युद्ध की ज्वाला

युद्ध की ज्वाला

पहले ही दिन कच्चे तेल की कीमतों ने तेवर दिखाना शुरू कर दिया है


आखिरकार वही हुआ जिसकी कई दिनों से आशंका जताई जा रही थी। रूस ने यूक्रेन पर धावा बोल ही दिया। दोनों देशों के बीच युद्ध के बादल तो मंडरा रहे थे लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि यह तनाव इतनी जल्दी भिड़ंत में बदल जाएगा। इसके नतीजे सिर्फ इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेंगे। दुनिया वैश्विक गांव हो गई है, बल्कि इंटरनेट ने इसे वैश्विक गली बना दिया है। ऐसे में देर-सबेर इसके नतीजे कमोबेश पूरी दुनिया को भुगतने पड़ेंगे। 

पहले ही दिन कच्चे तेल की कीमतों ने तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। शेयर बाजारों में गिरावट का रुख है। डॉलर के मुकाबले मुद्राएं कमजोर हुई हैं। तेल, शेयर और मुद्रा बाजार में सुधार तो भविष्य में संभव है लेकिन उन जानों की भरपाई नहीं हो सकती जो इस युद्ध के दौरान दुनिया छोड़ जाएंगी। यह सबसे बड़ा नुकसान है। यूक्रेन में मानवता के समक्ष बड़ा संकट आया हुआ है। 

सोशल मीडिया से पता चल रहा है कि किस तरह लोगों में अफरा-तफरी मची हुई है। वे सड़कों पर प्रार्थनाएं कर रहे हैं ताकि यह संकट जल्द से जल्द टले। एटीएम के सामने लंबी कतारें लगी हैं। हर कोई अपने खाते से ज्यादा से ज्यादा रकम निकालना चाहता है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि लड़ाई कितने दिन तक चलेगी। इस माहौल में जमाखोरों के पौ-बारह हो जाएंगे। खाने-पीने की चीजों के मनमाने दाम वसूले जाएंगे। आपूर्ति पहले ही ठप पड़ गई है। लोग घरों से भाग रहे हैं। सार्वजनिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।

रूस तुलनात्मक रूप से एक सबल देश है। उसके पास हथियारों का भंडार है। वह लड़ाई को लंबी खींचना चाहे तो उसके लिए कोई मुश्किल नहीं है। राष्ट्रपति पुतिन को याद रखना चाहिए कि यह टकराव उनके देश को भी गंभीर नुकसान पहुंचाएगा। चूंकि रूस की अर्थव्यवस्था में अब पहले जितनी ताकत नहीं रही है। यूरोपीय संघ और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं उस पर प्रतिबंध लगाने जा रही हैं। अगर युद्ध लंबा चलता है तो रूस के खजाने को बड़ी चोट लगेगी। सोवियत संघ को द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने करोड़ों नागरिक खोने पड़े थे। इसलिए पुतिन को ऐसा टकराव टालना चाहिए था। चूंकि वे बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि युद्ध की कीमत आखिर में नागरिकों को ही चुकानी पड़ती है। 

किसी राष्ट्र प्रमुख के लिए युद्ध शुरू करना कोई मुश्किल काम नहीं होता। खासतौर से पुतिन जैसे शासकों के लिए, लेकिन इसका अंत करना सबसे कठिन है। कई बार टकराव बढ़ते-बढ़ते ऐसे मोड़ पर जा पहुंचता है जहां से वापसी मुश्किल या तकरीबन नामुमकिन हो जाती है। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध ऐसे ही टकराव का परिणाम थे। 

आज दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। उद्योग-धंधे पहले ही चौपट हो चुके हैं। किसी तरह अर्थव्यवस्था का पहिया फिर से चलाने की कोशिश कर ही रहे थे कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की ज्वाला भड़क उठी। मानवता के हित में यही है कि इस युद्ध को तुरंत रुकवाया जाए। विश्व संस्थाओं को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इन्सानी जानों को बचाने के लिए पुख्ता कदम उठाने चाहिए।

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