरक्षा बलों के लिए आसानी होगी, दोनों तरफ जनता को फायदा होगा। खासकर बांग्लादेश को ज्यादा फायदा होगा, जिसकी अर्थव्यवस्था काफी छोटी है। उसे भारत से बहुत कम कीमत पर सामान मिल जाता है। वहीं, उसके लिए कुछ मिनटों/घंटों की दूरी पर बहुत बड़ा बाजार है, जहां अच्छी क्रय शक्ति है, जो निरंतर बढ़ रही है। हसन की यह टिप्पणी उन तत्त्वों को करारा जवाब भी है, जिन्होंने बांग्लादेश में भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करने का कथित अभियान चलाया था। वह बुरी तरह विफल रहा, क्योंकि बांग्लादेश के आम लोगों का जीवन भारतीय उत्पादों के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है। मिर्च-मसालों, सब्जियों, चीनी, गुड़, तेल, वाहनों, उनके कल-पुर्जों, मशीनरी, बिजली के उपकरणों, रसायनों, लोहा, विभिन्न धातुओं, चाय-कॉफी, प्लास्टिक सामग्री, मेवे, शहद, डेयरी उत्पादों, पेट्रो उत्पादों, कृषि उत्पादों, आभूषणों और दवाइयों समेत काफी सामान भारत से बांग्लादेश जाता है। बांग्लादेशी महिलाएं भारतीय साड़ियां खूब पसंद करती हैं। अगर वहां इतने भारतीय उत्पादों का बहिष्कार कर दिया जाए तो जनजीवन तहस-नहस हो जाएगा। अर्थव्यवस्था की जड़ें हिल जाएंगी। इसके नतीजे में महंगाई की लहर आएगी, जो लोगों के लिए मुसीबतें खड़ी करेगी।

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बांग्लादेश की मौजूदा सरकार इस तथ्य से भलीभांति परिचित है। बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जब भारत-विरोधी तत्त्वों को भारतीय साड़ियां जलाने की चुनौती दी तो वे बगलें झांकने लगे थे। मोटी रकम खर्च कर अपनी मां, पत्नी, बेटियों के लिए लाई गईं सुंदर भारतीय साड़ियों को जलाने का मतलब था- घर-घर में क्लेश को निमंत्रण देना! ऐसा करने का दुस्साहस किसी ने नहीं दिखाया। वास्तव में बांग्लादेश की धरती से भारत के खिलाफ जहर उगलने वालों में बड़ी तादाद पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यकर्ताओं की है। सोशल मीडिया पर इनके दुष्प्रचार को पाकिस्तान भी हवा देता रहता है। हसन ने उचित ही कहा कि 'पड़ोसी के साथ अच्छे रिश्तों के बिना बांग्लादेश में शांति और स्थिरता बनाए रखना मुश्किल होगा।' बांग्लादेश कई समस्याओं के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है तो इसका श्रेय प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार के साथ ही भारत सरकार को भी जाता है। अगर बांग्लादेश ने विकास और नागरिकों के कल्याण के बजाय भारत से टकराव का रास्ता अपनाया होता तो अब तक उसके हालात बदतर हो जाते। दिसंबर 1971 में जिन हालात में बांग्लादेश का जन्म हुआ था, अगर भारत ने उसकी सहायता नहीं की होती तो अब तक उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता। बांग्लादेश में अवामी लीग की सरकारों ने भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिशें की हैं। वहीं, बीएनपी की सरकारें भारत-विरोधी तत्त्वों की कठपुतलियां बनी रहीं। उन्होंने वर्ष 1971 के युद्ध अपराधियों को बड़े-बड़े पद देकर 'पुरस्कृत' किया था। बीएनपी की छत्रछाया में कट्टरपंथ खूब पनपा। आज भी बांग्लादेश में चलने वाले कई 'संस्थान' कट्टरपंथ और आतंकवाद की पौध तैयार कर रहे हैं। सोमवार को असम के गुवाहाटी में दो संदिग्ध बांग्लादेशी आतंकवादी गिरफ्तार किए गए। घुसपैठ भी एक बड़ी समस्या है, जिस पर रोक लगाने के लिए बांग्लादेशी सरकार को दृढ़ता दिखानी होगी। आतंकवादी और घुसपैठिए दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट घोल सकते हैं।

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