अनावश्यक विवाद

निस्संदेह मुगल भी इस देश के इतिहास का हिस्सा हैं

अनावश्यक विवाद

यह बताना चाहिए कि हमसे जाने-अनजाने में इतिहास में ऐसी कौनसी गलतियां हुईं, जिनकी वजह से विदेशी हमारे शासक बन बैठे थे

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) ने 12वीं कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम समेत कई विषयों की पाठ्यपुस्तकों में जो बदलाव किया है, उस पर विवाद अनावश्यक है। समय के साथ ऐसा बदलाव होना ही चाहिए, जिससे नई सामग्री का समावेश किया जा सके। अगर नब्बे के दशक में पढ़ाई कर चुका कोई व्यक्ति सत्तर के दशक की पाठ्यपुस्तकें देखे तो उसमें ऐसी कई चीजें पाएगा, जो उसके लिए अधिक प्रासंगिक नहीं रह गई थीं। 

इसी तरह मौजूदा दशक के विद्यार्थियों के लिए भी ऐसी पाठ्यपुस्तकें लिखी जाएं, जिससे वर्तमान एवं भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनका सर्वांगीण विकास हो सके। इसी कड़ी में इतिहास में कई बिंदुओं को शामिल करने की जरूरत है। चूंकि विद्यार्थियों पर पहले से ही पढ़ाई का काफी दबाव है, इसलिए जो अध्याय विभिन्न कक्षाओं में बार-बार आ रहे हैं, उनकी संख्या कम की जाए।

एनसीईआरटी के निदेशक प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘कोरोना काल में सामान्य ढंग से कक्षाओं का संचालन नहीं हो रहा था तो विशेषज्ञ समिति बनाई गई, जिसके जिम्मे विद्यार्थियों पर पाठ्यक्रम का बोझ कम करना था। समिति ने तय किया कि कौन-कौनसे अध्याय हटाए जा सकते हैं। 

ऐसा सिर्फ इतिहास के पाठ्यक्रम में नहीं, बल्कि अन्य विषयों के पाठ्यक्रमों में भी किया गया।’ चूंकि इतिहास को लेकर हंगामा इसलिए मचाया जा रहा है, क्योंकि उसमें मुगल इतिहास से जुड़ी सामग्री पर कैंची चलाई गई है, जबकि हकीकत यह है कि उनका इतिहास पूरी तरह नहीं हटाया गया है। सातवीं कक्षा में उनका अध्याय है तो 12वीं कक्षा में भी अध्याय है। हर कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम में मुगल इतिहास को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है।

निस्संदेह मुगल भी इस देश के इतिहास का हिस्सा हैं। उनके शासन काल, नीतियों आदि के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन कुछ ‘बुद्धिजीवी’ यह धारणा बनाने की कोशिश में जुटे हैं कि ‘भारतीय इतिहास मुगल काल से ही शुरू होता है और उससे पहले यहां कुछ नहीं था! यह तो मुगल थे, जिन्होंने ताजमहल जैसी इमारत बना दी, अन्यथा यहां स्थापत्य कला नाम की कोई चीज़ नहीं थी!’ 

उन्हें मालूम होना चाहिए कि भारत का इतिहास हजारों साल पुराना है। यहां पर्वतों को काटकर जिस तरह प्रतिमाओं, देव मंदिरों का निर्माण किया गया, उसे देखकर पश्चिमी देशों के इंजीनियर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। जब आजकल की तरह न तो इंटरनेट था, न नक्शे और नाप-जोख के अत्याधुनिक साधन थे, तब ऐसे मंदिरों, मठों, इमारतों का निर्माण करना बताता है कि भारत में मुगलों के आने से हजारों साल पहले अत्यंत उन्नत सभ्यता थी। भारतीय मनीषियों ने आयुर्वेद, योग, गणित, ज्योतिष, रसायन, व्याकरण, कृषि, पशु पालन आदि के क्षेत्र में कितना महान दर्शन प्रस्तुत किया था! 

ऐसा इतिहास न तो उज्बेकिस्तान का है और न ब्रिटेन का, जहां से आए शासकों ने यहां साम्राज्य स्थापित किया था।  निस्संदेह विदेशी शासकों ने यहां आकर अपने तरीके से शासन व्यवस्था कायम की थी। उसके बारे में विद्यार्थियों को जरूर जानकारी होनी चाहिए। खासतौर से ब्रिटिश शासकों के दौर में मशीनों के आविष्कारों से आम आदमी की ज़िंदगी में बहुत बदलाव आया, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वे शासक ये सब चीजें अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लाए थे। उनका उद्देश्य साम्राज्यवाद की जड़ों को सींचना था। 

इतिहास में इसे शामिल करते हुए हमारे नायकों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए। पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंहजी महाराज, नेताजी सुभाष चंद्र बोस,  भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद आदि के बारे में और अधिक जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही यह बताना चाहिए कि हमसे जाने-अनजाने में इतिहास में ऐसी कौनसी गलतियां हुईं, जिनकी वजह से विदेशी हमारे शासक बन बैठे थे। हमारे लोकतंत्र, हमारी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह बहुत ज़रूरी है।

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