घुसपैठिए, शरणार्थी और कश्मीरी पंडित

घुसपैठिए, शरणार्थी और कश्मीरी पंडित

Illigal Bangladeshis

शरणागत की रक्षा करना हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। भगवान राम की शरण में जब रावण का भाई विभीषण आया था, तब सुग्रीव ने यही राय दी थी कि दुश्मन का भाई है, इसे बांधकर रखा जाए लेकिन भगवान राम ने कहा कि जो हमारी शरण में आया है, उसकी हम रक्षा करेंगे।

शरणागत और घुसपैठिए में अंतर होता है। अभी हाल में हमारे देश के असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का जो मसौदा जारी किया गया था, उसके अनुसार वहां 40 लाख लोग ऐसे है जिनके पास नागरिकता का कोई प्रमाण नहीं है। हालाकि अभी उन्हें और मौका दिया गया है कि जरूरी कागजात दिखाकर असम में नागरिक होने का प्रमाण दें लेकिन अगर प्रमाण नहीं दे पाएंगे तो इन घुसपैठियों को उनके अपने देश भेजना ही पड़ेगा।

भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मेरठ में भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक को संबोधित करते हुए घुसपैठियों को लेकर मोदी सरकार की रणनीति का संकेत दिया है। शाह ने कहा है कि मोदी सरकार देश से एक-एक घुसपैठिये को खदेड़ेगी। इसके साथ ही अमित शाह ने यह भी कहा कि हिन्दू शरणार्थियों को देश में लाया जाएगा और उन्हें नागरिकता प्रदान की जाएगी, चाहें वे पाकिस्तान में हों या श्रीलंका में हों अथवा बांग्लादेश में हों।

शाह ने इनके लिए इसीलिए शरणार्थी शब्द का प्रयोग किया है क्योंकि ये लोग पाकिस्तान और बांग्लादेश से सताये जाने पर ही अपना घर और कारोबार छो़डकर आये हैं। कश्मीरी पंडितों की समस्या भी इनकी जैसी ही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा की प्रदेश कार्य समिति में लगभग पौन घंटे के भाषण में हिन्दुत्व पर ज्यादा जोर दिया। इसी संदर्भ में असम के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के कार्य का जिक्र भी किया।

असम में नागरिकता का मामला दशकों पुराना है और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह कार्य बहुत पहले हो जाना चाहिए था। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने असम के विधान सभा चुनाव में यह वादा किया था कि यहां से घुसपैठियों को उनके देश भेजा जाएगा और हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जाएगी। विपक्षी दलों ने असम में 40 लाख घुसपैठियों को लेकर हंगामा खड़ा किया। विशेष रूप से तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी को इस पर ज्यादा आपत्ति है क्योंकि पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की संख्या कहीं ज्यादा बताई जा रही है और ये घुसपैठिये ममता बनर्जी के मतदाता बताये जाते हैं।

अमित शाह ने इसीलिए कहा कि विपक्षी दल चाहे जितना होहल्ला करें लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार असम में 40 लाख घुसपैठियों में से एक-एक को निकाल कर ही दम लेंगी। अमित शाह असम तक ही नही रुके। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार घुसपैठियों के प्रति किसी प्रकार की उदारता नहीं बरतेगी। पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों को शरण देने के मामले में मैं ममता बनर्जी को चेता कर आया हूं। इस प्रकार देश में जहां -जहां घुसपैठिये हैं, उन सभी को देश से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।

घुसपैठियों की बात करते समय हमें रोहिंग्या मुसलमानों की भी याद आती है। इनका मामला संयुक्त राष्ट्र संघ तक उठा लेकिन इसी के साथ कटुसत्य भी पता चला। म्यांमार जैसे राष्ट्र में रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों भगाना पड़ा, इसके पीछे इन घुसपैठियों की अराजकता है। घुसपैठियों ने शांतिपूर्ण जीवन जीने वाले बौद्धों के साथ घिनौनी हरकतें करनी शुरू की थीं और उन्हें धमकाने भी लगे थे। महात्मा बुद्ध के अनुयाई, जो अहिंसा में विश्वास करते हैं और शांति की खोज में रहते हैं, उन्हें रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति हथियार क्यों उठाने पड़े? जाहिर है रोहिंग्या लोगों ने अतिवादी व्यवहार शुरू कर दिया था।

भारत में असम सहित जहां भी इस तरह के घुसपैठिये हैं, वे इसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं। इनके बीच नशे के सौदागर भी पनप रहे हैं और पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकवादी भी इन्हीं घुसपैठियों के माध्यम से अपनी नापाक हरकते करते रहते हैं। इन घुसपैठियों के बारे में अभी सिर्फ यही जानकारी जुटाई गई है कि उनके पास भारत में रहने का कोई प्रमाण पत्र है अथवा नहीं। इसके बाद उनके कार्यकलापों पर भी छानबीन की जाएगी।

विपक्षी दलों को इस मामले में राजनीति करते समय यह ध्यान रखना होगा कि घुसपैठिये और शरणार्थी में अंतर है। पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी भारत के ही हिस्से हुआ करते थे। ब्रिटिश हुकूमत ने बॅटवारा कर दिया और मुस्लिम आबादी पर पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान बना दिये। इसके बावजूद पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हिन्दुस्तान में रह रहे हैं और पाकिस्तान व बांग्लादेश में जो हिन्दू परिवार रह रहे हैं, उनके साथ अत्याचार होता है। अत्याचार तो उन लोगों के साथ भी हुआ जो देश का बंटवारा होने के बाद मुसलमान होने के नाते पाकिस्तान में गये और वहां उन्हें मुहाजिर कहा जाता है। उन्हें दोयम दर्जे का मुसलमान माना जाता है।

हिन्दुओं के प्रति उनका वही भाव है जो देश के विभाजन के समय था। फर्क सिर्फ इतना है कि अन्तरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के भय से उस तरह से अत्याचार नहीं किया जा सकता। उसके बावजूद पाकिस्तान और बांग्लादेश से जो हिन्दू परिवार शरणार्थी बनकर आये हैं, उन्होंने अपना सब कुछ वहां खो दिया है। उन्हें भारत की मदद चाहिए और शरणागत की रक्षा करने की बात ही अमित शाह ने कही है। अच्छी बात यह कि उन्होंने खुलकर यह कहा है। हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को शरण नहीं मिलेगी तो क्या उन्हें अमेरिका और इंग्लैण्ड जाना पड़ेगा! इसलिए मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में पाकिस्तान से जो भी हिन्दू शरणार्थी आये हैं, उनको रहने और खाने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।

इसके साथ ही कश्मीर के पंडितों को उनके राज्य में बसाने का इंतजाम भी होना चाहिए। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के समय यह कहा था कि कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से कॉलोनी बनाई जाएगी। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लागू है और उसे विशेष राज्य का दर्जा भी मिला हुआ है लेकिन कश्मीरी पंडित तो वहीं के वाशिंदे हैं और उन्हें भी अत्याचार करके घर से निकलने पर मजबूर किया गया है। अब अन्हें फिर से उन्हीं घरों में वापस जाने को कहा जा रहा है लेकिन कश्मीरी पंडितों को न्याय तभी मिलेगा जब उनकी अलग कॉलोनी बनाई जाए।

वे एकसाथ रहेंगे तो उन पर कोई अत्याचार भी नहीं कर पाएगा। भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार भी चलाई लेकिन पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने कश्मीरी पंडितों की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया। अब अमित शाह ने घुसपैठियों और शरणार्थियों का मामला उठाया है तो कश्मीरी पंडितों के लिए भी मोदी सरकार को समाधान तलाशना पड़ेगा। (हिफी)

– अशोक त्रिपाठी –
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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