मुगालते में न रहें….
मुगालते में न रहें….
श्रीकांत पाराशर
भाजपा के सर्वोच्च नेता नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में हुए आम चुनावों में जीतकर आए भाजपा सांसदों को कई ‘मोदी मंत्र‘ दिए। उन्होंने खास बात यह कही कि कभी भी मुगालते में न रहें। मुगालता का मतलब समझते हैं न? बिना मतलब का भ्रम पाल लेना ही मुगालते में जीना है। हालांकि यह सामान्य सा शब्द लगता है परंतु बहुत से लोग इसके नशे में रहते हैं और सब कुछ गंवा देते हैं। मोदी ने कहा, अनेक नए नए सांसद दूसरों की बातों में आसानी से आ जाते हैं।कुछ तो अभी से यह मानकर चल रहे हैं कि वे मंत्री बन चुके हैं। वे मन ही मन अपने पसन्दीदा विभाग का भी चयन कर रहे हैं। अपनी लाबिंग कर रहे हैं। अपने ईदगिर्द मित्रों को पूछ रहे हैं कि फलां फलां विभाग मेरी पर्सनैलिटी को शूट करेगा कि नहीं? ऐसे मुगालते में जीने वाले सांसदों को साफ साफ मोदी ने कह दिया है कि ‘ऐसा कुछ नहीं होता है जी। बहुत सारे क्राइटेरिया होते हैं जिम्मेदारी देने के।’
मोदीजी का मतलब साफ है कि व्यर्थ ही शेरवानी पर पैसा खर्च न करें और न ही प्रचार करें कि फलां फलां मंत्रालय मिलने वाला है अन्यथा जब मंत्रिमंडल की सूची में ढूंढने पर भी नाम नहीं मिलेगा तो अपने ही मित्रों से दस पंद्रह दिन तक मुंह छिपाना होगा। मोदी की बात में दम है। वर्षों के तपे तपाए नेता जब कुछ कहें तो मानना चाहिए कि उसका अर्थ भी गूढ ही होगा। और कथन जब मोदी जैसे नेता का हो तो उस पर विश्वास करना चाहिए। जिस नेता पर देश के करोड़ों लोगों ने विश्वास करके फिर से प्रधानमंत्री बनाया हो तब कम से कम देश के उन करोड़ों लोगों की समझ पर तो सवाल नहीं उठा सकते।
मोदी ने भाजपा सांसदों को या फिर काशी के अपने कार्यकर्ताओं को जितने भी मंत्र दिए, सब अनमोल थे। मुगालते वाली बात लाख टके की थी। मोदी और अमित शाह कभी मुगालते में नहीं रहते, यह सबने चुनावों के समय देखा। जब भी अमित शाह से पूछा जाता कि आप चुनावों को कितनी बड़ी चुनौती मानते हैं, तो हर बार वे कहते कि उनके लिए हर चुनाव चुनौती है और हर छोटे बड़े चुनाव को वे पूरी गंभीरता के साथ लड़ते हैं। यह चुनाव परिणामों में साफ साफ दिखाई भी दिया। वे स्वयं और मोदी, दोनों ही कभी मुगालते में नहीं जीते। जिस तरह से इस जोड़ी ने चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया और जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, ऐसा जुनून विपक्ष में कहीं दिखाई नहीं दिया।
हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कम मेहनत नहीं की। रैलियां करने और भागदौड़ करने में उन्होंने कम पसीना नहीं बहाया परंतु वे मुगालते का शिकार हुए। उनके सिपहसालारों ने उनकी नैया डुबोने में अहम भूमिका निभाई। इन सलाहकारों ने राहुल को जमीन पर पैर रखने ही नहीं दिए। वे उड़ते-उड़ते ही सपने बुनते रहे। इन चापलूसों ने राहुल को जो जो पाठ पढाया, वे रटंतु तोते की तरह उसे दोहराते रहे। राहुल गांधी यहां तक कहने लगे कि अब मोदी सरकार 35 दिन की और है, इसके बाद मोदी जेल में होंगे।
अपनी सरकार के गठन के सपने में वे इतने मशगूल हो गए कि एक बार तो सीमा भी लांघ गए। सुप्रीम कोर्ट के हवाले से ‘चौकीदार चोर है’ बयान पर मुहर लगाकर जनता के सामने पेश कर दिया। कोर्ट से डांट फटकार पड़ी परंतु वे इससे भी मुगालते से बाहर नहीं आये। उनको लगा कि उनकी सरकार आ चुकी है, वे प्रधानमंत्री बन चुके हैं। बस दिल्ली कुछ मीटर की दूरी पर है। इसलिए उन्होंने किसानों के सारे ऋण माफ करने की बात कह दी, हर किसान को साल में 72,000 रुपये देने का आश्वासन दे डाला। इन योजनाओं के लिए धन कहां से लाएंगे, इस सवाल पर कोई स्पष्ट विचार या योजना न होने पर भी वही ही रट लगाए रहे कि एक बार आप सत्ता सौंपिये तो सही, पैसा अपने आप आ जाएगा।
वे इस मुगालते में रहे कि किसानों की ऋण माफी के आश्वासन पर जैसे तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीते थे वैसे ही आम चुनाव भी जीत लेंगे। परंतु ऐसा हुआ नहीं। मोदी ने बार बार कांग्रेस और भाजपा के ट्रैक रिकॉर्ड पर नजर डालने की बात कही। इसमें कांग्रेस मार खा गई। क्योंकि ट्रैक रिकॉर्ड के मामले में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा का पलड़ा भारी था।
मुगालते में जीना हानिकारक है यह पता सबको है परंतु जो इस नशे में होता है वह स्वयं नहीं समझ पाता कि वह खुद भी इसका शिकार है। इसका जीता जागता उदाहरण बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं जिन्होंने चुनाव जीतने के लिए हिंसा का सहारा लिया। वे इस मुगालते में थीं कि बंगाल में निचले स्तर तक पार्टी का हर समर्थक उनके लिए मर मिटने को तैयार है इसलिए उन्होंने उन समर्थकों को सच में मर मिटने के लिए हिंसा की आग में झोंक दिया और खुद प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने का ख्वाब बुनने लगीं।
पिछले दो तीन वर्षों में वे सत्ता के नशे में न केवल चूर रहीं बल्कि उनके शासन में भ्रष्टाचार भी खूब फलता फूलता रहा। केन्द्र को वह डंडे से डराती रहीं तथा जनता के समक्ष पीड़िता के रूप में अपने आपको प्रस्तुत कर सहानुभूति की नाव पर सवारी करती रहीं। उधर अल्पसंख्यकों के सामने छोटे छोटे प्रलोभन के टुकड़े फैंककर आश्वस्त हो गई कि अब उनकी कुर्सी पर फेविकॉल वाला जोड़ लग गया है इसलिए उन्हें कोई हटा नहीं सकता। इधर भाजपा की टीम धीरे धीरे उनके घर में घुस गई और लोकसभा की जब 18 सीटें ले उड़ीं तब ममता को समझ में आया कि वे मुगालते में जी रही थीं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मुगालते में जीते हैं। यह भाई तो ऐसा है कि समझता तो अपने आपको देश का सबसे बड़ा चतुर है जबकि खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हुए इसे जब तब देखा जा सकता है। दिल्ली में सातों सीटें हारने के बाद केजरीवाल अपने कार्यकर्ताओं को संदेश देते हैं कि दिल्ली की जनता को जाकर बताओ कि चुनाव में जनता ने बहुत बड़ी गलती कर दी है परंतु कोई बात नहीं यह बड़ा चुनाव था जो मोदी और राहुल के बीच था। अब विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी को ही लाना है। केजरीवाल भी मुगालते में जी रहे हैं। सात सीटें गंवाकर भी उनको अक्ल नहीं आई है। अभी भी गलती जनता की बता रहे हैं।
दिल्ली की जनता ने तो साफ संकेत दे दिए हैं। अब कोई कबूतर की तरह आंख बंद करके यह सोच ले कि बिल्ली उसे देख नहीं रही, तो समझ लो वह बिल्ली से दिल्ली कैसे बचायेगा? दिल्ली की जनता तो एक एक दिन गिनकर निकाल रही है। दिल्ली के लोग तो बड़े दुख से कहते हैं कि अभी भी उन्हें कई महिने केजरीवाल सरकार को झेलना है। उनका वश चलता तो वे अभी उखाड़ फैंकते। अगर केजरीवाल अपने मुगालते से बाहर नहीं आये तो कीमत भी उन्हीं को चुकानी होगी। अब राहुल गांधी भी कमर कस रहे हैं।
दिल्ली चुनाव से पहले वे अपनी पार्टी का जरूरी आपरेशन कर उसे तंदुरुस्त करने की कोशिश करेंगे और भाजपा से टक्कर लेंगे। ऐसे में आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक जाए तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। मुगालते के सबसे बड़े शिकार हुए आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू। वे दूसरों की लुंगी में लगी आग को बुझाने की कोशिशों में लगे रहे और पीछे से उनकी पूरी लंका ही जल गई। उन्हें न तो कोई प्रधानमंत्री बनना था और न उनकी कोई सुन रहा था फिर भी वे राहुल, मायावती, ममता, पवार आदि के लिए किंगमेकर बनने के चक्कर में अपनी जूतियाँ घिस रहे थे। घर आकर देखा तो सब स्वाहा हो चुका था। अब बोरिया बिस्तर बांध रहे हैं।
अखिलेश को मुगालता था कि अपनी पार्टी की आन बान शान सब लुटाकर वे भुआ का दिल जीत चुके हैं। अपनी आधी सीटें भुआ को लड़ने के लिए देकर वे पंगु तो हो ही चुके थे। रही सही कसर भुआ ने वोट ट्रांसफर न करवाकर पूरी कर दी। अखिलेश दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सके। हाल मायावती का भी बुरा ही रहा। जाति आधारित राजनीति करने वाली मायावती तो मुगालते के ऊंट पर ही चढी रहती हैं और किसी को कुछ नहीं समझतीं। इस बार तो उनका ऊंट ऐसी करवट बैठा कि अपनी बसपा की सीटों को ही मसल डाला। वे दस पर ही सिमट गईं।
बिहार के लालू परिवार पर तो पहाड़ ही टूट पड़ा है। उनके बेटे तेजस्वी तो मुगालते में आकंठ डूबे थे। एक भी सीट नहीं आई। लालू को पता चला कि बिहार में उनकी पार्टी का खाता ही नहीं खुला है तो वे सदमे में ऐसा गए कि खाना भी नहीं खा रहे हैं। भाजपा के अलावा समूचा विपक्ष सदमे में है। उबरने में कुछ वक्त तो लगेगा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को मुगालते में जीने की आदत न होने से आज उसे वह दिन नहीं देखने पड़े जो विपक्ष देख रहा है।
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