राशन सामग्री इतनी जरूर दें कि जिसे मिले वह कुछ राहत महसूस करे

राशन सामग्री इतनी जरूर दें कि जिसे मिले वह कुछ राहत महसूस करे

राशन सामग्री इतनी जरूर दें कि जिसे मिले वह कुछ राहत महसूस करे

'दक्षिण भारत राष्ट्रमत' में प्रकाशित आलेख।

श्रीकांत पाराशर
दक्षिण भारत राष्ट्रमत

कोरोना के कारण जो हालात निर्मित हुए हैं, आप और हम सब जानते हैं कि वे चिंतनीय हैं। छोटी छोटी दुकानों से जो लोग अपना परिवार पाल रहे थे, लाकडाउन के कारण पिछले साल ने उनकी कमर तोड़ दी थी। वे कुछ सांस ले पाते, अपने लड़खड़ाए व्यापार को फिर से खड़ा कर पाते कि पुनः कोरोना की दूसरी लहर आ गई। फिर से लाकडाउन लग गया। ऐसे में छोटे छोटे व्यापारियों पर क्या गुजर रही होगी, इसकी कल्पना मात्र से ही दिल बैठ जाता है। इसी प्रकार 12-15 हजार रु महिने की नौकरी करने वालों के बारे में भी सोचिए कि एक तरफ उनकी नौकरी चली जाती है, दूसरी तरफ किसी न किसी कारण से उन्हें अस्पताल का रुख करना पड़ता है तब उनकी क्या हालत होती होगी। ऐसा परिवार कैसे कुछ मैनेज कर पाता होगा, भगवान ही जाने।

इन हालात में हम सुरक्षित हैं, स्वस्थ हैं और हमारे सभी परिजन आराम से हैं तो इसका मतलब है, ईश्वर की हम पर विशेष कृपा है। इन परिस्थितियों में यदि हमें कहीं से कोई जानकारी मिले, हमारा कोई परिचित हमें बताए या हमारे पड़ौस में कोई परिवार इस विकट समय में अपने परिवार के लिए भोजन पानी की व्यवस्था करने में भी अक्षम दिखाई दे तथा हमें लगता है कि हम अपनी तरफ से उसकी कुछ मदद कर सकते हैं या किसी मित्र से करवा सकते हैं, तो अवश्य ही बिना ज्यादा सोच विचार किए ऐसी सेवा करनी चाहिए। कुछ 5-10 मित्र मिलकर भी यह कार्य कर सकते हैं।

हम कुछ मित्रों ने भी इसी रूप में सेवा भाव से यह कार्य प्रारंभ किया, जो अनवरत चल रहा है। दक्षिण भारत राष्ट्रमत में सूचना प्रकाशित की और लग गए छोटी छोटी मदद करने। अनेक छोटे बड़े संगठन, अनेक समूह भी अपने अपने तरीके से सेवा कार्यों में लगे हैं, हमें उन सबके कार्यों की सराहना करनी चाहिए। कोई ज्यादा संसाधनों के साथ बड़े काम कर सकता है तो कोई सीमित व्यवस्थाओं के तहत छोटे छोटे दायित्व ले सकता है। इसमें कोई तुलना या प्रतिस्पर्धा करने जैसा कुछ नहीं है।

हां, इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि हम जिसकी भी मदद करें, उसे यह जरूर महसूस हो कि कुछ दिन तो सुकून से गुजरेंगे। जैसे किसी परिवार में 4-5 लोग हैं तो उनको कम से कम एक दो महिना राहत मिले इतना तो प्रबंध करें। उदाहरण के तौर पर, हमने किसी परिवार को 20 किलो आटा, 10 किलो चावल, 5 किलो चीनी, 5 किलो तेल, 5 किलो दाल, 2 किलो चना आदि दिया तो कुछ परिवारों को 10 किलो आटे के साथ बाकी सामग्री उपरोक्तानुसार उपलब्ध कराई।

उन्हें आश्चर्य हुआ और अच्छा भी लगा कि राशन सामग्री पर्याप्त मात्रा में दी गई है। राशन का सामान कितना दें यह जरूरतमंद परिवार में कितने सदस्य हैं इस पर भी निर्भर करता है। यह मानकर चलना चाहिए कि यह सहयोग वही लेगा जो वास्तव में आर्थिक संकट से जूझ रहा है। हमसे जुड़े मेरे एक सामाजिक कार्यकर्ता साथी, जो सोमवार को तीन लोगों को राशन सामग्री देने गए थे। उन्होंने जब जरूरतमंदों को राशन किट भेंट किया तो बाद में मुझे फोन करके कहा कि वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचना भी ईश्वर की कृपा से ही संभव है और हम ऐसे लोगों तक पहुंच रहे हैं।

हाल ही में एक परिवार को जब इतना राशन दिया गया तो एक बार तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसी सहायता भी मिल सकती है। इस परिवार में पति की नौकरी कोरोना लाकडाउन के कारण छूट गई और महिला भी खुद किसी कैटरर की सहयोगी के रूप में काम करती थी, वह काम भी कोरोना के कारण छूट गया। ऐसे ही कुछ अन्य जरूरतमंद परिवारों को, चुपचाप सहयोग करने वाले हमारे साथियों ने 4-4 हजार रु. की राशि जरूरतमंदों के बैंक अकाउंट में भेजकर मदद की क्योंकि उनकी जरूरतों को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया कि इन्हें नकद राशि देना ठीक होगा। हमारी एक साथी महिला साहित्यकार ने भी एक अति जरूरतमंद परिवार को 10 हजार रु. उनके अकाउंट में भेजे क्योंकि जरूरतमंद परिवार में कमाने वाले दो सदस्य, और दोनों को अस्पताल जाना पड़ा तो उनके लिए उस समय राशन महत्वपूर्ण नहीं था, उससे ज्यादा जरूरी थी दवाइयां तथा अन्य खर्चों के लिए पैसे का इंतजाम।

कहने का तात्पर्य यही है कि जरूरतमंद की जरूरत को ध्यान में रखकर और हम अपनी तरफ से कितना कर सकते हैं, क्या कर सकते हैं, इस बात को ध्यान में रखकर सेवा कार्य करना चाहिए। सेवा कोई छोटी या बड़ी नहीं होती, हम सहज रूप से, खुद आसानी से कितना कुछ कर सकते हैं, वह करें। किसी से तुलना करने की जरूरत नहीं। खुद के नाम की, शोहरत की अपेक्षा किए बिना तथा जिसको मदद कर रहे हैं उसका स्वाभिमान आहत किए बिना हम खुशी खुशी जो भी अच्छा काम कर सकते हैं, वह सब प्रभु कृपा के बिना संभव नहीं, यह मानकर कार्य करते रहना चाहिए।

हम मित्रों ने इस काम के लिए न कोई संस्था बनाई, न कोई धन संग्रह किया। जैसे जैसे जरूरतें सामने आईं वैसे वैसे कोई न कोई एक साथी जरूरतमंदों का दायित्व अपने ऊपर लेता चला गया और काम आगे बढता गया। यह सिलसिला फिलहाल तो लगातार चल रहा है।

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